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गांधीवाद बनाम भगतसिंहवाद

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.   गांधी जी की 152वीं जयंती को गुजरे एक दिन गुजर चुका है। कल सारा दिन मन कहता रहा कि गांधी जी पर कुछ लिखूँ मगर दिमाग कुछ ज्यादा नहीं सोच पा रहा था। मगर अब कल गुजर चुका है और मन भी शांत है। कुछ लिखना तो बनता ही है। देश को आजाद हुए 74 साल से ऊपर हो गए हैं। आजादी से पहले कड़ा और बेदर्द अंग्रेजी राज था। उनके खिलाफ थोड़ा सा आंदोलन करते ही सरकारी जुल्मोंसितम का सिलसिला शुरू हो जाता था। सरदार भगत सिंह जो कि सोशलिस्ट विचारधारा के थे उन्होंने अपने हिसाब से आजादी का बीड़ा उठाया। उनका रास्ता उग्र था, जरा सा हिंसात्मक भी था। जिस आंदोलन में हिंसा होती है, सरकार या तानाशाह को उसे कुचलने में बड़ी आसानी हो जाती है क्योंकि उसके पास दमनात्मक कार्यवाही को जायज ठहराने के लिए कुछ मैटीरियल हो जाता है। कड़ा दमनचक्र चलता है, इससे ज्यादातर जनता डर जाती है और आंदोलन को जनता की बड़े पैमाने की सपोर्ट नहीं मिल पाती, जनसमुदाय की सपोर्ट के बिना आंदोलन दम तोड़ देता है। रही सही कसर आंदोलन के अगुवाओं को मृत्युदंड आदि भय

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