कमरा नंबर 31और पीटर पीर प्रताप

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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सर सैयद हॉल (साउथ) का कमरा नंबर 31और पीटर पीर प्रताप को आप जितना जानते हैं। ज्यादातर देशवासी भी मुरसान के राजा महेन्द्र प्रताप सिंह के बारे में उतना ही जानते हैं।

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म मुरसान के जाट राजवंश में एक दिसम्बर, 1886 को हुआ था। उनका लालन-पालन और प्राथमिक शिक्षा वृंदावन में हुई। इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज

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(अब एएमयू) से प्रथम श्रेणी में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। देश भ्रमण के दौरान देशवासियों की दुर्दशा औरशासन के अत्याचार पर इन्होंने आंदोलन का झंडा बुलंद किया।  उन्होंने 29 अक्टूबर, 1915 को अफगानिस्तान में अस्थाई आजाद हिन्द सरकार का गठन किया। अस्थाई सरकार के वह स्वयं राष्ट्रपति थे।


उन्होंने अपनी आर्य परम्परा का निर्वाह करते हुये 32 वर्ष तक देश के बाहर रहकर अंग्रेज सरकार को न केवल तरह-तरह से ललकारा, बल्कि अफगानिस्तान में बनाई अपनी ‘‘आजाद हिन्द फौज’’ द्वारा कबाईली इलाकों पर हमला करके कई इलाके अंग्रजों से छीनकर अपने अधिकार में ले लिये थे। राजा महेन्द्र प्रताप ने 31 साल तक जर्मनी, स्विटजरलैंड, अफगानिस्तान, तुर्की, यूरोप, अमरीका, चीन, जापान, रूस आदि देशों में घूमकर आजादी की अलख जगाई। इस पर अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें राजद्रोही घोषित कर उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली। 1925 में उन्होंने न्यूयार्क में नीग्रो की स्वतंत्रता के समर्थन में भाषण दिया।

 सितम्बर 1938 को उन्होंने एक सैनिक बोर्ड का गठन किया, जिसमें वे अध्यक्ष, रासबिहारी बोस उपाध्यक्ष तथा आनंद मोहन सहाय महामंत्री थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्हें बंदी बना लिया गया पर कुछ नेताओं के प्रयास से वे मुक्त हो गए। अगस्त 1945 में वह देश लौटे। आजादी के बाद 1957 में मथुरा से अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर लोकसभा के निर्दलीय सदस्य बने। वे 'भारतीय स्वाधीनता सेनानी संघ' तथा 'अखिल भारतीय जाट महासभा' के भी अध्यक्ष रहे। 29 अप्रैल 1979 को वे चिरनिद्रा में सो गए।
वे एक सच्चे देशभक्त, क्रान्तिकारी, पत्रकार और समाज सुधारक थे। अपनी कार्यशैली एवं जीवन शैली में सभी धर्मों के समन्वय और प्रेम को महत्त्व देने कारण ही इन्हें 'आर्यन पेशवा' के नाम से प्रसिद्धि मिली थी। हिंदू परिवार में जन्म हुआ, मुस्लिम स्कूल में पढ़े, ईसाइयों के सानिध्य में काफी समय बिताया और सिख धर्म की लड़की से विवाह हुआ। राजा महेंद्र प्रताप सिंह का विवाह हरियाणा की जींद रियासत के नरेश महाराज रणवीर सिंह जी की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ।

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24 मई, 1909 को राजा महेन्द्र प्रताप ने वृन्दावन में अपने महल में ही प्रेम महाविद्यालय की न सिर्फ़ स्थापना की, बल्कि अपने पांच गांव भी (जिनकी आमदनी सब खर्च काटकर लगभग 33 हज़ार रुपए प्रति वर्ष होती थी) इस संस्थान को भेंट कर दी। ये पॉलिटेक्निक की शिक्षा देने वाला संस्थान था। राजा महेन्द्र प्रताप ने इस संस्था का अवैतनिक सेक्रेटरी तथा गवर्नर रहकर इसका संचालन किया और कुछ समय तक विद्यार्थियों को विज्ञान आदि विषय पढ़ाए।

राजा महेन्द्र प्रताप हमेशा जनसंघ और हिन्दुत्व के ख़िलाफ़ रहे। यही वजह है कि 1957 लोकसभा चुनाव में मथुरा से जनसंघ के नेता अटल बिहारी को उन्होंने ज़बर्दस्त पटखनी दी। इस चुनाव में राजा महेन्द्र प्रताप आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे। राजा महेन्द्र प्रताप को 40.68 फ़ीसदी वोट मिले। वहीं 29.57 फ़ीसदी वोट पाकर कांग्रेस के दिगम्बर सिंह दूसरे स्थान पर थे, जबकि अटल बिहारी वाजपेयी 10.09 फ़ीसदी वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे। जबकि कुल उम्मीदवारों की संख्या 5 थी।

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पिता राजा घनश्याम सिंह एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान (1817-1898) के अच्छे दोस्त थे। इसी नाते राजा घनश्याम सिंह ने 250 रुपये का दान दिया, जिससे हॉस्टल के एक कमरे का निर्माण किया गया था. यह वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सर सैयद हॉल (साउथ) का कमरा नंबर 31 है और राजा महेन्द्र प्रताप खुद को पीटर पीर प्रताप कहलाना ज़्यादा पसंद करते थे। अपनी आत्मकथा में अपनी तस्वीर के नीचे उन्होंने अपना यही नाम लिखा है !

पीटर साहेब, आज आप शारीरिक रूप में इस नश्वर संसार में बेशक मौजूद नहीं हैं, मगर आपकी लगाई गई लौ कभी नहीं बुझेगी।

निर्वाण दिवस पर आपको मेरी तरफ से छोटी सी आदरांजलि। 

 (29 अप्रैल को राजा महेन्द्र प्रताप सिंह जी का निर्वाण दिवस था। इस दिन मैंने उन्हें फेसबुक पर उन्हें इस अंदाज में आदरांजलि अर्पित की थी।)                     https://www.facebook.com/amit.nehra.501/posts/3368255389869420




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