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कांग्रेस : प्रदर्शन की जगह दर्शन वाली संस्कृति ने डुबोई लुटिया

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चाणक्य मंत्र' मैगजीन में प्रकाशित मेरी  रिपोर्ट   जब मैं पत्रकारिता में नया-नया आया था तो कांग्रेस पार्टी की बीट भी कवर करता था। उसी रिपोर्टिंग के दौरान एक बड़े और स्थापित कांग्रेसी नेता ने मुझे अपनी पार्टी के एक गूढ़ रहस्य से परिचित करवाया। उन्होंने कहा था : "नेहरा साहब, कांग्रेस पार्टी प्रदर्शन की नहीं बल्कि दर्शन की भूखी पार्टी है!" उस कांग्रेसी नेता की यह बात मेरी अमिट स्मृति में बस गई। उनका अभिप्राय यह था कि कांग्रेसी संस्कृति में अगर किसी व्यक्ति को सफल होना है तो उसे ग्राउंड पर काम नहीं करना चाहिए बल्कि इसकी जगह अपने से बड़े नेताओं की परिक्रमा करनी चाहिए। उस समय केंद्र और राज्यों में कांग्रेस बेहद ताकतवर स्थिति में थी और उसके पास बहुत बड़ा कैडर भी था। लेकिन प्रदर्शन की जगह दर्शन वाली संस्कृति के कारण कभी बेहद ताकतवर रही कांग्रेस आज छोटे-छोटे दलों के सामने भी अपने आपको असहाय महसूस कर रही है। भारत की सबसे पुरानी और भूतकाल में बेहद ताकतवर रही कांग्रेस पार्टी की ऐसी दुर्गति क्यों हुई ?  इसका जवाब भी कांग्रेस की 'प्रदर्शन' की जगह 'दर्शन

जीत किसान-मजदूरों की मगर अभी अधूरी

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This is the title of the web page 19th November 2021 आज की सुबह अन्य दिनों की तरह ही हुई थी मगर एक परिचित के फोन ने चौंका दिया। फोन से पता चला कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वे तीन कृषि कानून अचानक वापस ले लिए जिन्हें गेम चेंजर बताया जा रहा था और सरकार इन्हें वापस न लेने की खातिर राजहठ किये हुई थी। अब सरकार कहिये या नरेन्द्र मोदी बात एक ही है। इन कानूनों को वापस लेना कितना शर्मिंदगी और अपमान भरा रहा होगा इस बारे में केवल सोचा ही जा सकता है! शायद यही वजह रही होगी कि नरेन्द्र मोदी ने इसे राष्ट्र को बताने के लिए सुबह-सुबह 9.00 बजे का समय चुना क्योंकि इस समय टीवी पर दर्शकों की संख्या न्यूनतम होती है। अन्यथा अगर क्रेडिट लेने की बात होती तो नरेन्द्र मोदी इसके लिए प्राइम टाइम यानी रात 8.00 बजे को ही चुनते! अब ये भी खोज का विषय हो सकता है कि इस शर्मिंदगी भरे फैसले को सार्वजनिक रूप से बताने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर तैयार क्यों नहीं हुए? क्योंकि वे ही इन नए कृषि कानूनों बारे में संयुक्त किसान मोर्चे से 11 दौर की बातचीत कर चुके थे और मोर्चे को दो टूक कह

नरेन्द्र मोदी को बधाई देना तो बनता ही है

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.      Kisan Mahapanchayat,Muzaffarnagar  बहुत मन था कि आज यानी 5 सितम्बर 2021 को मुजफ्फरनगर में आयोजित हुई संयुक्त किसान मोर्चे की महापंचायत में प्रत्यक्षदर्शी बनूँ। लेकिन पिछले तीन दिन से बुखार-जुकाम-खाँसी ने ऐसा घेरा कि ये इच्छा सिर्फ सपना बनकर रह गई। वैसे आज दोपहर से तबीयत कुछ ठीक है तो इस किसान महाकुंभ पर कुछ लिखना तो बनता ही है। सबसे पहले तो इस आयोजन के लिए मैं ये ही कहूँगा : अवर्णनीय, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय, अदभुत...इनके अलावा मेरे पास शब्द नहीं हैं। Kisan Mahapanchayat,Muzaffarnagar   देश को जब कोरोना का भय दिखाकर देशव्यापी लॉकडाउन के तहत दरवाजों के भीतर बन्द कर रखा था तो केन्द्र सरकार ने अचानक पांच जून 2020 को तीन नए कृषि अध्‍यादेश लागू कर दिए। इसके बाद सरकार ने 14 सितंबर 2020 को इन्हें विधेयक के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया। विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद इसे आनन-फानन में पास करा लिया गया। राज्यसभा में भी विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन वहां भी इस

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