कांग्रेस के रायपुर महाधिवेशन के मायने
ऐसे में 24 से 26 फरवरी 2023 में होने वाले कांग्रेस महाधिवेशन के लिए कांग्रेसजनों में काफी उत्साह है।
बड़ी विचित्र बात है कि पिछले कुछ समय से देश में कांग्रेस के महाधिवेशनों को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई देती। जबकि देश की आजादी दिलाने से लेकर व काफी समय तक देश की नीतियों का निर्धारण करने में कांग्रेस के महाधिवेशनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस खास रिपोर्ट में रायपुर में होने वाले कांग्रेस के महाधिवेशन पर चर्चा तो होगी ही साथ ही कांग्रेस के पिछले महत्वपूर्ण महाधिवेशनों का भी विश्लेषण किया जाएगा।
रायपुर में कांग्रेस का महाधिवेशन उस समय हो रहा है जब पिछले चार साल में कांग्रेस ने पहली बार किसी विधानसभा चुनाव में भाजपा को सीधे मुकाबले में शिकस्त दी है। हिमाचल में हुई जीत से पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश आया है। यह महाधिवेशन देश के नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से ऐन पहले हो रहा है। इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ तो ऐसे हैं जिनमें कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा के साथ है। रायपुर महाधिवेशन में पारित होने वाले प्रस्ताव कांग्रेस की आगामी चुनावी रणनीति का रुख तय करेंगे। इस महाधिवेशन में नौ राज्यों के चुनावों पर फोकस तो होगा ही साथ ही 2024 के आम चुनावों की तैयारियों को भी अंतिम रूप दिया जाएगा।
कांग्रेस आलाकमान से आ रहे संकेतों के अनुसार रायपुर महाधिवेशन में पार्टी राजनीतिक, आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्र सरकार की विफलता देश की जनता के सामने रखेगी। साथ ही इन मसलों पर अपना विजन भी स्पष्ट करेगी। पिछले साल राजस्थान के उदयपुर में आयोजित नव संकल्प शिविर में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए कई कमेटियों का गठन किया था। उदयपुर नव संकल्प शिविर के बाद कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गांधी ने मिशन-2024 के लिए आठ सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया था। पिछले साल 24 मई को गठित इस टास्क फोर्स में पी. चिदम्बरम, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश, के. सी. वेणुगोपाल, अजय माकन, प्रियंका गांधी वाड्रा, रणदीप सुरजेवाला व सुनील कनूगोलु शामिल थे। इस टास्क फोर्स के प्रत्येक सदस्य को संगठन, संचार और मीडिया, आउटरीच, वित्त और चुनाव प्रबंधन से संबंधित काम सौंपा गया था। टास्क फोर्स को उदयपुर नव संकल्प घोषणाओं और 6 समूहों की रिपोर्ट के आधार पर काम करना था। इस टास्क फोर्स में सात नाम तो जाने पहचाने थे लेकिन सुनील कनूगोलु ज्यादातर लोगों के लिए नया चेहरा था।
दरअसल, सुनील कनूगोलु को प्रशान्त किशोर की जगह चुनावी रणनीतिकार के रूप में शामिल किया गया है जो कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं।
रायपुर महाधिवेशन में इस टास्क फोर्स के सुझावों के आधार पर चुनावी रणनीति तैयार की जाएगी। महाधिवेशन के तुरंत बाद पब्लिक इनसाइट डिपार्टमेंट समेत अनेक कमेटियां बनाई जाना प्रस्तावित हैं। इसके साथ-साथ महाधिवेशन के बाद कांग्रेस पूरे देश में अपना नेटवर्क दोबारा खड़ा करेगी। इसके तहत देशभर में हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक प्रतिनिधि नियुक्त किया जायेगा। सूत्रों का कहना है कि इन प्रतिनिधियों द्वारा भेजे गए फीडबैक के आधार पर ही पब्लिक इनसाइट डिपार्टमेंट, रिपोर्ट तैयार करके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व चुनावी रणनीतियों से जुड़ी सभी कमेटियों को देगा। रायपुर महाधिवेशन में पूरा फोकस इन सभी योजनाओं को अंतिम रूप देने का होगा।
85वां महाधिवेशन रायपुर में ही क्यों?
कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार है जब पार्टी का अधिवेशन छत्तीसगढ़ में किया जाएगा।
पार्टी आलाकमान से जुड़े सूत्रों के अनुसार महाधिवेशन के लिए बड़ा सोच समझकर छत्तीसगढ़ का चयन किया गया है। पार्टी नेता राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आदिवासी वोटर्स को साधने की कोशिश में हैं। इसके लिए वो लगातार आदिवासी वोटर्स पर फोकस कर रहे हैं। इस साल छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में भी चुनाव हैं। इसे देखते हुए ही छत्तीसगढ़ का सिलेक्शन किया गया है। छत्तीसगढ़ में अधिवेशन का असर पड़ोसी राज्यों में भी पड़ेगा। यही वजह है कि कांग्रेस के 85वें अधिवेशन के लिए छत्तीसगढ़ को चुना गया है। और सबसे बड़ी बात राज्य में कांग्रेस सरकार सत्तारूढ़ है ही अतः आयोजन की भव्यता में कोई कोर कसर भी नहीं रहेगी। अगर यह महाधिवेशन भव्य तरीके से आयोजित हो जाता है तो इससे कांग्रेस पार्टी में राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कद और ऊँचा हो जायेगा। सीधी सी बात है कि बघेल इस आयोजन को एक बहुत बड़े चेलेंज के रूप में ले रहे हैं। उनके संगठनात्मक कौशल देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस आलाकमान द्वारा महाधिवेशन का वेन्यू रायपुर में रखा जाना एक व्यवहारिक फैसला है।
कुमारी सैलजा और रायपुर महाधिवेशन
दिसंबर 2022 के पहले सप्ताह में दो खबरें एक साथ आईं। एक तो पी. एल पुनिया की जगह कांग्रेस महासचिव व पूर्व केंद्रीय मंत्री रहीं कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया, दूसरा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फरवरी 2023 में कांग्रेस के महाधिवेशन होने की घोषणा हुई। कांग्रेस आलाकमान इस महाधिवेशन की अहमियत को बखूबी समझ रहा है अतः वह इस मामले में जरा सा भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है। आलाकमान ने कुमारी सैलजा पर भरोसा जताकर रायपुर महाधिवेशन को सफल बनाने की जिम्मेदारी उनको सौंपी है। अनुमान है कि कांग्रेस के इस महाकुंभ में पार्टी के 10 हजार से भी ज्यादा दिग्गज नेता जुटेंगे। इसके साथ-साथ देश-विदेश के हजारों मीडियाकर्मियों की भीड़ भी यहाँ डेरा डालेगी। इस महाधिवेशन के सफल आयोजन की सारी जिम्मेदारी कुमारी सैलजा के कंधों पर है। आखिर उनको इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली कैसे, इस कार्य के लिए क्या कांग्रेस के पास कोई और चेहरा नहीं था।
दरअसल इन सवालों के जवाब पिछले साल सितंबर में छिपे हुए हैं। कुमारी सैलजा सितम्बर 2022 में कांग्रेस की तरफ से छत्तीसगढ़ आई थीं। उस समय उनको भारत जोड़ो यात्रा के बारे में छत्तीसगढ़ में प्रेस वार्ता की जिम्मेदारी मिली थी। उस समय उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी। उन्होंने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सभी नेताओं को साथ लेकर एक टीमवर्क के रूप में काम किया। ऐसे में उनको खूब वाहवाही मिली। उनकी कार्यकुशलता से प्रभावित होकर कांग्रेस आलाकमान ने उनको छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी की महत्वपूर्ण भूमिका सौंप दी।
वैसे भी 24 सितंबर 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में जन्मीं सैलजा ने नई दिल्ली के जीसस सेंट मेरी स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमफिल किया है। यानी वे उच्चशिक्षित भी हैं।
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1990 में महिला कांग्रेस की अध्यक्षा बनने से की। वे दो बार सिरसा व दो बार अंबाला से कुल चार बार लोकसभा सांसद रही हैं। सैलजा 2014 से वर्ष 2020 तक राज्यसभा सदस्य भी रह चुकी हैं। वे यूपीए की दोनों सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं। वे 2005 में राष्ट्रमंडल स्थानीय सरकार फोरम के संचालक मंडल की सदस्य निर्वाचित हुई थीं। सैलजा 2007 में दो वर्ष के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावास की 21वीं शासी परिषद की अध्यक्षा चुनी गई थीं।
उनके पिता चौधरी दलबीर सिंह भी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।
कुमारी सैलजा की मां कलावती का जब मार्च 2012 में निधन हुआ था तब महिला होते हुए भी उन्होंने अपनी मां के अंतिम संस्कार के दौरान मुखाग्नि दी थी। अपने इस बोल्ड स्टेप से वे काफी समय तक चर्चा में रही थीं।
कुमारी सैलजा का सरल सौम्य स्वभाव, उच्च शिक्षित होना, बेहतरीन संगठनकर्ता होना व निर्विवादित होना उनके काम आया है। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि उनकी देखरेख में रायपुर महाधिवेशन कितना कामयाब हो पायेगा। वैसे वे प्रियंका गांधी की उत्तरप्रदेश के हालिया विधानसभा चुनावों की पंचलाइन लड़की हूँ लड़ सकती हूँ पर बिल्कुल फिट बैठती है।
कांग्रेस के हाल-फिलहाल के महाधिवेशन
कांग्रेस का 84वां महाधिवेशन, 85वें प्रस्तावित महाधिवेशन से पांच साल पहले 17, 18 मार्च 2018 को नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। इस महाधिवेशन का थीम ‘वक्त है बदलाव का’ रखा गया था। इसमें कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किया था। उस महाधिवेशन से पहले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने ट्विटर अकाउंट का नाम ऑफिस ऑफ आरजी से बदलकर राहुल गांधी कर लिया था। राहुल गांधी ने इस महाधिवेशन में मोदी सरकार के खिलाफ 5 बुकलेट जारी की थीं। महाधिवेशन में 13 से ज्यादा एजेंडे रखे गए थे। यह राहुल गांधी की अध्यक्षता में होने वाला एकमात्र महाधिवेशन रहा। इसमें राहुल गांधी ने काफी कुछ लीक से हटकर करने का प्रयास किया था मगर वो 2019 में पार्टी को देश की सत्ता नहीं दिला पाए।
यह बताना भी महत्वपूर्ण है कि वह महाधिवेशन भी करीब 7 साल बाद आयोजित हुआ था क्योंकि उससे पहले 83वां महाधिवेशन 18 दिसंबर को 2010 में हुआ था। कांग्रेस में सबसे लंबे समय यानी 22 साल तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी के कार्यकाल में तीन महाधिवेशन हुए थे। अगर इतिहास की बात की जाए तो 138 साल की कांग्रेस के इतिहास में अभी तक 84 महाधिवेशन/अधिवेशन हुए हैं।
कांग्रेस और एओ ह्यूम
1885 में जब कांग्रेस का गठन हुआ उस समय न्यायमूर्ति रानाडे, दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, जी सुब्रहमण्यम अय्यर और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि नेता इसमें शामिल थे। उन्होंने इस राजनीतिक दल के गठन में ह्यूम का पूरा सहयोग लिया। इन भारतीय नेताओं की सोच थी कि वे शुरूआत में ही अंग्रेज सरकार से दुश्मनी नहीं मोल लेना चाहते थे। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का सोचना था कि अगर कांग्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठन का मुख्य संगठनकर्ता, ऐसा आदमी हो जो अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी हो तो इस संगठन के प्रति ब्रिटिश सरकार को ज्यादा संदेह नहीं होगा। इससे कांग्रेस पर ब्रिटिश सरकार के हमलों की गुंजाइश कम होगी।
एक विचारधारा यह है कि जिस समय कांग्रेस की स्थापना हुई, उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड डफरिन थे और उनके इशारे पर ही ये संगठन बना था। यह विचारधारा कहती है कि कांग्रेस इसलिए बनाई गई ताकि 1857 की क्रांति की विफलता के बाद भारतीयों में पनप रहे असंतोष को फूटने से रोका जा सके। इस प्रक्रिया को सेफ्टीवॉल्व का नाम दिया गया।
तत्कालीन गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय ने यंग इंडिया में प्रकाशित अपने एक लेख में सेफ्टीवॉल्व की इस धारणा का इस्तेमाल कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं पर प्रहार करने के लिए किया था। लेकिन कांग्रेस ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ असल तरीके से जबरदस्त तरीके से आंदोलन शुरू किया था। उसके बाद तो कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में कूद पड़ी। उसके बाद तो किसी को भी इस पार्टी की देशभक्ति की भावना पर कोई शंका नहीं रही।
आजादी में कांग्रेस के अधिवेशनों की भूमिका
28 दिसंबर 1885 को केवल 72 सदस्यों के साथ कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई थी। लगभग 138 साल पहले बनीं इस पार्टी ने आजादी की लड़ाई से लेकर देश में सबसे ज्यादा समय तक राज किया है। दरअसल 19वीं शताब्दी में आजादी के आंदोलनों का नेतृत्व करने के लिए देश में कोई बड़ा संगठन नहीं था। ऐसे में एक सेवानिवृत्त आईसीएस अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (एओ ह्यूम) के दिमाग में एक पार्टी का गठन करने का विचार आया और इसी से कांग्रेस पार्टी का गठन हुआ। एओ ह्यूम ने थियोसोफिकल सोसायटी के 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और वकीलों शामिल थे।
- कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद 28 दिसंबर 1885 को कांग्रेस का पहला चार दिवसीय अधिवेशन (वर्तमान में महाधिवेशन) मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ। इस अधिवेशन की अध्यक्षता बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की थी।
- इस अधिवेशन के बाद दूसरा अधिवेशन 27 दिसंबर 1886 को कोलकाता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में हुआ।
- तीसरा अधिवेशन मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुआ जिसकी अध्यक्षता बदरुद्दीन तैयब ने की थी।
- कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में 1888 में हुआ और इसके अध्यक्ष बने जॉर्ज यूल।
- 1888 में इलाहबाद में हुए कांग्रेस के चौथे अधिवेशन में जॉर्ज यूल की अध्यक्षता में नमक कर में कमी एवं शिक्षा पर व्यय में वृद्धि मुख्य मांगे थीं। इस अधिवेशन में संविधान निर्माण पर भी बल दिया गया। इस अधिवेशन में कुल सदस्यों की संख्या 1,248 थी।
- अगले साल 1889 में बम्बई अधिवेशन में विलियम वेडरबर्न के नेतृत्व में मताधिकार की आयु सीमा 21 वर्ष निर्धारित की गई। इस बार सदस्यों की संख्या 1,889 थी।
- 1891 में नागपुर अधिवेशन में पी. आनन्द चारलू के नेतृत्व में कांग्रेस का एक और नाम राष्ट्रीयता रखा गया।
- 1895 में पूना अधिवेशन में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में संविधान पर दुबारा विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ।
- 1896 में कलकत्ता अधिवेशन में रहीमतुल्ला सयानी के नेतृत्व में पहली बार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा वंदेमातरम गाया गया।
- 1899 में लखनऊ अधिवेशन में रमेश चंद्र दत्त की अध्यक्षता में भू-राजस्व के स्थायी निर्धारण की मांग की गई।
- 1901 में कलकत्ता अधिवेशन में दिनशॉ ई. वाचा की अध्यक्षता में महात्मा गांधी पहली बार कांग्रेस के मंच पर दिखाई दिये।
- 1905 में बनारस अधिवेशन में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में अंग्रेज सरकार के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक घोषणा की गई।
- 1906 में कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में स्वराज (स्व सरकार), बहिष्कार आंदोलन, स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षा चार प्रस्तावों को अपनाया गया।
- 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का नरमपंथी और गरमपंथी के रूप में विभाजन हो गया अतः सत्र स्थगित करना पड़ा, इसकी अध्यक्षता रास बिहारी घोष ने की थी।
- 1910 के इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता सर विलियम वेडरबर्न ने की। इसमें एम.ए. जिन्ना ने 1909 के अधिनियम द्वारा शुरू की गई पृथक निर्वाचन प्रणाली की निंदा की।
- 1911 के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार जन-गण-मन गाया गया। इसकी अध्यक्षता बी.एन. धर ने की।
- 1915 के बॉम्बे अधिवेशन में सर एस.पी. सिन्हा की अध्यक्षता में चरमपंथी समूह के प्रतिनिधियों को स्वीकार करने के लिये कांग्रेस के संविधान में बदलाव किया गया।
- 1916 के लखनऊ अधिवेशन में ए.सी. मजूमदार की अध्यक्षता में कांग्रेस के दोनों गुटों नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच एकता हो गई। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच राजनीतिक सहमति बनाने के लिये लखनऊ पैक्ट पर हस्ताक्षर किये गए।
- 1917 के कलकत्ता अधिवेशन में एनी बेसेंट के रूप में किसी महिला ने पहली बार कांग्रेस की अध्यक्षता की।
- 1918 में दिल्ली में पंडित मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में अधिवेशन सम्पन्न हुआ। इसमें गरम दल के सदस्यों की अधिकता के कारण बाल गंगाधर तिलक अध्यक्ष चुने गये। पर उन्हे शिरोल केस के चलते इंग्लैड जाना पड़ा। अन्ततः मालवीय अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन में आत्म निर्णय के अधिकार की मांग की गई।
- 1918 में बॉम्बे में विवादास्पद मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार योजना के संबंध में विशेष सत्र बुलाया गया। अध्यक्षता सैयद हसन इमाम ने की।
- 1919 के अमृतसर अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिया गया।
- 1920 में नागपुर में विजय राघवाचार्य के नेतृत्व में अधिवेशन हुआ। इसमें भाषा के आधार पर देश को प्रान्तों में विभाजित किया गया। कांग्रेस की सदस्यता हेतु वार्षिक शुल्क चन्दा चार आना किया गया। लोकमान्य तिलक के नाम लोकमान्य तिलक स्वराज्य फण्ड की भी स्थापना की गयी।
- 1920 के कलकत्ता के विशेष सत्र में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में महात्मा गांधी ने असहयोग संकल्प को आगे बढ़ाया।
- 1921 के अहमदाबाद अधिवेशन में अध्यक्षता पद हेतु चितरंजन दास का चुनाव किया गया, मगर उनके जेल में होने के कारण इसकी अध्यक्षता हकीम अजमल खां ने की।
- 1922 के गया अधिवेशन में सी.आर. दास और अन्य नेता कांग्रेस से अलग हो गए और स्वराज पार्टी का गठन कर लिया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता सी.आर. दास ने की थी।
- 1924 में बेलगांव के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता पहली बार महात्मा गांधी ने की।
- 1926 में गुवाहाटी में श्रीनिवास आयंगर की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में खद्दर पहनना अनिवार्य घोषित कर किया गया।
- 1927 में मद्रास में एम.ए. अंसारी के नेतृत्व में अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया। साइमन कमीशन के बहिष्कार के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया।
- 1929 में लाहौर के ऐतिहासिक अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में भारत की पूर्ण स्वाधीनता का लक्ष्य पारित हुआ। पूर्ण स्वतंत्रता के लिये सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया। इसी अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई।
- 1931 के कराची अधिवेशन की अध्यक्षता वल्लभभाई पटेल ने की। इसमें मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर संकल्प पारित किए गए। गांधी-इरविन समझौते का समर्थन किया गया। इसी अधिवेशन में महात्मा गांधी लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने के लिये नामांकित लिए गए।
- 1934 के बॉम्बे अधिवेशन में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया।
- 1937 में फ़ैजपुर अधिवेशन में प्रान्तीय स्वशासन के प्रस्ताव के साथ जवाहर लाल नेहरु ने अध्यक्षता की। यह किसी गाँव में होने वाला कांग्रेस का पहला अधिवेशन था।
- 1938 में हरिपुरा गांव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में महात्मा गाँधी के विरोध के बाद भी स्वराज्य का प्रस्ताव पास हुआ।
- 1939 में त्रिपुरी में हुए अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस को फिर से अध्यक्ष चुना गया लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कर लिया।
- 1940 में रामगढ़ में अबुल कलाम आज़ाद की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ।
- लेकिन 1941 से 1945 तक विभिन्न घटनाओं भारत छोड़ो आंदोलन, आरआईएन म्युटिनी व क्रिप्स मिशन, वेवेल योजना और कैबिनेट मिशन जैसी संवैधानिक वार्ताएं चलने के कारण कांग्रेस का कोई भी अधिवेशन आयोजित नहीं हुआ।
- 1946 में मेरठ में कांग्रेस का आज़ादी से पहले का आखिरी अधिवेशन हुआ इसकी अध्यक्षता जेबी कृपलानी ने की थी।
हालांकि, आजादी मिलने के बाद भी कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण अधिवेशन हुए लेकिन देश के लिए आजादी से पहले हुए अधिवेशन बेहद महत्वपूर्ण रहे हैं। इन अधिवेशनों ने आजादी दिलाने में बड़ी भूमिका अदा की है।
चलते-चलते
138 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी में अब तक 89 अध्यक्ष चुने गए हैं। वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की कमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पास है, उनसे पहले 88 लोग कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी ज्यादातर नेहरू-गांधी परिवार के इर्दगिर्द घूमती रही है। राहुल गांधी ने 2019 में 87वें रूप में अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ी थी, जिसके बाद से सोनिया गांधी पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष (88वीं अध्यक्ष) बनाई गई थीं। देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व 50 साल तक नेहरू-गांधी परिवार ने ही किया है। नेहरू-गांधी परिवार में भी कांग्रेस की कमान सबसे ज्यादा सोनिया गांधी के पास रही है, वे 22 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। नेहरू-गांधी परिवार की पाँच पीढ़ियों के छह शख्स कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे चुके हैं। राहुल गांधी से पहले उनके परदादा जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू, खुद जवाहरलाल नेहरू, दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं। इनमें मोतीलाल नेहरू 2 साल, जवाहर लाल नेहरू 13 साल, इंदिरा गांधी 8 साल, राजीव गांधी 6 साल, सोनिया गांधी 22 साल और राहुल गांधी 19 महीने तक अध्यक्ष रहे हैं।
यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि कहीं घूम फिरकर अध्यक्ष पद की कुर्सी फिर से गांधी परिवार के पास तो नहीं चली जायेगी। वैसे भी इस परिवार के अलावा कांग्रेसी किसी और के काबू में आ जाएंगे, लगता नहीं!
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