कबीर एक अक्खड़-फक्कड़ और विद्रोही संत
कबीरदास जयंती पर विशेष
इस साल कबीरदास जयंती आज यानी गुरुवार, 24 जून 2021 को मनाई जा रही है। महान कवि एवं संत कबीर की जयंती हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। कबीर एक अक्खड़-फक्कड़ और विद्रोही संत थे, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है।
कबीर का जन्म उस समय हुआ जब भारतीय समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, मौलवी, मुल्ला तथा पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम सीमा पर था। जनता को धर्म के नाम पर पागल बना रखा था। ऐसे में कबीर अंधेरे में सूर्य की तरह चमके और ठेठ बोलचाल की भाषा में आडम्बरों का जबरदस्त विरोध किया।
मेरी एक पुस्तक कोविड-19@2020 का एक चैप्टर कबीर के एक जबरदस्त उदाहरण से शुरू है। उनकी जयंती पर आप भी अगर इसे पढ़ेंगे तो हो सकता है कि आपको भी यह अच्छा लगे। यह लेख दक्षिण भारत के लोकप्रिय अखबार दैनिक शुभ लाभ में 4/3/2020 को सम्पादकीय के रूप में छपा था।
कोविड-19@2020
चैप्टर-6
कबीर की बकरी और कोविड-19
16वीं शताब्दी में भारत में कबीर नामक एक महान संत हुए हैं। समाज सुधारक कबीर ने भक्ति आंदोलन पर काफी प्रभाव डाला था।
हुआ यूँ कि कबीर ने एक बकरी पाल रखी थी। सन्त कबीर फक्कड़ और आजाद ख्यालों के व्यक्ति थे, इसलिए सोचते थे कि बकरी को भी बांधकर क्यों रखा जाए। अतः उनकी वह बकरी खुली ही रहती थी। पर बकरी तो बकरी ठहरी, वो कभी पड़ोस के मंदिर में घुस जाती थी, तो कभी मस्जिद में कूद जाती थी। मंदिर का पुजारी और मस्जिद का मौलवी उसे बार-बार भगाते रहते थे। परंतु वह अबोध बकरी भगवान के मंदिर तथा अल्लाह की मस्जिद गंदा को यदा- कदा गन्दा करती रहती थी। बकरी के इस स्वाभाविक व्यवहार के कारण पुजारी को मंदिर और मौलवी को मस्जिद साफ करनी पड़ती थी। ये तो बड़ा सिरदर्द था। इससे तंग आकर पुजारी और मौलवी ने मिलकर एक दिन कबीर से शिकायत की कि उनकी(कबीर की) बकरी मंदिर और मस्जिद में घुस कर वहां गंदगी फैलाती रहती थी।
कबीर ने दोनों से माफी मांगते हुए कहा कि यह नादान जानवर है, तभी घुस जाती है और साथ ही उन दोनों से पूछा कि क्या मैं खुद (कबीर) कभी आपकी मस्जिद या मंदिर में घुसा हूँ ? मौलवी और पुजारी दोनों निरुत्तर हो गए।
आप सोच रहे होंगे कि प्रसंग तो है कोरोना वायरस का, तो ऐसे में कहाँ कबीर, कहाँ बकरी और कहाँ मंदिर व मस्जिद ? पूरा वर्णन पढ़िए इससे पता चलता है कि लोग मनाही के बावजूद भी धार्मिक स्थलों पर जाने का मोह त्याग नहीं पाते हैं और उनके इस कृत्य की कीमत समस्त मानव समाज को चुकानी पड़ती है।
भारत सरकार द्वारा 25 मार्च से 14 अप्रैल तक पूरे भारत को लॉकडाउन कर दिया गया है। सभी सरकारी,गैर- सरकारी जगहों और धार्मिक स्थलों पर भीड़ एकत्रित न करने के आदेश जारी हो चुके हैं।
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इसी दौरान 30 मार्च को एक सूचना मिली कि दिल्ली की निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में तब्लीगी जमात के बहुत से लोग फँसे हुए थे। दरअसल, मुखर रूप से मामला तब उजागर हुआ जब यहां फँसे हुए तमिलनाडु के 64 साल के एक बुजुर्ग की तबीयत बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। हल्ला तब और भी अधिक तब मचा जब उसी दिन देर शाम तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय ने बताया कि दिल्ली के मरकज में गए हुए उनके राज्य के 6 लोगों की मौत हो गई थी। कश्मीर के सोपोर से यहां पहुंचे एक अन्य 65 साल बुजुर्ग ने भी उससे पिछले हफ्ते श्रीनगर में कार्डियक अरेस्ट के बाद दम तोड़ दिया था। उसके बाद यहाँ के कुल 9 लोगों की मौतों की सूचना मिली।
ये सूचनाएं मिलते ही पुलिस और प्रशासन ने सक्रियता दिखाते हुए मरकज में जांच कार्य किया। यहां हर कमरे में लगभग 8 से 10 लोग ठहरे हुए थे। इनमें से कई को हल्की खांसी और जुकाम की शिकायत भी पाई गई थी। इतनी तादाद में संदिग्ध मिलने पर प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से बसें लगाकर लोगों को अस्पतालों में पहुंचाना शुरू कर दिया। ये अभियान इतना कठिन और खतरनाक था कि इस आलमी मरकज को 36 घंटे का सघन अभियान चलाकर सुबह चार बजे जाकर पूरी तरह ख़ाली करवाया जा सका। दिल्ली सरकार में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अनुसार इस इमारत में कुल 2,361 लोग मिले थे। इसमें से 617 को विभिन्न हॉस्पिटलों में और बाक़ी को क्वेयरटाइन में भर्ती करवाया गया। इनमें ब्रिटेन और फ्रांस समेत अनेक देशों के 48 नागरिक भी शामिल थे। इनमें से 24 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए और साढ़े चार सौ लोगों में कोविड-19 के लक्षण दिखाई दिए, जिनकी टेस्ट रिपोर्ट का इंतज़ार है।
दरअसल इस मरकज में 1 से 15 मार्च के बीच एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें देश-विदेश के 5 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। लेकिन, इसके बाद भी 2,000 से अधिक लोग यहां रुके थे।
सरकार की चिंता इसलिए भी बढ़ी हुई है कि मरकज से निकले दो हजार से अधिक विदेशी जमाती देशभर में इधर-उधर घूम रहे हैं। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों की सरकारों को इन्हें ढूंढकर तुरंत देश से बाहर निकालने का आदेश जारी कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, 22 राज्यों के 16 शहरों के कम से कम 10 हजार व्यक्ति मरकज से निकले संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए हैं। भारत सरकार द्वारा इन राज्यों को भी इन लोगों की सूची भेज दी गई है। मरकज में संक्रमण का खुलासा होने के बाद केंद्र ने देशभर के 10 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में कोरोना के 16 हॉटस्पॉट चिह्नित किए हैं। ये वे जगहें हैं, जहां संक्रमण का सामुदायिक फैलाव (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) का खतरा तुलनात्मक रूप से अधिक है।
पुलिस ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस सम्मेलन के आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। उधर मरकज वालों का कहना है कि 22 मार्च को जब जनता कर्फ्यू का ऐलान हुआ तो उस समय बहुत सारे लोग मरकज में मौजूद थे। उनके अनुसार दिक्कत यह हुई कि जनता कर्फ्यू के साथ-साथ दिल्ली में 22 मार्च से 31 मार्च तक के लिए लॉकडाउन का ऐलान हो गया था। ट्रेनें, बसें या निजी वाहन भी मिलने बंद हो गए थे। इससे पूरे देश से यहां आए लोगों को उनके घर भेजना मुश्किल हो गया था। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि 16 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा कर दी थी कि कोरोनो वायरस के मद्देनजर 31 मार्च तक दिल्ली में आयोजित धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक कार्यक्रम में 50 से अधिक लोगों को जमा होने की अनुमति नहीं होगी। इस घोषणा के बावजूद भी वे लोग मरकज में ही रहे तो अंगुलियां उठना स्वाभाविक ही है।
खैर, कोरोना के कहर के चलते, इस प्रकरण को भारत में राजनैतिक और धार्मिक एंगल से भी देखा जाने लगा है। कमाल की बात तो तब हुई जब स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि तबलीगी जमात के लोगों के घूमने से कोविड-19 के मामले बढ़े हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस प्रकरण से पहले 18 जनवरी और 23 मार्च के बीच अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से भारत में लगभग 15 लाख विदेशी यात्री देश में प्रवेश कर चुके थे। कोविड-19 को भारत में फैलाने में इनकी भूमिका भी कम नहीं कही जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन सिर्फ मस्जिदों में ही किया गया हो। इस उल्लंघन में अनेक धार्मिक संस्थाओं और स्थलों ने अपना योगदान दिया है। जैसे 14 मार्च को हिंदू महासभा ने दिल्ली में गोमूत्र पार्टी का आयोजन किया था। इस दौरान कई लोग पार्टी में शामिल हुए थे और उन्होंने अनेक औषधीय गुणों से युक्त गोमूत्र भी पिया था। परंतु, वहां खास बात यह रही थी कि इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का कोई खयाल नहीं रखा गया था और सभी सट कर बैठे थे। उधर 17 मार्च को पटना जंक्शन स्थित देश के प्रतिष्ठित महावीर मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी थी। सुबह से रात तक अनेक श्रद्धालु कतारबद्ध होकर दर्शन पूजन करते रहे थे। इसी दिन हरियाणा के रेवाड़ी शहर में सबसे प्राचीन हनुमान मंदिर प्रबंधन ने कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए मंदिर पर ताला तो लगा दिया था लेकिन हजारों श्रद्धालुओं ने यहाँ कोरोना के भय को मात देते हुए भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया था।
कानून कायदों की धज्जियां उड़ाने में चर्च का भी नाम जुड़ा हुआ है। केरल के कोलीचल जिले में स्थित सेंट जोसेफ चर्च के पादरी थॉमस पाटमकुलाम और उसके सहयोगी जोसेफ ओराथ के खिलाफ 19 मार्च को पुलिस ने आईपीसी की धारा 188 और 269 के तहत एफआईआर दर्ज की हुई है। इन दोनों पर आरोप है कि इन्होंने चर्च में लोगों की भीड़ एकत्रित होने दी जबकि राज्य में किसी भी आयोजन में 50 से ज्यादा लोगों के इक्कठे होने पर रोक लगी हुई थी।
इसी प्रकरण में एक अप्रैल 2020 को दिल्ली के मजनू-का-टीला गुरुद्वारे में मौजूद लगभग 300 लोगों को एक स्कूल में बनाए क्वारंटीन सेंटर में शिफ्ट किया गया। ये लोग लॉकडाउन होने के बाद यहाँ फंस गए थे।
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कहा जा सकता है कि मस्जिद हो, मंदिर हो, चर्च हो या गुरुद्वारा, कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग का खयाल नहीं रखा गया था। हाँ, मरकज की घटना सबसे ज्यादा गम्भीर इसलिए बनती है कि एक तो यहाँ श्रद्धालु बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे और दूसरा इनमें विदेशी भी शामिल थे, जिनसे संक्रमण होने की संभावना सबसे ज्यादा थी। यहां से संक्रमण फैला भी, लोग मरे भी और इन्होंने पूरे देश में खतरा बहुत ज्यादा बढ़ा भी दिया है।
अब सवाल आता है कि इस प्रकरण से हम क्या सबक ले सकते हैं। दरअसल कोविड-19 से हमारी आँखें खुल जानी चाहिएं कि जब स्वास्थ्य खतरे में आता है तो मस्जिद, मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे समेत सभी धार्मिक स्थल दर्शनों के लिए बन्द करने पड़ जाते हैं। मजे की बात यह है कि किसी अनिष्ट से बचने या मनोकामना पूरी करने के लिए ज्यादातर लोग दर्शनों के लिए इन स्थलों पर जाते हैं, पर असल में काम विज्ञान ही आता है। चाहे कोविड-19 की वैक्सीन या दवा अभी तक नहीं बनी है, परन्तु विज्ञान ने ही हमें बताया है कि आपस में फासला रखकर और थोड़े-थोड़े अंतराल में हाथों को साबुन या सैनिटाइजर से साफ करके इससे बचा जा सकता है। हम भीड़ में जाकर धार्मिक स्थलों पर माथा टेकने से कोविड-19 से बच नहीं पाएंगे।
कुछ भी हो विज्ञान आस्था पर भारी पड़ा है, चाहे कुछ समय के लिए ही सही।
कबीर आज भी प्रासंगिक हैं।
प्रकाशित लेख- APRIL3,2020
दक्षिण भारत के लोकप्रिय अखबार दैनिक शुभ लाभ में 4/3/2020 |
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)
अमित नेहरा
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