हरियाणा के पहले शिक्षा मंत्री प्रोफेसर महासिंह नेहरा

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 प्रोफेसर महासिंह नेहरा जी को आदरांजलि


गाँव निंदाना निवासी, महम के पूर्व विधायक और हरियाणा के पहले शिक्षा मंत्री प्रोफेसर महासिंह नेहरा का 94 वर्ष की उम्र में 5 मई 2021 की सुबह 7 बजे निधन हो गया। प्रोफेसर महासिंह नेहरा महम विधानसभा क्षेत्र से 1967 में पहले विधायक बने थे और राव वीरेंद्र सिंह की सरकार में जगह बनाई थी।

गाँव के नाते में वो मेरे दादाजी लगते थे। मेरी उनसे आखिरी मुलाकात 5 जून 2017 को रेवाड़ी जिले के प्राणपुरा गाँव में आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी। वो बेहद विनम्र और सुलझे हुए इंसान थे और हर परिचित-अपरिचित व्यक्ति के सुख और दुःख में शरीक होते थे। उनके पास कोई भी जरूरतमंद आ जाता तो वे तुरंत उसकी मदद को तैयार हो जाते थे। अतः इलाके में उनका यश और कीर्ति खूब फैली।

प्रोफेसर महासिंह नेहरा 

मुझे उनसे जुड़ा एक किस्सा बेहद पसंद है जो पिताजी मुझे सुनाया करते हैं।
हमारा पैतृक गाँव निंदाना (रोहतक) है लेकिन माँ और पिताजी दोनों सरकारी अध्यापक थे। दोनों का ट्रांसफर गाँव चांग (भिवानी) में हो गया। माँ-पिताजी को चांग की आबोहवा इतनी पसन्द आई कि उन्होंने वहीं स्थाई रूप से बसने का फैसला कर लिया। अतः वहाँ मेन रोड पर एक बड़े विशाल भूखंड पर घर बनाया और खेती की जमीन भी खरीद ली। जिंदगी अपनी रफ्तार से मजे से चल रही थी।

चांग की भौगोलिक स्थिति भिवानी के नजदीक थी। भिवानी पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बंसीलाल की राजनीति का गढ़ रहा है। इसके चलते पिताजी भी राजनीतिक रूप से बंसीलाल परिवार के काफी नजदीक हो गए। वर्ष 1982 में भजनलाल के नेतृत्व में सूबे में नई कांग्रेसी सरकार अस्तित्व में आई। हालांकि बंसीलाल के चमकदार कैरियर को कांग्रेस पार्टी में बड़ा झटका लग चुका था। लेकिन फिर भी बंसीलाल ग्रुप के लोगों की शासन-प्रशासन में पकड़ बरकरार थी। लचीलापन भजनलाल की रणनीति थी जिसके दम पर उन्होंने जमीनी स्तर पर पकड़ न होते हुए भी सत्ता का सुख भोगा। अतः किसी के काम बहुत ज्यादा अटकते नहीं थे, हो ही जाते थे।

खैर, वर्ष 1983 में रिश्ते में मेरे चाचा पृथ्वी सिंह जो बंसीलाल गुट में बड़ा प्रभाव रखते थे ने बिना चर्चा या सहमति के ही पिताजी और माँ दोनों का ट्रांसफर गांव चांग से भिवानी शहर में करवा दिया। जब ट्रांसफर की ये लिस्ट जारी हुई तो पिताजी ने तो इसे सहजभाव से लिया मगर माँ बेहद परेशान हो गईं। माँ ने पिताजी पर ट्रांसफर वापिस करवाने का दबाव बना दिया साथ ही पृथ्वी सिंह को भी कोसने लगीं कि अच्छी भली जिंदगी चल रही थी खामख्वाह डिरेल कर दी।
अब क्या किया जाये ?

ऐसे में एक आशा की किरण थी। सिरसा निवासी जगदीश नेहरा इस मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री बन चुके थे। एक तो सहगोत्री होने से और दूसरे हर किसी की मदद करने के उनके स्वभाव से पिताजी को लगा कि शायद जगदीश नेहरा के पास जाने से दोनों के ट्रांसफर कैंसिल हो सकते हैं। लेकिन समस्या यह थी कि पिताजी का जगदीश नेहरा से सीधा परिचय नहीं था। पिताजी ने सोचा हो या न हो पूर्व मंत्री प्रोफेसर महासिंह नेहरा के जगदीश नेहरा से जरूर घनिष्ठ संबंध होंगे।

अतः वे अपने चाचा यानी प्रोफेसर महासिंह नेहरा के पास इस बारे में मदद माँगने पैतृक गांव निंदाना पहुँच गए। प्रोफेसर साहब को अपनी समस्या बताई। सुनते ही प्रोफेसर महासिंह बोले : भाई खूब जानता हूँ जगदीश नेहरा को, बहुत बढ़िया आदमी है, चल अभी जगदीश नेहरा के पास चलते हैं। कहूँगा कि आपके होते हुए भी अपने आदमी तँग हो रहे हैं तो क्या फायदा है ऐसे मंत्रिपद का ?

अतः दोनों उसी समय रोडवेज की बस में बैठकर जगदीश नेहरा के सिरसा निवास पर पहुँच गए। जगदीश नेहरा ने प्रोफेसर महासिंह को आया देखकर खूब आवभगत की और बोले पहले खाना खाओ फिर बात करेंगे।
खाना खा-पीकर प्रोफेसर साहब और पिताजी जगदीश नेहरा के पास जा बैठे। जगदीश नेहरा ने प्रोफेसर महासिंह से पूछा : अब बताओ कैसे आना हुआ ?
प्रोफेसर महासिंह : ये मेरा भतीजा है और इन दोनों मियां-बीबी का तबादला भिवानी हो गया है, उसे कैंसिल करना है।
जगदीश नेहरा : भिवानी में किस गाँव में हुआ है ?
पिताजी : जी, प्रॉपर भिवानी शहर में हो गया है।
जगदीश नेहरा : अभी कहाँ कार्यरत हो ?
पिताजी : जी, चांग में।
जगदीश नेहरा : ये चांग कोई शहर या कस्बा है क्या ?
पिताजी : जी नहीं, ये भिवानी जिले का एक गांव है।
ये सुनकर जगदीश नेहरा ने गुस्से में कहा मैं तुम्हारा ये काम हरगिज़ नहीं करूँगा और अगर पता लग गया कि आपने किसी और चैनल से ये काम करवा लिया तो दुबारा ट्रांसफर कर दूँगा !
ये सुनते ही कमरे में मायूसी और खामोशी छा गई।
प्रोफेसर महासिंह की तो हिम्मत नहीं हुई मगर पिताजी ने जगदीश नेहरा से पूछ लिया कि आप मेरा काम क्यों नहीं करना चाहते ?
इस पर जगदीश नेहरा ने कहा : आप लोग अजीब आदमी हो, लोग तो गाँव से शहर में ट्रांसफर करवाने के लिए सिफारिशें लगवाते हैं, रिश्वत तक देने के लिए तैयार हो जाते हैं। वजह यह है कि शहर में हर तरह की सुख-सुविधाएं होती हैं, बच्चों को पढ़ाने के लिए बेहतरीन शिक्षण संस्थान होते हैं, शहर में रहकर व्यक्ति का एक्सपोजर बढ़ता है और बाकी संसार में क्या हो रहा है इससे अपडेट रहा जा सकता है। ये तो जीवनस्तर को ऊपर उठाने का बेहतरीन मौका है, लेकिन आप हैं कि कुएँ के मेंढ़क बने रहना चाहते हो!

ये सुनते ही पिताजी और प्रोफेसर महासिंह नेहरा को दलीलें अच्छी तरह समझ में आ गईं।
जगदीश नेहरा ने कहा कि कोई सार्थक काम करवाना हो तो मेरे पास किसी भी समय आ सकते हो लेकिन ऐसे कामों के लिए मेरे पास आने की जरूरत नहीं है।
जगदीश नेहरा ने प्रोफेसर महासिंह नेहरा को टोकते हुए कहा कि आप तो खुद मंत्री रह चुके हैं आपको तो स्वयं इनको ये बात कहनी चाहिये थी। लेकिन आप तो गलत सिफारिश करवाने के लिए इनके साथ ही आ गए!
प्रोफेसर महासिंह नेहरा ने जवाब दिया : ये मेरा भतीजा है, अगर मैं इसके साथ ना आता तो ये बुरा मान जाता। मुझे तो जो भी काम करवाने की कहेगा तो मेरा फर्ज उसकी मदद करना है।
इस पर जगदीश नेहरा ने हँसते हुए कहा बात तो आपकी भी ठीक है।

अलविदा दादा जी


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