नए रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की चुनौतियां

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जयंत चौधरी  

मुख्य बिंदु

●जयंत चौधरी के रालोद प्रमुख बनने के मायने
●क्या जयंत अपने दादा या पिता की जगह ले पाएंगे ?
●आपका लाठी चलाने का हक है तो मेरा अपने लोगों के साथ खड़े होने का हक है
●बाबा यह भी बता दें कि गिरफ्तारी कहाँ देनी है ?

जनवरी 2020 में दिल्ली के लुटियंस जोन में मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित एक मिलन समारोह में शामिल एक ऊर्जावान युवा ने बरबस मेरा ध्यान खींचा। जब उनसे बातचीत हुई तो पता चला कि वे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी हैं। 
आज यानी 25 मई 2021 को यही जयंत चौधरी विधिवत रूप से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। यह पद उनके पिता चौधरी अजित सिंह के 6 मई 2021 को हुए निधन से खाली हो गया था।

जयंत चौधरी का रालोद अध्यक्ष चुना जाना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है भविष्य में उनकी राजनीतिक रणनीतियाँ कैसी रहेंगी, क्या वे अपने दादा स्व. चरणसिंह की तरह देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुँच पाएँगे, क्या वे अपने पिता स्व. अजित सिंह की तरह चार बार केंद्रीय मंत्री, 7 बार लोकसभा सांसद व एक बार राज्यसभा सांसद बन पाएंगे ? ये सवाल सबके जेहन में हैं।

आइये चर्चा करते हैं कि जयंत का भूत क्या था, वर्तमान क्या है और भविष्य में उनकी चुनौतियां क्या रहेंगी।

27 दिसंबर 1978 को संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास राज्य के डलास शहर में जन्मे जयंत चौधरी लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से पोस्ट ग्रैजुएट हैं। वे पंद्रहवी लोकसभा 2009 में उत्तर प्रदेश के मथुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं। उसके बाद वे 2014 में मथुरा सीट पर हेमा मालिनी से और 2019 में बागपत सीट पर सत्यपाल सिंह से हार भी चुके हैं।


हाल ही में उनके पिता चौधरी अजित सिंह का कोरोना संक्रमण से निधन हुआ है। उधर रालोद की हालत भी 2013 से ठीक नहीं है। क्योंकि 2013 में यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में हुए साम्प्रदायिक दंगों ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सारे राजनीतिक समीकरण बदल दिए। इन दंगों के बाद यहाँ की राजनीति किसानी पर नहीं बल्कि धर्म पर आश्रित हो गई। इसके चलते 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद का पूरी तरह सफाया हो गया। खुद अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी, दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी परिस्थितियां नहीं बदलीं 2017 के उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में रालोद 403 विधानसभा सीटों में से महज एक सीट पर ही जीत पाई। दो साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अजित सिंह और जयंत चौधरी दोनों को हार का सामना करना पड़ा और पार्टी को लोकसभा में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।

अब जयंत के सामने दो चुनौतियाँ हैं। पहली तो उनके मार्गदर्शन के लिए चौधरी अजित सिंह जैसा अनुभवी सलाहकार और कद्दावर राजनेता नहीं है। इस कमी की भरपाई तो असम्भव है।

दूसरी चुनौती यह कि वे अपनी पार्टी के बिखरे जनाधार को वापस कैसे लाएं। सौभाग्य से इस समय उत्तर भारत में चल रहे किसान आंदोलन ने उनकी राह आसान कर दी है। जिस तरह चौधरी अजित सिंह ने 28 जनवरी 2021 को लगभग मृतप्रायः हो चुके किसान आंदोलन में जान फूँक दी थी, उसका लाभ निश्चित तौर पर रालोद और जयंत चौधरी को मिलेगा। दरअसल इस आंदोलन ने मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद पश्चिम उत्तरप्रदेश के किसानों में जाति-पाति और धर्म की दीवारों को काफी हद तक गिरा दिया है। इस आंदोलन का पश्चिम उत्तरप्रदेश के लगभग 20 जिलों में व्यापक असर है। यहाँ निवास कर रही आठ करोड़ की आबादी में लगभग 120 विधानसभा और 20 लोकसभा सीटें आती हैं। रालोद का इस क्षेत्र में शुरू से ही व्यापक प्रभाव रहा है। जयंत चौधरी ने हाल ही में जिस तरह राजनीतिक दृढ़ता और चतुराई का परिचय दिया है उससे लगता है कि अगर वे लगातार मेहनत करते रहे तो उनको सफलता मिलनी निश्चित है।

जयंत चौधरी 4 अक्टूबर 2020 को हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिवार से मिलने उनके गांव बुलगढ़ी गए तो पुलिस ने अचानक उन पर लाठीचार्ज कर दिया। इस पर जयंत ने कहा था अगर आपका लाठी चलाने का हक है तो मेरा अपने लोगों के साथ खड़े होने का हक है। खूब लाठी चलाओ, हमारा निश्चय उतना ही मज़बूत होगा। इस प्रकरण ने जयंत चौधरी को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया।


इसके बाद तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ रालोद नेता जयंत चौधरी ने 9 फरवरी 2021 को अलीगढ़ के मुरवार पैंठ, इगलास में बगैर प्रशासन की अनुमति के किसान महापंचायत आयोजित कर दी। पुलिस ने उनके और 5000 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी। इस पर जयंंत चौधरी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिए बगैर उन पर करारा हमला बोला और कहा कि बाबा यह भी बता दें कि गिरफ्तारी कहाँ देनी है। इससे जयंत चौधरी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता में जबरदस्त इजाफा हुआ।

ऐसे संकेत आ रहे हैं कि आने वाले 2022 के उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव रालोद और समाजवादी पार्टियां मिलकर लड़ेंगी।

अगर ऐसा हो गया तो यह एक तरह से समय के चक्र को वापस घुमाने वाली बात होगी। क्योंकि 5 दिसम्बर 1989 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के लिए जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह और अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह के बीच मुकाबला हुआ था जिसमें अजित सिंह मात्र 5 विधायकों के अंतर से हार गए थे। मुलायम सिंह को 115 और अजित सिंह को 110 विधायकों का समर्थन मिला था। इस घटना के बाद अजित सिंह और मुलायम सिंह के रास्ते अलग-अलग हो गए थे। इस घटना ने उत्तरप्रदेश और बिहार में चौधरी चरणसिंह की विरासत को नया मोड़ दे दिया था।

अब देखना है कि क्या जयंत चौधरी रालोद का बीता हुआ वक्त वापस लाने में कामयाब हो पाएंगे ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)

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