ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-17

बात उस प्रत्याशी की जिसने न पार्टी बदली न आस्था

अभी तक के लेखों में हमने ऐलनाबाद उपचुनाव में उतरे कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के बारे में चर्चा कर ली। आज चर्चा तीसरी पार्टी इनेलो और उसके उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला के बारे में होगी।

यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के उम्मीदवार दल-बदलू हैं यानी पवन बेनीवाल उपचुनाव से महज एक महीना पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं। गोविंद कांडा तो नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया के दौरान ही बीजेपी में शामिल हुए और उन्हें पार्टी का टिकट थमा दिया गया। एक मजेदार बात यह भी रही कि गोविंद कांडा हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के उपाध्यक्ष थे मगर उन्होंने बीजेपी में शामिल होने पर हलोपा को छोड़ने की विधिवत घोषणा नहीं की। उस पर गजब यह भी है कि हलोपा के एकमात्र विधायक और उनके सगे भाई गोपाल कांडा खुद उनका चुनाव प्रचार कर रहे हैं!

खैर हम वापस इनेलो और अभय सिंह चौटाला पर आते हैं। देखा जाए तो अभय चौटाला वाकई जमीन से जुड़े नेता हैं। अभय के पॉलिटिकल कैरियर की शुरूआत चौटाला गांव से पंचायत चुनाव में उप सरपंच की सीट जीतने से शुरू हुई। साल 2000 में उन्होंने रोड़ी विधानसभा उपचुनाव में इनेलो की टिकट पर जीत हासिल की। साल 2005 में वे सिरसा जिला परिषद के चेयरमैन चुने गए। वे वर्ष 2009 के ऐलनाबाद उपचुनाव में जीत गए। इसके बाद 2014 और 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में वे फिर से ऐलनाबाद से विधायक निर्वाचित हो गए। इस वर्ष 27 जनवरी को उन्होंने नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसी वजह से अब ऐलनाबाद में उपचुनाव हो रहा है।

स्पष्ट है कि अभय सिंह चौटाला पंचायत से लेकर विधायक तक के चुनाव लड़कर जीत चुके हैं तो उन्हें चुनावी रण की सभी बारीकियों का पता है साथ ही वे 2009 से लगातार ऐलनाबाद से विधायक बने हुए हैं अतः हल्के में मतदाताओं पर उनकी पकड़ बेहद मजबूत है। इसके साथ ही उन्होंने कभी इनेलो का दामन भी नहीं छोड़ा। उनके पिता व प्रदेश के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का भी उनपर वरदहस्त है। सबसे बड़ी बात यह भी है कि ओमप्रकाश चौटाला जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले में अपनी सजा पूरी करके जेल से बाहर भी आ चुके हैं। अतः उनपर चुनाव प्रचार करने पर कोई बंदिश भी नहीं है। जेजेपी ने जब तक बीजेपी की नीतियों का विरोध किया तब मतदाताओं के एक बड़े तबके ने जेजेपी का साथ दिया लेकिन जैसे ही जेजेपी बीजेपी को समर्थन देकर सरकार में शामिल हुई, इस तबके का जेजेपी से मोहभंग हो गया। वैसे भी जेजेपी इस उपचुनाव में सीधे तौर पर चुनाव नहीं लड़ रही अतः उस पर इस उपचुनाव के नतीजों का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन जेजेपी-बीजेपी के सांझा उम्मीदवार का सीधा मुकाबला इनेलो प्रत्याशी के साथ है अतः एक ही परिवार के सम्बन्धों में खटास और ज्यादा बढ़ती दिखाई दे रही है।

इस पूरे विश्लेषण का अर्थ यह नहीं है कि इस उपचुनाव में सारी बातें इनेलो और अभय सिंह चौटाला के अनुकूल हैं। एक हरियाणवी कहावत है कि जागू से लागू ज्यादा कामयाब होता है अर्थात जागरूक से ज्यादा कामयाब वह होता है जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार प्रयास करता रहे। कहने का मतलब यह है कि जो उम्मीदवार और जो पार्टी यहाँ जितनी ज्यादा मेहनत करेगी विजयश्री उसके हिस्से में आयेगी। अन्यथा कौन सोच सकता था कि गांधी परिवार को भी कभी अमेठी लोकसभा में हार का सामना करना पड़ सकता है!

चलते-चलते

बड़ा नेता आए तो भी इकट्ठा नहीं कर सकते भीड़

कोविड गाइड लाइन के तहत चुनाव आयोग की हिदायतों के अनुसार ऐलनाबाद उपचुनाव में किसी भी पार्टी को रोड शो की अनुमति नहीं होगी। वाहनों का बड़ा काफिला भी प्रतिबंधित रहेगा और बाइक रैली नहीं निकाली जा सकेगी। आयोग ने घर-घर जनसंपर्क में भी पांच व्यक्तियों को अनुमति दी है। इससे ज्यादा लोग इकट्ठे होकर वोट नहीं मांग सकते।

मीटिंग के लिए दिशा निर्देश हैं। जिसके तहत इंडोर में कुल क्षमता का 30 फीसद या फिर 200 व्यक्तियों से अधिक की भीड़ मीटिंग का हिस्सा नहीं हो सकती। इसी तरह खुले में क्षमता का 50 फीसद या हजार व्यक्ति से अधिक भीड़ नहीं हो सकती। वो भी उस स्थिति में जब स्टार कंपेनर की मीटिंग रखी गई हो वरना 500 से अधिक की अनुमति नहीं होगी।

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क्रमशः

 

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