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ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-13

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This is the title of the web page बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का...   हैदर अली आतिश का एक मशहूर शेर है कि 'बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला।' यह शेर भरत सिंह बेनीवाल पर बिल्कुल फिट बैठती है। दरअसल, भरत सिंह बेनीवाल ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस द्वारा पवन बेनीवाल को टिकट दिए जाने से बेहद खफा नजर आ रहे थे। उनके तेवरों से लग रहा था कि वो कांग्रेस पार्टी से बगावत कर सकते हैं। लेकिन उनकी दुविधा यही थी कि वो जाएं तो कहाँ जाएं ? इसी बारे में हाल ही में मेरे द्वारा 'भरत सिंह बेनीवाल के लिए आगे कुआं पीछे खाई' लेख लिखा गया था। लेख में विश्लेषण किया गया था कि अब उनके सामने दो ही विकल्प हैं कि वे इनेलो या बीजेपी को अपना समर्थन दें। सिरसा जिले में तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ माहौल बना हुआ है। भरत सिंह बेनीवाल की दुविधा यह थी कि बीजेपी को समर्थन देकर वो किसानों की नाराजगी मोल नहीं ले सकते थे। उधर भरत सिंह बेनीवाल कहते रहे हैं कि इनेलो कार्यकाल में उनपर बहुत जुल्म हुए। इस दौरान उन पर पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए। अतः इनेल

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-9

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. पूरे ऐलनाबाद में प्रचार करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती  उत्तरप्रदेश के तराई क्षेत्र के लखीमपुर खीरी नरसंहार का व्यापक असर वहाँ से लगभग 800 किलोमीटर दूर हरियाणा के ऐलनाबाद उपचुनाव में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा द्वारा पूर्वनियोजित तरीके से किसानों को गाड़ी से रौंद देने के बाद हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ किसानों का गुस्सा बढ़ता ही दिख रहा है। ऐलनाबाद उपचुनाव में जब बीजेपी उम्मीदवार गोविंद कांडा एक गुरुद्वारे पहुंचे तो उन्हें वहां से जबरन निकाल दिया। इस दौरान  किसानों ने धक्के भी मारे। गौरतलब है कि इस  उपचुनाव के लिए बीजेपी ने गोविंद कांडा को मैदान में उतारा है। गोविंद कांडा, सिरसा के विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल कांडा के भाई हैं। गोविंद हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए थे। उन्हें टिकट मिल तो गया लेकिन उनकी मुश्किल यहाँ विपक्षी उम्मीदवार नहीं बल्कि किसान हैं। पिछले एक साल से ज्यादा समय से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-8

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.    जब एक धर्मगुरु के कारण रद्द हो गया था ऐलनाबाद चुनाव आज जब राजनीति में धर्म की घुसपैठ हद से ज्यादा हो गई है और दोनों में अंतर समझना मुश्किल हो गया है। आपको याद होगा ही कि 2014 में सिरसा में एक डेरे में एक पार्टी विशेष के लगभग सभी बड़े नेता आपराधिक मामलों में आरोपी (बाद में सजायाफ्ता) बाबा के पैरों में लेटते हुए नजर आए थे। बताया जाता है कि इससे पार्टी को काफी चुनावी फायदा हुआ था। लेकिन हरियाणा जब नया-नया बना था तब राजनीति और धर्म दोनों के बीच मर्यादा स्पष्ट दिखाई देती थी। यहाँ तक कि उस समय जब एक धर्मगुरु ने धर्म को साक्षी बनाकर अपने अनुयायियों को वोट डालने की अपील कर दी थी तो सुप्रीम कोर्ट ने इस आरोप को सही मानते हुए चुनाव ही रद्द कर दिया था। दरअसल ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में यह  तीसरा उपचुनाव है। इससे पहले 2009 में यहाँ  से इनेलो की टिकट पर ओमप्रकाश चौटाला विधायक चुने गए, उसी चुनाव में चौटाला उचाना से भी विधायक बन गए और उन्होंने ऐलनाबाद से इस्तीफा दे दिया। अतः इस कारण खाली हुई

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-4

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. बदल सी गई इनेलो की प्रत्याशी घोषित करने की परंपरा चुनाव आयोग के नोटिफिकेशन के अनुसार ऐलनाबाद उपचुनाव लड़ने के इच्छुक उम्‍मीदवार आठ अक्टूबर तक नामांकन दाखिल कर सकते हैं। इसके बाद 11 अक्टूबर को सभी नामांकन पत्रों की जांच होगी। उम्‍मीदवार 13 अक्टूबर तक अपने नाम वापस ले सकेंगे और 30 अक्टूबर को मतदान होगा। अगले महीने दो नवंबर को मतगणना होगी और उसी दिन रिजल्ट घोषित किया जाएगा। स्पष्ट है कि यह लेख आज यानी 5 अक्टूबर को लिखा जा रहा है और कल यानी 6 अक्टूबर को प्रकाशित होगा। नामांकन के लिए केवल दो दिन ही शेष हैं। इनेलो ने अपने निवर्तमान विधायक और प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला को ही फिर से उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी है। बाकी पार्टियों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। ‌महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ समय पहले तक इनेलो अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की खूबी यह रही थी कि वो चुनावों में अपने पत्ते आखिरी समय तक नहीं खोलते थे। वे बाकी पार्टियों द्वारा उम्मीदवार घोषित किये जाने का इं

आखिर कितना उलटफेर कर पाएंगे ओमप्रकाश चौटाला

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.  (चौटाला की जेल से रिहाई पर विशेष लेख) इनेलो और ओमप्रकाश चौटाला का स्वर्णकाल सीटें घट गईं पर वोट प्रतिशत स्थिर रहा मोदी मैजिक, चौटाला को जेल के दौरान इनेलो का प्रदर्शन जेल ने नहीं बल्कि परिवार ने तोड़ डाली इनेलो क्या चौटाला फूँक पाएंगे इनेलो में प्राण किसान आंदोलन का कैसा रहेगा इनेलो पर असर 23 जून 2021 को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के सही मायनों में संस्थापक ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल में सजा पूरी हो गई और 2 जुलाई 2021 को उन्होंने जेल में जाकर इस बारे में कागजी कार्यवाही पूरी कर दी। इसके साथ ही उनका जेल से पूरी तरह से पिण्ड छूट गया (हालांकि कोविड-19 के संक्रमण के चलते वे काफी समय से जेल से बाहर ही थे)। गौरतलब है कि चौटाला जेबीटी शिक्षकों की भर्ती में अनियमितताओं के जुर्म में 2013 से 10 साल की सजा काट रहे थे। जेल जाने से पहले पिछले लगभग 25 वर्षों तक हरियाणा की राजनीति में एक धुरी रहे ओमप्रकाश चौटाला अब फिर से राजनीति के मैदान में अपने जोहर दिखाने के लिए प

गुजरात में बोए गए थे इमरजेंसी के बीज

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.                          (इमरजेंसी 25 जून पर विशेष लेख) घनश्यामभाई ओझा (R)  इंदिरा गांधी , चिमनभाई पटेल(L) क्या था ओझा और पटेल का विवाद गुजरात का भजनलाल किसे कहा जाता है मेस के खाने ने सरकार को कैसे झुकाया क्यों बनी नव निर्माण युवक समिति जेपी नारायण का गुजरात कनेक्शन भारत में इमरजेंसी 25 जून 1975 की रात को घोषित की गई थी। देश को अगले दिन यानी 26 जून को इसका पता चला था। उसी दिन को ध्यान में रखकर तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डरों पर धरनारत किसानों ने 26 जून को काला दिवस मनाने की घोषणा की है। हालांकि 25-26 जून 1975 की रात को इमरजेंसी अचानक घोषित कर दी गई लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसको लगाने के लिए परिस्थितियां उसी समय ही बनी हों। धारणा यह है कि इमरजेंसी इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 जून 1975 के उस फैसले का परिणाम थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली के लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया था। यह भी माना जाता है कि बिहार में जेपी नारायण के आंदोल

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