भारत में ओमीक्रॉन का प्रभाव और खतरा
Chanakya January 2022 Edition |
कुछ महीने पहले तक भारत में कोरोना की तीसरी लहर की दूर तक कोई आशंका नहीं दिख रही थी। सब कुछ सामान्य सा होता जा रहा था। कोरोना के केस भी लगातार घटते जा रहे थे। ज्यादातर जगहों पर कोविड की पाबंदियों में ढील दी जाने लगी थी।
लेकिन भारत में 2 दिसंबर को ओमीक्रॉन वेरिएंट की एंट्री की पुष्टि हो ही गई। कर्नाटक में 2 लोग इससे संक्रमित पाए गए थे। उसके बाद 28 दिसंबर तक ओमिक्रॉन देश के 21 राज्यों में फैल चुका है और इसके मरीजों की संख्या 653 हो गई है। उधर संयुक्त राज्य अमेरिका में भी एक हफ्ते के भीतर नए मामलों में ओमीक्रोन का हिस्सा 3% से बढ़कर 73% होने से भी पूरे विश्व में चिंता व्याप्त हो गई है। भारत में ओमीक्रॉन की एंट्री के बाद चीजें बदलती दिख रही हैं। एक्सपर्ट चेता रहे हैं कि यहाँ महामारी की तीसरी लहर आनी ही है।
कोरोना महामारी का कारण बने सार्स-कोव-2 वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन म्युटेशन के मामले में अब तक के सभी वेरिएंट पर भारी है। इसमें 50 से ज्यादा म्युटेशन पाए गए हैं। अकेले इसके स्पाइक प्रोटीन में 32 म्युटेशन हुए हैं। स्पाइक प्रोटीन ही वायरस को मनुष्य की कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम बनाता है। यह पहले के विभिन्न वेरिएंट की तुलना में ज्यादा संक्रामक हो सकता है।
एक व्यक्ति के शरीर से दूसरे के शरीर में पहुंचने के क्रम में अक्सर वायरस में कुछ बदलाव होने लगते हैं, जिन्हें म्युटेशन कहा जाता है। जितने ज्यादा लोग संक्रमित होते हैं, म्युटेशन की आशंका भी उतनी बढ़ती जाती है। यही म्युटेशन नए वेरिएंट के बनने का कारण होते हैं। सार्स-कोव-2 के मामले में चिंता की बात यही है कि इस समय जो वेरिएंट है, वह दो साल पहले वुहान में मिले वायरस से पूरी तरह अलग है। यही विज्ञानियों की चिंता का असली कारण है कि कहीं नया वेरिएंट मौजूदा टीकों के प्रभाव हो खत्म न कर दे। राहत की बात यह है कि अब तक किसी वेरिएंट को लेकर ऐसा प्रमाण नहीं मिला है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ओमिक्रॉन ऐसे किसी व्यक्ति के शरीर में पनपा है, जो इम्यून सप्रेस्ड था। इम्यून सप्रेस्ड ऐसे लोगों को कहा जाता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली सही काम नहीं करती है और कई बार अपने ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगती है। एड्स के मरीज इसी श्रेणी में रखे जाते हैं। वैज्ञानिकों की आशंका है कि किसी एड्स के मरीज के शरीर में ओमिक्रॉन वेरिएंट विकसित हुआ होगा। डेल्टा वैरिएंट भी ऐसे ही पनपने का अनुमान है।
भारत में शुरुआत में मिलने वाले ओमीक्रॉन केस ट्रैवल हिस्ट्री वाले थे यानी संक्रमित व्यक्ति हाल में विदेश से लौटा था या फिर ऐसे किसी शख्स के संपर्क में आया था। लेकिन अब बिना ट्रैवल हिस्ट्री वाले ओमीक्रॉन केस भी आने लगे हैं। इससे इस बात की आशंका गहरा गई है कि ओमीक्रॉन का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है। ये स्थानीय स्तर पर फैलने लगा है।
ओमीक्रॉन की दस्तक के बीच देश में कई राज्यों में कोरोना वायरस का आर-नॉट वैल्यू बढ़ने लगा है। बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, त्रिपुरा, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और नगालैंड में आर-नॉट वैल्यू राष्ट्रीय औसत 0.89 से ऊपर पहुंच गया है। दरअसल, आर-नॉट यह बताता है कि किसी वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति औसतन कितने स्वस्थ लोगों को बीमार कर रहा है। आर-नॉट वैल्यू 1 होने का मतलब है कि एक मरीज इस बीमारी को एक व्यक्ति में फैला रहा है।
ओमीक्रॉन के बारे में खतरनाक बात ये है कि ये वैक्सीन से मिली सुरक्षा को भेदता हुआ दिख रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट चिंता बढ़ानी वाली है। रिपोर्ट में एक स्टडी के हवाले से बताया गया है कि दुनियाभर में कोरोना से बचाव के लिए जितनी भी वैक्सीन लग रही हैं, उनमें से तकरीबन सभी ओमीक्रॉन से संक्रमण रोकने में नाकाम साबित हो रही हैं। इस स्टडी में बताया गया है कि कुछ वैक्सीन के बूस्टर डोज जरूर थोड़े कारगर साबित हो रहे हैं।जिस तरह से ये पूरे विश्व में फैल रहा है, वो डराने वाला है। यूरोप के देशों ने अब फिर से कोरोना से जुड़े प्रतिबंध लागू करने शुरू कर दिए हैं।
कुछ समय पहले तक ओमीक्रॉन के बारे में माना जा रहा है कि इससे होने वाला संक्रमण बहुत हल्का है। अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आती। मौत की आशंका तो बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन वक्त के साथ ये मिथक भी टूट चुका है। ओमीक्रॉन से मौत का सबसे पहला मामला ब्रिटेन में आया। अब तो अमेरिका में भी इस वेरिएंट से मौत का मामला सामने आ चुका है।
एक स्टडी के मुताबिक, भारत में कोरोना की भयावह दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले इसमें 70 गुना ज्यादा तेजी से फैलने की क्षमता है। फिलहाल भले ही ओमीक्रॉन से ज्यादातर मरीजों की हालत गंभीर नहीं हो रही, लेकिन अगर इसमें कोई खतरनाक म्यूटेशन हुआ तो इसके नतीजे भयावह हो सकते हैं।
भारत में कोरोना की दूसरी लहर जैसे ही कमजोर हुई, ज्यादातर लोग लापरवाही बरतने लगे हैं। बाजारों में कोरोना से पहले की तरह भीड़भाड़ है। लोग सोशल डिस्टेंसिंग को गंभीरता से नहीं ले रहे। यहां तक कि मास्क नहीं लगा रहे। कोरोना से बचाव वाले एहतियातों को लेकर इस तरह की लापरवाही बहुत भारी पड़ सकती है।
अमेरिका और यूरोप के देशों में कोरोना की स्थिति बिगड़ती जा रही है और कहा जा रहा है कि वहां डेल्मीक्रॉन वेव चल रही है। भारत में भी केस धीरे-धीरे बढ़े हैं। डेल्टा और ओमीक्रॉन के मिलेजुले रूप को डेल्मीक्रॉन नाम दिया गया है। इस समय दुनियाभर में ये दोनों ही वेरिएंट मिल रहे हैं।
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