एक बड़ा सबक भी है कोविड-19
वर्ष 1994 की बात है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एमएससी (मास कम्युनिकेशन) पाठ्यक्रम शुरू हुआ ही था। क्योंकि पूरे हरियाणा में पत्रकारिता में स्नातकोत्तर स्तर का यह अकेला पाठ्यक्रम था अतः इसमें एडमिशन के लिए खूब मारामारी हुई। इसके लिए प्रवेश परीक्षा निर्धारित की गई। मैंने भी इसमें अप्लाई कर दिया था। पढ़ाई में फिसड्डी होने के बावजूद चयन सूची में मेरा नाम सातवें नंबर पर आ गया। यह पता लगने पर, मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर में स्थित एडमिशन फीस के लिए निर्धारित बैंक में फीस जमा कराकर वापस घर आ गया।
विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन विभाग में जाकर जमा नहीं करवाई। उस समय एडमिशन और फीस ऑनलाइन नहीं थे। इसके चलते मास कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट को इसकी सूचना नहीं मिली। अतः मेरी जगह किसी और का एडमिशन कर दिया गया। एडमिशन्स का दौर पूरा होने के बाद जब क्लासेज लगनी शुरू हुईं तो मैं विभाग में पहुंचा तो पता चला कि मेरा तो यहाँ एडमिशन ही नहीं है।
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मास कम्युनिकेशन में कुल 30 ही सीटें थी और सारी की सारी भरी जा चुकी थीं। लेकिन जब मास कम्युनिकेशन के विभागाध्यक्ष ने बैंक में जमा मेरी फीस की रसीद देखी तो वे चक्कर में पड़ गए, क्योंकि मैं फीस भर चुका था अतः एक तरह से मेरा भी एडमिशन हो चुका था। मगर मेरी जगह वेटिंग वाले का भी एडमिशन कर दिया गया था। यह पेचीदा मामला विश्वविद्यालय के वीसी को भेजा गया और पूछा गया कि इस प्रकरण में क्या किया जा सकता है ? इसके चलते काफी समय निकल गया और सितंबर का महीना आ पहुंचा। फिर अचानक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया। मेरा मामला फिर अधर में लटक गया।
आखिर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद क्यों हुआ ? इसकी वजह कुरुक्षेत्र से 1300 किलोमीटर दूर गुजरात के सूरत में थी। अचानक अखबारों में छप गया कि 20 से 25 सितंबर के बीच सूरत के अस्पतालों में प्लेग के लगभग 460 केस आए हैं और 1061 मरीज़ इस महामारी से प्रभावित हैं। इस सूचना से सूरत में हड़कंप मच गया। जब लोगों को इस महामारी के फैलने का पता चला तो वे भागने लगे।
सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ गई। सूरत में आजादी के बाद यह लोगों का दूसरा बड़ा पलायन था। पहले शहर के अमीर लोग निकल भागे, बहुत से निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर और केमिस्ट भी सूरत छोड़ गए। कई सरकारी अधिकारियों ने भी बहाने से छुट्टी लेकर सूरत छोड़ दिया। लोगों को कार, बस, दोपहिया वाहन और ट्रेन, जो भी मिला, उससे शहर से निकल भागे।इस महामारी में देश में प्लेग के 6334 संभावित मामले दर्ज़ हुए। कुल 55 लोगों की मौत हो गई और 288 लोगों में इसकी पुष्टि हुई।
इस पूरे प्रकरण में देश को 1800 करोड़ रुपये का फ़टका लगा। विदेशी भी भयभीत हो गए। लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट जा रहे एयर इंडिया के हवाई जहाज को 'प्लेग प्लेन' तक कह दिया गया। ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट ने इसे 'मध्यकालीन श्राप' नाम दिया। टाइम मैगज़ीन ने इसका नामकरण 'मध्यकालीन हॉरर' शो किया। उसी दौरान मदर टेरेसा रोम की यात्रा पर गई हुई थी। एयरपोर्ट पर पूरी जांच के बाद ही उन्हें शहर में प्रवेश करने दिया गया। विदेशों से आयात-निर्यात रुक गया। विकसित देशों ने अपने नागरिकों को एडवाइज़री जारी कर भारत न जाने की सलाह दी।
लेकिन इस हादसे ने सूरत की सूरत बिल्कुल बदल कर रख दी। प्लेग गन्दगी के कारण फैलता है अतः1994 में प्लेग के बाद से सूरत पर सफाई का जुनून सवार हो गया। जनता और सरकार ने इस दिशा में मिलकर बीड़ा उठाया।उस समय के शहर के नगर निगम प्रमुख सूर्यदेवड़ा रामचंद्र राव की अगुवाई में अधिकारियों ने बड़े स्तर पर शहर की सफ़ाई करने का काम शुरू किया। इस योजना के तहत सूरत को छह ज़ोनों और 52 स्वास्थ्य क्षेत्रों में बांटा गया। हर इलाक़े से रोज़ाना रिपोर्ट मांगी जाती थी, गंदगी फैलाने पर भारी जुर्माना लगाया गया। गंदी बस्तियों की हालत में भी जबरदस्त सुधार किया गया। इन प्रयासों से 1994 में प्लेग वाला वाला सूरत 1997 में देश का दूसरा सबसे साफ शहर बन गया। अभी भी सूरत भारत के सबसे साफ शहरों की फेहरिस्त में लगातार अग्रणी स्थान बनाए हुए है।
आखिर सवाल उठता है कि कोरोना वायरस से सम्बंधित इस लेख में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और सूरत के प्लेग का ज़िक्र करने के कारण क्या हैं ? बिल्कुल कारण हैं, सूरत के प्लेग से हमें प्रेरणा लेनी होगी कि हमें महामारी का मुकाबला तो करना ही है इस पर कंट्रोल करने के बाद भी हमारी जंग जारी रहनी चाहिए। इससे हमें महत्वपूर्ण सबक मिला है कि नंगी आँखों से भी न दिखने वाला एक तुच्छ जीव हजारों किलोमीटर दूर भी कैसे तबाही मचा सकता है।
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ये समय है धैर्य का।जब तक स्थिति काबू में नहीं आती तब तक कड़े अनुशासन से घरों के अंदर रहिये; सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी निर्देशों का पालन कीजिये। फिलहाल 3 मई तक देशव्यापी लॉकडाउन है, इसको सफल बनाने के लिए पूरा सहयोग करें। इस बीमारी से बुजुर्गों और बीमारों को खतरा सबसे ज्यादा है अतः उनको इस संक्रमण से बचाने के लिए हर सम्भव प्रयास करें। पैनिक न होने दें, देश में खाद्यान्न, दवाइयों और आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में स्टॉक है अतः आवश्यकता से ज्यादा खरीददारी करने से बचें। पुलिस की सख्ती को भी सहने की आदत डाल लीजिये ये निष्ठावान सिपाही सब आपकी भलाई के लिए ही तो कार्य कर रहे हैं।
और हाँ, आपके दिमाग में बार-बार कौंध रहा होगा कि मुझे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एडमिशन मिला या नहीं ? हुआ यूँ कि जब मेरे केस की फ़ाइल वीसी के पास गई तो उन्होंने इस मामले में मेरी ज्यादा गलती न मानते हुए उदारता का परिचय देकर अपने स्पेशल कोटे से मेरे एडमिशन को मंजूरी दे दी।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)
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