काश, स्काईलैब हमारे घर पर गिर जाये !
Right Click is disabled for the complete web page.
1979 की जुलाई का महीना,
स्काईलैब |
मुझे तो उस समय के बारे में कोई जानकारी नहीं क्योंकि ठीक से होश ही नहीं सम्भाला था। मगर पिताजी बताते हैं कि देश में डर का माहौल चरम पर था। वजह थी अमेरिकी स्पेस स्टेशन स्काईलैब बेकाबू होना और अंदेशा था कि यह विश्व में कहीं पर भी गिरकर व्यापक तबाही ला सकता है। उस समय न इंटरनेट था और न ही आजकल की तरह टीवी न्यूज चैनलों की बाढ़ थी। त्वरित सूचना का मुख्य स्त्रोत रेडियो ही था, समाचार पत्र तो अगले दिन ही सूचना पहुँचा पाते थे। सूचना का बहुत ज्यादा होना और बहुत कम होना दोनों ही जनमानस में अफरा-तफरी मचाते हैं। उस समय सूचना के कम होने से अफरातफरी मची।
अगर ज्यादा सूचना का उदाहरण देखा जाये तो आजकल इसका हालिया उदाहरण आक्सीजन और रेमडेसीविर दवा की किल्लत होना है, वजह यह है कि लोगों के पास इतनी ज्यादा सूचना पहुँच गई कि कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए ये दोनों बेहद जरूरी हैं। अतः बहुत से लोगों ने इनको स्टोर करना शुरू कर दिया, नतीजा अफरा-तफरी मच गई।
वापस स्काईलैब पर आते हैं जो 78 टन वजनी स्पेस स्टेशन था। इसे अमेरिका ने 1973 में अंतरिक्ष में छोड़ा था। अगले चार साल तक स्काईलैब ठीक से काम करता रहा लेकिन 1977-78 के दौरान उठे भयंकर सौर तूफान से स्काईलैब के सौर पैनल खराब हो गए। नासा ने इसकी मरम्मत करने की भरपूर कोशिश की लेकिन बात बनी नहीं। धीरे-धीरे ये स्काईलैब अंतरिक्ष से फिसलकर धरती पर गिरने लगा। अमेरिका ने स्काईलैब के धरती पर गिरने की घोषणा सार्वजनिक कर दी। आशंका यह भी जताई गई थी कि वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद इसका मलबा भारत पर गिर सकता है। चूँकि उस समय संचार के साधन सीमित थे। अतः जैसे-जैसे स्काईलैब के धरती पर गिरने की तारीख पास आती गई, भारत में दहशत बढ़ती गई। हर जगह, हर चौपाल व हर घर में इसके गिरने पर चर्चा छिड़ गई। आकाशवाणी के हर समाचार बुलेटिन में बताया जाने लगा कि स्काईलैब की स्थिति कहाँ है। लोगों में डर बैठ गया कि धरती खत्म होने वाली है। अतः कुछ दुस्साहसी लोग तो अपनी जायदाद तक बेच-बाचकर अपने अपूर्ण शौक और इच्छाएं पूरा करने तक में जुट गए। वैश्विक बिरादरी में भी अमेरिका पर स्थिति को सही तरीके से हैंडल करने और सही-सही सूचनाएं देने का दबाव पड़ा। इसलिए अमेरिका ने हर देश में स्थित अपने दूतावास में एक विशेष दूत की नियुक्ति की। जिसका काम संबंधित देश की सरकार को स्काईलैब से जुड़ी जानकारियां मुहैया करवाना था। भारत में थॉमस रेबालोविच को यह जिम्मेदारी दी गई थी।
आखिरकार 12 जुलाई 1979 को स्काईलैब ने धरती के वायुमंडल में प्रवेश किया। भारत में सभी राज्यों में पुलिस किसी भी अनहोनी के लिए हाईअलर्ट पर रखी गई थी। लेकिन स्काईलैब का मलबा ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच हिंद महासागर में गिर गया। हालांकि इसके कुछ टुकड़े पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे एस्पेरेंस पर भी गिरे लेकिन राहत की बात यह रही कि इनसे किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ।
लॉंग मार्च 5बी |
चिंता की बात यह है कि मई 2020 में भी चीन का ही एक रॉकेट पश्चिमी अफ्रीका और अटलांटिक महासागर में गिर गया था। पश्चिमी अफ्रीका के एक गांव कोटे डि इवॉयर को इस रॉकेट के मलबे ने बर्बाद कर दिया था। सौभाग्य से इस गांव में कोई नहीं रहता था।
अगर इससे पहले अंतरिक्ष से आई बला पर नजर डाली जाये
तो वर्ष 1991 में 43 टन का सोवियत स्पेस स्टेशन सल्यूट-7 धरती पर अनियंत्रित तरीके से गिर गया था। इसने अर्जेंटीना में तबाही मचाई थी। इससे सबक लिया गया। सोवियत संघ से टूटकर बने रूस का मीर अंतरिक्ष स्टेशन 2001 में अनियंत्रित हो गया था लेकिन तब इस स्टेशन को नियंत्रित करते हुए इसे सुरक्षित रूप से प्रशांत महासागर में गिरा दिया गया था। अतः कोई जनहानि नहीं हुई।
सल्यूट-7 |
संसार के सामने अब इस तरह के अनियंत्रित रॉकेटों/उपग्रहों से खतरा है। वे कभी भी और कहीं भी गिरकर तबाही मचा सकते हैं। इसी के चलते संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच लॉंग मार्च 5बी रॉकेट को लेकर ठन गई थी। अमेरिका ने चीन पर लापरवाही का आरोप लगाया था। भविष्य में विभिन्न देशों में ऐसे आरोप-प्रत्यारोप और बढ़ेंगे। अतः उपग्रह कार्यक्रमों में संयम और नियंत्रण बेहद जरूरी है, नहीं तो ये धरती के विनाश का कारण बन सकते हैं।
और हाँ, काश, स्काईलैब हमारे घर पर गिर जाये इस वाक्य से यह लेख शुरू क्यों किया गया, ये जिज्ञासा तो आपको जरूर होगी। दरअसल, पिताजी बताते हैं कि स्काईलैब के धरती पर गिरने के दौरान देश में बड़ी चिंता का माहौल था। हर कोई अपनी जान व माल के प्रति चिंतित था। अमेरिका ने घोषणा कर दी थी कि अगर स्काईलैब से कहीं भी जान-माल की हानि होगी तो वह उसका उचित मुआवजा देगा। ऐसे में पिताजी को लोगों के दिलों से डर निकालने का आइडिया आया। उन्होंने लोगों के बीच कहना शुरू कर दिया कि मेरी इच्छा है कि जब मैं और मेरा परिवार घर पर न हों तो स्काईलैब हमारे घर पर गिर जाये, इससे अमेरिका हमें डॉलर देगा! इसका अड़ोस-पड़ोस के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और उन्होंने स्काईलैब से काफी हद तक डरना छोड़ दिया।
मगर क्या अमेरिका मुआवजा देता ?
जब स्काईलैब का मलबा ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच हिंद महासागर में गिरा तो इसके कुछ टुकड़े पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के एक कस्बे एस्पेरेंस पर भी गिर गए थे लेकिन इनसे किसी तरह के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। इस पर एस्पेरेंस के स्थानीय निकाय विभाग ने अमेरिका पर 400 डॉलर का जुर्माना लगा दिया था मगर अमेरिकी सरकार ने यह जुर्माना आज तक नहीं भरा है। बस इतना जरूर हुआ कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ऑस्ट्रेलिया सरकार से माफी मांग ली थी। ऐसे में अच्छा ही हुआ कि स्काईलैब हमारे घर पर नहीं गिरा, केवल माफी से तो घर की क्षतिपूर्ति नहीं हो पाती!
All rights reserved
👍💐🙏🏻
जवाब देंहटाएंwell done!
जवाब देंहटाएं