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गौरक्षा का धर्म ... खतरा या पराक्रम

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  1980 के दशक तक आर्यसमाजी भजनोपदेशक अक्सर यह तुकबंदी कहते हुए सुनाई दे जाते थे कि आजकल इस देश में सबकी इज्जत है सिवाय गऊ और बहू के। यह तुकबन्दी लोगों को अंदर तक झकझोर देती थी। हालांकि उस समय गौकसी और आवारा गौवंश की समस्या इतनी विकराल नहीं थी लेकिन देश में दहेज की कुप्रथा के चलते ज्यादातर नवविवाहिताओं की हालत वाकई काफी खराब थी। ससुरालियों के मनमुताबिक दहेज न लाने पर नवविवाहिता को मारा-पीटा जाता था और उसके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। दहेज के कारण घटित हो रही इन जघन्य घटनाओं ने समाज को झकझोरा, इनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। अतः नवविवाहिताओं को दहेज़ प्रताड़ना से बचाने के लिए संसद द्वारा 1983 में, किसी महिला को उसके पति और उसके रिश्तेदारों के हाथों उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए पारित की गई। यह धारा 498-ए एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। आरोप सिद्ध होने पर इसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माने भी लगाया जा सकता है। लेकिन यह धारा इतनी सख्त बना दी गई थी कि इसके प्रावधान के तहत पति और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया जाता ह

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