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काश, स्काईलैब हमारे घर पर गिर जाये !

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. 1979 की जुलाई का महीना, स्काईलैब मुझे तो उस समय के बारे में कोई जानकारी नहीं क्योंकि ठीक से होश ही नहीं सम्भाला था। मगर पिताजी बताते हैं कि देश में डर का माहौल चरम पर था। वजह थी अमेरिकी स्पेस स्टेशन स्काईलैब बेकाबू होना और अंदेशा था कि यह विश्व में कहीं पर भी गिरकर व्यापक तबाही ला सकता है। उस समय न इंटरनेट था और न ही आजकल की तरह टीवी न्यूज चैनलों की बाढ़ थी। त्वरित सूचना का मुख्य स्त्रोत रेडियो ही था, समाचार पत्र तो अगले दिन ही सूचना पहुँचा पाते थे। सूचना का बहुत ज्यादा होना और बहुत कम होना दोनों ही जनमानस में अफरा-तफरी मचाते हैं। उस समय सूचना के कम होने से अफरातफरी मची। अगर ज्यादा सूचना का उदाहरण देखा जाये तो आजकल इसका हालिया उदाहरण आक्सीजन और रेमडेसीविर दवा की किल्लत होना है, वजह यह है कि लोगों के पास इतनी ज्यादा सूचना पहुँच गई कि कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए ये दोनों बेहद जरूरी हैं। अतः बहुत से लोगों ने इनको स्टोर करना शुरू कर दिया, नतीजा अफरा-तफरी मच गई। वापस स्काईलैब पर

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