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ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-18

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  शहीद किसान अस्थि कलश यात्रा का उपचुनाव पर असर उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा द्वारा कथित रूप से गाड़ी से कुचल कर मारे गए किसानों की घटना वहां से 800 किलोमीटर दूर स्थित ऐलनाबाद में भी बीजेपी का सिरदर्द बनी हुई है।  दरअसल संयुक्त किसान मोर्चे ने इस हादसे में शहीद हुए किसानों के अस्थि कलश को पूरे देश  में जन-जन तक ले जाने की योजना बना रखी है ताकि देशवासियों को इस लोमहर्षक कांड के बारे में जागरूक किया जा सके। इसी कड़ी में यह अस्थि कलश यात्रा बीते 20 अक्टूबर से ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में गांव-गांव में घूम रही है। इसका ऐलनाबाद में समापन 23 अक्टूबर को है, इस अवसर पर गुरनाम सिंह चढूनी स्वंय ऐलनाबाद में मौजूद हैं। लेकिन इससे पहले इस अस्थि कलश यात्रा में  एक और पंगा हो गया। शनिवार की सुबह ज्यों ही यह अस्थि कलश यात्रा गांव गिगोरानी बस अड्डे से नाथूसरी की तरफ जा रहे थी सिरसा की तरफ से आ रही एक कार ने अस्थि कलश वाली बोलेरो गाड़ी को सीधी टक्कर मार दी। गाड़ी में में गुरुद्वारा चिल्ला साहब के सेवादार मलकीत सिंह निवासी रामपुर थेहड़ी व कृष्ण ला

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-17

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बात उस प्रत्याशी की जिसने न पार्टी बदली न आस्था अभी तक के लेखों में हमने ऐलनाबाद उपचुनाव में उतरे कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के बारे में चर्चा कर ली। आज चर्चा तीसरी पार्टी इनेलो और उसके उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला के बारे में होगी। यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के उम्मीदवार दल-बदलू हैं यानी पवन बेनीवाल उपचुनाव से महज एक महीना पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए हैं। गोविंद कांडा तो नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया के दौरान ही बीजेपी में शामिल हुए और उन्हें पार्टी का टिकट थमा दिया गया। एक मजेदार बात यह भी रही कि गोविंद कांडा हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के उपाध्यक्ष थे मगर उन्होंने बीजेपी में शामिल होने पर हलोपा को छोड़ने की विधिवत घोषणा नहीं की। उस पर गजब यह भी है कि हलोपा के एकमात्र विधायक और उनके सगे भाई गोपाल कांडा खुद उनका चुनाव प्रचार कर रहे हैं! खैर हम वापस इनेलो और अभय सिंह चौटाला पर आते हैं। देखा जाए तो अभय चौटाला वाकई जमीन से जुड़े नेता हैं। अभय के पॉलिटिकल कैरियर की शुरूआत चौटाला गांव से पंचायत चुनाव में उप सरपंच की सीट जीतने से शुरू हुई। साल

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-16

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This is the title of the web page   क्या ऐलनाबाद में कांग्रेस तीसरी बार बाजी मारेगी ? ऐलनाबाद में एक पोस्टर बरबस ध्यान खींचता है जिसमें लिखा है पूर्ण पारदर्शिता ही मनोहर सरकार की पहचान। हरियाणा सरकार ने रचा इतिहास, युवाओं के लिए आये अच्छे दिन। ग्रुप डी नौकरी में बिना पैरवी व रिश्वत के हजारों युवाओं को मिला रोजगार ...आने वाली 21 अक्टूबर को चुनाव के दिन कमल के फूल के सामने वाला बटन दबाकर भाई पवन बैनीवाल को विजयी बनाएं। चौंकिए मत, आपको ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में इस तरह के पोस्टर अनेक जगहों पर दीवारों पर चिपके हुए दिखाई दे जाएंगे। पोस्टर तो वही है लेकिन इसमें मतदान की तिथि, पार्टी का चुनाव चिन्ह और उम्मीदवार बदल गए हैं। दरअसल ये पोस्टर लगभग 2 साल पुराने लगे हुए हैं जो अभी तक न तो उतारे गए हैं, न ही बदरंग हुए हैं और न ही जगह बदल पाए हैं।  मगर पवन बेनीवाल ने आस्था बदल ली है। ये पोस्टर अक्टूबर 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान चिपकाए गए थे। उस समय पवन बेनीवाल भाजपा के उम्मीदवार थे लेकिन अब वक्त बदल चुका है साथ में आस्था भी। पवन बेनीवाल अब कांग्रेस के उम्

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-15

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This is the title of the web page किसके सिर पर बंधेगा ऐलनाबाद का ताज ?   जबसे मैंने ऐलनाबाद उपचुनाव पर यह विशेष श्रृंखला लिखनी शुरू की है, तभी से मेरे पास इससे सम्बंधित रोजाना सैंकड़ों फोन कॉल्स, व्हाट्सएप मैसेज आ रहे हैं। इन सभी का सवाल यही होता है कि बताइये इस उपचुनाव में कौन सा उम्मीदवार जीतेगा? मैं इसका बड़ा सटीक उत्तर देता हूँ उससे कुछ लोग तो मेरे जवाब से संतुष्ट हो जाते हैं लेकिन ज्यादातर यही कहते हैं कि ये तो उन्हें भी पता है मगर आप सही-सही उत्तर दीजिए। दरअसल मैं इस सवाल का जवाब यह देता हूँ कि जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट लेगा वही जीतेगा। इस उत्तर से बहुत से लोग मुँह बना लेते हैं और कहते हैं कि ये भी कोई बात हुई, यह तो सबको पता है। तो जनाब फैक्ट तो यही है कि सबसे ज्यादा वोट लेने वाला उम्मीदवार ही विधायक बनेगा मगर लोग पार्टी और उम्मीदवार का नाम जानना चाहते हैं। कोई भी व्यक्ति इस सवाल का इस समय शत प्रतिशत सही उत्तर नहीं दे सकता क्योंकि अभी मतदान में काफी समय है और जीत-हार की परिस्थितियां बनते व बिगड़ते देर  नहीं लगती, कभी भी पासा पलट सकता है। लेकिन हाँ, हम इस

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-14

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अभय ने कब्जे वाली बात कहकर गुगली फैंक दी ऐलनाबाद में हाल ही में ऐलनाबाद उपचुनाव में इनेलो प्रत्याशी और इनेलो के राष्ट्रीय महासचिव अभय सिंह चौटाला का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में अभय चौटाला कांग्रेस प्रत्याशी पवन बेनीवाल के गांव दड़बा कलां में   पवन बेनीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने मेरे साथ रहकर कब्जे किये हैं, उसने कोई खेती से थोड़ी कमाए हैं। यह स्वीकारोक्ति  इस  उपचुनाव में क्या असर डालेगी यह चर्चा का विषय तो है ही इसके पीछे की राजनीति को भी समझना होगा। दरअसल जाने या अनजाने में अभय सिंह चौटाला ने में यह बड़ी जबरदस्त गुगली फैंकी है। अब गेंद पवन बेनीवाल के पाले में है, अभय चौटाला का राजनीतिक नुकसान तभी हो सकता है जब पवन बेनीवाल ये मान लें कि उन्होंने वाकई अभय सिंह चौटाला के साथ रहते हुए जमीनों पर कब्जे किये थे। क्या आपको लगता है कि पवन बेनीवाल इस आरोप को स्वीकार कर लेंगे! लगता है कि इस स्टेटमेंट से अभय चौटाला के दोनों हाथों में लड्डू आ गए हैं। उन्होंने आरोप जड़कर अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है। अब बारी पवन बेनीवाल की है कि वे इस चुनौती से किस प्रकार निपटेंगे। उधर उनके चाचा और

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-13

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This is the title of the web page बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का...   हैदर अली आतिश का एक मशहूर शेर है कि 'बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला।' यह शेर भरत सिंह बेनीवाल पर बिल्कुल फिट बैठती है। दरअसल, भरत सिंह बेनीवाल ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस द्वारा पवन बेनीवाल को टिकट दिए जाने से बेहद खफा नजर आ रहे थे। उनके तेवरों से लग रहा था कि वो कांग्रेस पार्टी से बगावत कर सकते हैं। लेकिन उनकी दुविधा यही थी कि वो जाएं तो कहाँ जाएं ? इसी बारे में हाल ही में मेरे द्वारा 'भरत सिंह बेनीवाल के लिए आगे कुआं पीछे खाई' लेख लिखा गया था। लेख में विश्लेषण किया गया था कि अब उनके सामने दो ही विकल्प हैं कि वे इनेलो या बीजेपी को अपना समर्थन दें। सिरसा जिले में तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ माहौल बना हुआ है। भरत सिंह बेनीवाल की दुविधा यह थी कि बीजेपी को समर्थन देकर वो किसानों की नाराजगी मोल नहीं ले सकते थे। उधर भरत सिंह बेनीवाल कहते रहे हैं कि इनेलो कार्यकाल में उनपर बहुत जुल्म हुए। इस दौरान उन पर पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए। अतः इनेल

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-12

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This is the title of the web page   भरत सिंह बेनीवाल के लिए आगे कुआं पीछे खाई 1991 से ऐलनाबाद और उसके आसपास के इलाके में कांग्रेस पार्टी के लिए मेहनत कर रहे भरत सिंह बेनीवाल की टिकट इस उपचुनाव में काट दी गई। भरत सिंह बेनीवाल का दुख यह है कि उनकी टिकट काट कर उनके राजनीतिक विरोधी रहे उनके भतीजे पवन बेनीवाल को दे दी गई। भरत सिंह बेनीवाल का दावा है कि ऐलनाबाद विधानसभा में उनके 35,000 समर्थकों के वोट हैं और उपचुनाव में पवन बेनीवाल को टिकट देने पर कांग्रेस को नुकसान का सामना करना पड़ेगा। भरत सिंह बेनीवाल अपने कार्यकर्ताओं के साथ लगातार मीटिंग कर रहे हैं। उम्मीदवारों के नामांकन वापस लेने की तिथि 13 अक्टूबर के बाद वे अपने कार्यकर्ताओं से मीटिंग करने के बाद 14 अक्टूबर को बड़ा फैसला लेंगे। लेकिन वे फैसला क्या लेंगे ? क्या वे कांग्रेस की बजाय बीजेपी को या इनेलो को अपना समर्थन कर सकते हैं ? पूरे प्रदेश की निगाहें उनके इस फैसले पर टिकी हुई हैं। भरत सिंह बेनीवाल के अभी तक के बयानों से नहीं लगता कि वे ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस को अपना समर्थन देंगे। कांग्रेस पार्टी भरत सिंह

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-11

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ऐलनाबाद उर्फ खारियाल की दिलचस्प कहानी   विधानसभा उपचुनाव 2021 के कारण ऐलनाबाद आजकल देश-प्रदेश की चर्चा में बना हुआ है। वैसे तो भारत के ज्यादा शहरों के नाम हिंदी-संस्कृत या उर्दू-फ़ारसी शब्दों पर आधारित हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि ऐलनाबाद शब्द, हिंदी-संस्कृत या उर्दू-फ़ारसी से नहीं निकला बल्कि यह एक अंग्रेजी शब्द है। आज हम राजनीति चर्चा को छोड़कर ऐलनाबाद शहर के इतिहास और भौगोलिक स्थिति पर चर्चा करेंगे। दरअसल ऐलनाबाद शहर की स्थापना ब्रिटिश शासन के दौरान हिसार के कमिश्नर रहे रॉबर्ट हच ने की थी। रॉबर्ट हच की पत्नी एलेना शिकार करने की बेहद शौकीन थी। हिसार कमिश्नरी के तहत आने वाली खारियाल जगह में उस समय घास और पौधे प्रचुर मात्रा में थे।  यहाँ घग्घर नदी भी बहती थी। अतः पानी और घास आदि की उपलब्धता के चलते यहाँ अनेक प्रजातियों के बहुत सारे जानवर भी विचरण करते थे। यह सारा माहौल किसी भी शिकारी के लिए आदर्श था। इसके चलते कमिश्नर रॉबर्ट हच की पत्नी एलेना अपने संगी-साथियों के साथ यहाँ अक्सर शिकार करने आती रहती थी। एक बार एलेना जब गर्भवती थी तो वह शिकार करने के लिए अपने साथियों के साथ यहाँ शिकार करने

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-10

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भरत सिंह बेनीवाल की नाराजगी किस पर पड़ेगी भारी ? दो साल पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें ऐलनाबाद के नेता भरत सिंह बेनीवाल कह रहे हैं कि जो एक बार मेरा भाषण सुन लेता है, वह अपनी लुगाई-टाबर छोड़ सकता है लेकिन भरत सिंह को नहीं छोड़ता। मगर विडम्बना देखिये कि शायद भरत सिंह बेनीवाल अपने भाषण कांग्रेस पार्टी को अच्छी तरह नहीं सुना पाये नतीजतन ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस ने टिकट बाँटने के समय उन्हें छोड़ दिया। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब बीजेपी छोड़कर सितम्बर 2021 में कांग्रेस में शामिल हुए उनके भतीजे पवन बेनीवाल को टिकट देकर उनके जले पर नमक भी छिड़क दिया। अपने भतीजे पवन बेनीवाल को टिकट मिलने पर कांग्रेस नेता भरत सिंह बेनीवाल बेहद नाराज हैं। भरत सिंह ने कहा है कि यह पार्टी हाईकमान ने तय किया है कि टिकट किसे मिलेगा, लेकिन मेरी टिकट चौथी बार कटी है। उन्होंने पवन बेनीवाल पर निशाना साधकर आरोप लगाया है कि इनेलो व बीजेपी में रहते हुए पवन बेनीवाल ने लोगों पर अत्याचार किए हैं। इस दौरान लोगों पर झूठे मुकदमे दर्ज करवाए गए। भरत सिंह ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षा कुमारी सैलजा को बता दिया है कि

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला-9

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. पूरे ऐलनाबाद में प्रचार करना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती  उत्तरप्रदेश के तराई क्षेत्र के लखीमपुर खीरी नरसंहार का व्यापक असर वहाँ से लगभग 800 किलोमीटर दूर हरियाणा के ऐलनाबाद उपचुनाव में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा द्वारा पूर्वनियोजित तरीके से किसानों को गाड़ी से रौंद देने के बाद हरियाणा में बीजेपी के खिलाफ किसानों का गुस्सा बढ़ता ही दिख रहा है। ऐलनाबाद उपचुनाव में जब बीजेपी उम्मीदवार गोविंद कांडा एक गुरुद्वारे पहुंचे तो उन्हें वहां से जबरन निकाल दिया। इस दौरान  किसानों ने धक्के भी मारे। गौरतलब है कि इस  उपचुनाव के लिए बीजेपी ने गोविंद कांडा को मैदान में उतारा है। गोविंद कांडा, सिरसा के विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल कांडा के भाई हैं। गोविंद हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए थे। उन्हें टिकट मिल तो गया लेकिन उनकी मुश्किल यहाँ विपक्षी उम्मीदवार नहीं बल्कि किसान हैं। पिछले एक साल से ज्यादा समय से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान

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