विश्व भर के क्रांतिकारियों के आइकन हैं चे ग्वेरा
(जन्मदिन 14 जून पर विशेष)
चे ग्वेरा |
- भगतसिंह और चे ग्वेरा में समानताएं
- मोटरसाइकिल की यात्रा ने कैसे बदल दी चे ग्वेरा की जिंदगी
- चे ग्वेरा ने भारत आकर नेहरू से क्या बात की
- चे ग्वेरा को क्यों छोड़ना पड़ा क्यूबा
वह समानता है इन दोनों स्थानों पर ऐसी विभूतियों का जन्म हुआ है जो लगभग 100 साल बीत जाने के बाद आज भी गरीबी, आर्थिक विषमता, एकाधिकार, पूंजीवाद, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठाने वालों के अधिनायक बने हुए हैं। क्रांतिकारियों के लिए ये दोनों व्यक्तित्व हीरो हैं।
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अर्नैस्तो चे ग्वेरा जिन्हें संक्षेप में चे ग्वेरा या सिर्फ चे कहा जाता है, उनके जन्मदिन पर चर्चा होगी कि वे क्रांतिकारियों और युवा वर्ग में इतने लोकप्रिय क्यों हैं ?
आज पूरे विश्व में हर जगह ऐसे अनेक युवा दिखाई दे जाते हैं जिनकी टी-शर्ट पर फौजी वर्दी में बिखरे हुए बालों पर टोपी लगाए और हाथ में बड़ा सा सिगार लिए एक अल्हड़ से नौजवान की फोटो छपी होती है। ये फोटो चे ग्वेरा की है। यही चे ग्वेरा सत्ताविरोधी संघर्ष का वैश्विक प्रतीक हैं। किसान आंदोलन में सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बोर्डरों पर ज्यादातर युवा भगतसिंह की फोटो वाली टी-शर्ट पहने मिलेंगे, इनके साथ ही चे-ग्वेरा वाली टी-शर्ट भी आसानी से दिख जाएगी। भारत में बहुत से युवा चे ग्वेरा की फोटो वाली टी-शर्ट पहने तो दिख जाते हैं मगर चे कौन थे, कहाँ के थे और उनका योगदान क्या था इस बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है।
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चे ग्वेरा मूलतः एक डॉक्टर थे। उन्होंने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान अपने दोस्त अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ लेटिन अमेरिका को जानने के लिए दस हज़ार किलोमीटर से ज्यादा मोटरसाइकिल पर यात्रा की। इस यात्रा ने चे ग्वेरा को हमेशा के लिए बदल दिया। यात्रा में उन्होंने देखा कि कैसे पूंजीवाद ने लोगों को अपने अस्तित्व से अलग कर दिया था। कैसे लोग गरीबी में रहने को अभिशप्त हैं और नारकीय जिंदगी बिता रहे हैं। अमीरी और गरीबी की लड़ाई ने उनको झकझोर दिया। चे ग्वेरा ने इस सारी यात्रा को ‘मोटरसाइकिल डायरीज’ के नाम से पुस्तक के रूप में छापा। इसके साथ ही चे ने गरीबों और समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों के लिए जीवनभर लड़ने की कसम खा ली। चे ग्वेरा जल्द ही डॉक्टर होने के साथ ही लेखक, कवि, गुरिल्ला नेता, सामरिक रणनीतिकार, कूटनीतिज्ञ, समाजवादी नेता के रूप में स्थापित हो गए।
चे ग्वेरा 1953 में पड़ोसी देश ग्वाटेमाला में डॉक्टरी करने लगे। उन्होंने ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे सुधारों में भाग लिया। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने ग्वाटेमाला में तख्तापलट करवा दिया। चे ग्वेरा पकड़े और मारे जाने के डर से मैक्सिको पहुँच गए। लेकिन इस तख्तापलट ने ग्वेरा के मन में क्रांति की आग और अमेरिका विरोध को भड़का दिया। मेक्सिको में उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो के साथ हुई। दोनों ने मिलकर जनवरी 1959 में 500 से भी कम विद्रोहियों को साथ लेकर क्यूबा में सत्तारूढ़ बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। फिदेल कास्त्रो क्यूबा के राष्ट्रपति बने और उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में चे ग्वेरा को उद्योग मंत्री बनाया।
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