नरेन्द्र मोदी को बधाई देना तो बनता ही है

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Kisan Mahapanchayat,Muzaffarnagar 

बहुत मन था कि आज यानी 5 सितम्बर 2021 को मुजफ्फरनगर में आयोजित हुई संयुक्त किसान मोर्चे की महापंचायत में प्रत्यक्षदर्शी बनूँ। लेकिन पिछले तीन दिन से बुखार-जुकाम-खाँसी ने ऐसा घेरा कि ये इच्छा सिर्फ सपना बनकर रह गई। वैसे आज दोपहर से तबीयत कुछ ठीक है तो इस किसान महाकुंभ पर कुछ लिखना तो बनता ही है। सबसे पहले तो इस आयोजन के लिए मैं ये ही कहूँगा : अवर्णनीय, अकल्पनीय, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय, अदभुत...इनके अलावा मेरे पास शब्द नहीं हैं।

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 देश को जब कोरोना का भय दिखाकर देशव्यापी लॉकडाउन के तहत दरवाजों के भीतर बन्द कर रखा था तो केन्द्र सरकार ने अचानक पांच जून 2020 को तीन नए कृषि अध्‍यादेश लागू कर दिए। इसके बाद सरकार ने 14 सितंबर 2020 को इन्हें विधेयक के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया। विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद इसे आनन-फानन में पास करा लिया गया। राज्यसभा में भी विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन वहां भी इसे पास करा लिया गया। आखिरकार 27 सितंबर 2020 को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए और ये अध्यादेश तीन नए कृषि कानूनों में तब्दील हो गए। बेशक लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने इन कानूनों को पारित होते समय इनका विरोध किया हो लेकिन वह विरोध केवल विरोध के लिए ही था। अगर विपक्ष की सुनी नहीं गई तो उसे सामूहिक रूप से इस्तीफा देकर सड़कों पर उतर जाना चाहिए था लेकिन लगता है विपक्ष में इतना साहस और हिम्मत नहीं थी।

 

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लेकिन किसान 5 जून 2020 से ही सतर्क हो चुका था खासतौर पर पंजाब और हरियाणा का।

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विपक्ष से उम्मीद खोकर किसानों ने खुद ही मोर्चा सम्भाल लिया।

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जब केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई तभी से पंजाब और हरियाणा के किसानों में हलचल शुरू हो गई। हर जगह मीटिंग और धरने शुरू हो गए थे। किसानों को लग रहा था कि शायद किसी गलतफहमी के कारण ये अध्यादेश लाये गए हैं और इन्हें निरस्त नहीं किया जायेगा। लेकिन जैसे ही 14 सितम्बर 2020 को केंद्र सरकार ने इन्हें विधेयक के रूप में पेश किया तो पंजाब और हरियाणा के किसानों का धैर्य जवाब दे गया। दोनों प्रदेशों की किसान यूनियनों ने अपने हर सदस्य को डब्लूटीओ, गैट और पूंजीवाद, कारपोरेट के बारे में शिक्षित और जागरूक करना शुरू किया और इन तीन अध्यादेशों के कुप्रभावों के बारे में विस्तार से बताया गया।

पंजाब के किसान इस क्रांति के अगुवा बने।

25 सितंबर को भारत बंद का आह्वान किया गया। एक अक्टूबर 2020 से किसान संगठनों ने भठिंडा समेत कई जगहों पर रेलवे ट्रैक, टोल प्लाजा पर तंबू लगा दिए। मॉल और वालमार्ट, रिलायंस जैसी कंपनियों के स्टोरों और पेट्रोल पंपों के बाहर धरने शुरू कर दिए। रिलायंस कम्युनिकेशन का बहिष्कार किया गया। टोल प्लाजाओं को फ्री कर दिया गया और रेलवे ट्रैक्स को जाम कर दिया गया। 

उधर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले की पिपली मंडी में 10 सितम्बर 2020 को इन तीनों अध्यादेशों के विरोध में किसान-आढ़ती-मजदूरों ने किसान बचाओ-मंडी बचाओ रैली का आह्वान कर दिया। परंतु राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा सरकार ने हजारों पुलिसकर्मी लगा किसानों और आढ़तियों के नेताओं की जबरन धरपकड़ शुरू कर दी, घरों पर नोटिस लगा दिए गए व जगह-जगह पुलिस नाके लगाकर किसानों-मजदूरों-आढ़तियों को पीपली आने से रोका गया। इसके बावजूद भी जब लाखों की संख्या में किसान-मजदूरों ने कूच किया तो उन पर पर निर्दयता से लाठियां चलाई गईं जिसमें सैंकड़ो युवा-बुजुर्ग गम्भीर रूप से घायल हो गए। लेकिन इस वीभत्स और नृशंस कार्यवाही का पूरे देश और दुनिया में जबरदस्त विरोध हुआ और अंततः सरकार को झुकना पड़ा व किसानों को पीपली में सभा करने की अनुमति देनी पड़ी। इस कायराना कार्यवाही ने पूरे हरियाणा के किसानों को एकजुट कर दिया।

 उधर, देश के  दूसरे राज्यों में भी दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती से आंदोलन शुरु कर दिया गया।

जब किसान-मजदूर संगठनों को लगा कि प्रादेशिक स्तर की बजाए दिल्ली जाकर धरने-प्रदर्शन किए जाएं तो ही केन्द्र सरकार के कानों पर जूँ रेंगेगी। अतः 24 नवंबर 2020 को दिल्ली कूच का आह्वान कर दिया गया। इसको रोकने के लिए हरियाणा, यूपी और केंद्र सरकार ने पुलिसिया दमन के सभी तरीके प्रयोग किये लेकिन किसान दिल्ली बोर्डरों पर पहुँच गए। केंद्र सरकार के अधीन दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की किलेबंदी कर दी मानों दिल्ली में किसान नहीं बल्कि दुश्मन घुसने का प्रयत्न कर रहे हों। अंततः दिल्ली बोर्डरों पर ही अनिश्चितकालीन धरने शुरू हो गए। किसानों की आईटी सेल ने सत्तारूढ़ पार्टी की आईटी सेल (जो कि उसकी सबसे बड़ी ताकत थी) कि ईंट से ईंट बजा दी। किसान आंदोलन अब जनांदोलन बन चुका था। किसान आईटी सेल ने जब देशवासियों को बताया कि तीन नए कृषि कानूनों में से एक 


'आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक' किसान विरोधी ही नहीं बल्कि जनविरोधी भी है।


क्योंकि यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। मतलब इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।

किसानों ने देशवासियों को बताया कि यह कानून न सिर्फ उनके लिए बल्कि आम व्यक्ति के लिए भी खतरनाक है। इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहाँ है? सीधा सा मतलब है कि देश की रोटी पूंजीपतियों की तिजोरी में कैद हो जायेगी।


इस जनजागरण से केंद्र सरकार दबाव में आई और किसानों से 12 दौर की बात हुई लेकिन वह इन कानूनों को वापस न लेने की हठधर्मिता पर अड़ गई।

इस बीच 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसान ट्रेक्टर परेड के बहाने किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की गई। 

 लेकिन जनता, सरकार की सभी चालें समझ चुकी थीं। अतः इस प्रकरण के चलते किसान आंदोलन पहले से ज्यादा मजबूत हो गया।

इससे पहले ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जो गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि थे, उन्होंने भी अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। हालांकि इसकी वजह कोविड को बताया गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत में चल रहे किसान आंदोलन की सुर्खियां भी इसकी अहम वजह रही।

 

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26 जनवरी 2021 के बाद अभी तक केंद्र सरकार से बातचीत का कोई न्योता नहीं आया।

किसान आंदोलन को नई संजीवनी मिली जब पश्चिम बंगाल के चुनावों में उन्होंने भाजपा को हराने का आह्वान किया और भाजपा वहां धूल चाट गई।


अब किसान नेताओं की नजर उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों पर है। आज 5 सितम्बर 2021 को मुजफ्फरनगर से इसका विधिवत रूप से एलान कर दिया गया है। जिस हिसाब से यहाँ भीड़ उमड़ी है और ये सिलसिला अगर आने वाले दिनों में इसी तरह जारी रहता है तो किसान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हो जाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।


मसला यूपी चुनाव का नहीं है, तीन नए कृषि कानूनों ने जिस तरह सम्पूर्ण भारत के किसान-मजदूरों को एकजुट किया है वह अभूतपूर्व है। आप किसान धरनास्थलों पर जाकर किसानों से बात करके देखिये। उनकी विषय पर पकड़ देखकर हैरान रह जाएंगे। इस आंदोलन ने एक बार फिर ये धारणा मजबूत की है कि अहिंसा के प्रयोग से असम्भव को सम्भव बनाया जा सकता है। सरकार चाहती है कि किसान आंदोलन हिंसक हो मगर किसानों का धैर्य काबिले तारीफ है।

महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक हैं।


चलते-चलते


ये किसान आंदोलन आजादी के बाद के भारत का पुर्नजागरण (Renaissance) साबित होगा और इसके विश्वव्यापी प्रभाव होंगे।

नरेन्द्र मोदी के हिस्से में कम से कम ये एक उपलब्धि तो लिखी ही जायेगी। अतः उन्हें बधाई देना तो बनता ही है


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)

अमित नेहरा  
सम्पर्क : 9810995272
amitnehra007@gmail.com
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