ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-16
ऐलनाबाद में एक पोस्टर बरबस ध्यान खींचता है जिसमें लिखा है
पूर्ण पारदर्शिता ही मनोहर सरकार की पहचान। हरियाणा सरकार ने रचा इतिहास, युवाओं के लिए आये अच्छे दिन। ग्रुप डी नौकरी में बिना पैरवी व रिश्वत के हजारों युवाओं को मिला रोजगार ...आने वाली 21 अक्टूबर को चुनाव के दिन कमल के फूल के सामने वाला बटन दबाकर भाई पवन बैनीवाल को विजयी बनाएं।
चौंकिए मत, आपको ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में इस तरह के पोस्टर अनेक जगहों पर दीवारों पर चिपके हुए दिखाई दे जाएंगे। पोस्टर तो वही है लेकिन इसमें मतदान की तिथि, पार्टी का चुनाव चिन्ह और उम्मीदवार बदल गए हैं।
दरअसल ये पोस्टर लगभग 2 साल पुराने लगे हुए हैं जो अभी तक न तो उतारे गए हैं, न ही बदरंग हुए हैं और न ही जगह बदल पाए हैं। मगर पवन बेनीवाल ने आस्था बदल ली है। ये पोस्टर अक्टूबर 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान चिपकाए गए थे। उस समय पवन बेनीवाल भाजपा के उम्मीदवार थे लेकिन अब वक्त बदल चुका है साथ में आस्था भी। पवन बेनीवाल अब कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। जिस कांग्रेस को वे दो साल पहले पानी पी-पीकर कोस रहे थे अब वे उसी कांग्रेस की नीति और नीयत को सबसे ज्यादा कल्याणकारी साबित करने में जुटे हुए हैं।
पवन बेनीवाल 2014 और 2019 में दो बार भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन अभी तक जीत उनके हिस्से में नहीं आई है। खास बात यह है कि पवन बेनीवाल 2014 तक अभय सिंह चौटाला के खासमखास थे लेकिन अब उनकी राहें जुदा हैं। इसीलिए अभय चौटाला भी कह रहे हैं कि उनके साथ रहते हुए पवन बेनीवाल ने जमीनों पर खूब कब्जे किये। इस आरोप को नकारना पवन बेनीवाल की मजबूरी है। अभय सिंह चौटाला ने यह बयान देकर क्रीज छोड़कर बैटिंग करने की कोशिश की है और इस स्थिति में बैट्समैन के सामने दो ही विकल्प होते हैं या तो गेंद बाउंड्री से बाहर या बोल्ड! देखना दिलचस्प रहेगा कि पवन बेनीवाल किस तरीके से बॉलिंग करते हैं।
बताया जा रहा है कि पवन बेनीवाल को कांग्रेस में लाने का श्रेय कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षा कुमारी सैलजा को जाता है। यहाँ भी बड़ा लोचा है हरियाणा कांग्रेस में अगर इस समय सबसे मजबूत नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को माना जाता है। क्या भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी पवन बेनीवाल की दिल से मदद करेंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है। यह भी गौर करने लायक बात है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का देशवाली एरिया में ज्यादा प्रभाव है क्या वे सिरसा में भी प्रभावी हो पाएंगे ? उधर कुमारी सैलजा के पिता दलबीर सिंह का कभी सिरसा में प्रभाव ज्यादा था लेकिन पिछले काफी समय से सैलजा सिरसा की बजाय अम्बाला की तरफ ज्यादा सक्रिय रही है। यह भी कांग्रेस के लिए चिंता की स्थिति है।
हरियाणा में कांग्रेस पिछले सात साल से सांगठनिक ढांचे के बगैर संचालित हो रही है। कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बने दो साल हो चुके हैं, लेकिन हुड्डा गुट के दबाव के आगे सैलजा अभी संगठन की विभिन्न इकाइयों का गठन नहीं कर सकी है। इससे पहले अशोक तंवर भी प्रदेश अध्यक्ष रहते ऐसा करने में नाकाम रहे थे। सिरसा जिले में कांग्रेस के संगठन के न होने से भी पवन बेनीवाल को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
वैसे पवन बेनीवाल और अभय सिंह चौटाला दोनों एक ही मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं और वह मुद्दा है नए कृषि कानूनों का विरोध। पवन बेनीवाल ने जहाँ इन कानूनों के विरोध में बीजेपी छोड़ दी वहीं इन कानूनों के विरोध में अभय सिंह चौटाला विधायिकी को ही लात मार कर फिर से अखाड़े में आये हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पवन बेनीवाल अब कांग्रेस के हाथ को मतदाताओं के हाथ में देने की कोशिश कर रहे हैं। देखना दिलचस्प रहेगा कि कोरोनाकाल में मतदाता इस हैंडशेक को स्वीकार करेंगे या दो गज की दूरी वाले फार्मूले पर चलकर हाथ जोड़कर हाथ से पिंड छुड़वा लेंगे। वैसे भी ऐलनाबाद हल्के में कांग्रेस अभी तक दो बार ही सफल हो पाई है।
चलते-चलते
ऐलनाबाद उपचुनाव में बेशक भाजपा, कांग्रेस और इनेलो के प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कम्युनिस्ट आदि पार्टियों ने अपने प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे। वैसे ये पार्टियां यहाँ अच्छी खासी सक्रिय रही हैं और कार्यक्रम भी करती रहती हैं। बसपा ने पिछले चुनाव में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा था। हालांकि भारतीय संतमत पार्टी, पीपल पार्टी और राइट टू रिकॉल पार्टी ने इस उपचुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं।
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क्रमशः
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