करोड़ों साल पुराने हर पत्थर के नीचे छिपे हैं घोटालों के सांप-बिच्छू!



भूगोलशास्त्रियों के अनुसार गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली पर्वतमाला लगभग 65 करोड़ साल पुरानी है और यह भारत की ही नहीं बल्कि संसार की प्राचीनतम श्रेणियों में से एक है। पर, इस समय अरावली अपनी प्राचीनता की वजह से नहीं बल्कि अवैध खनन माफिया द्वारा हरियाणा के एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) की हत्या के कारण चर्चा में है। पिछले लगभग 40 वर्षों से अरावली का जिस बुरी तरह से वैध और अवैध रूप से दोहन हुआ  है उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। पत्थर के इस गौरखधंधे में बहुत बड़ी संख्या में लोग लूट रहे हैं। अरावली का सीना चीरने में नेता, ब्यूरोक्रेट, पुलिस, बदमाश और कॉमन मैन सभी शामिल हैं। घोटालों का यह कारनामा इतना बड़ा है कि इसको तीन-चार पेज की एक रिपोर्ट में समेटना लगभग असम्भव है। माफियाओं और सरकारों के अरावली को तहस-नहस करने के कारनामे लिखने के लिए तो महाग्रन्थ भी छोटा पड़ जाए! दरअसल जब तक राजनीतिक पार्टियां, सरकार व अफसरशाही आदि न चाहें तब तक अरावली रेंज को बचा पाना असंभव है। अब तो ऐसा लगने लगा है मानो सरकार और अफसरशाही अरावली पर्वतमाला को बचाना नहीं बल्कि मिटाना चाहते हैं!

कार्बन डेटिंग से पता चला है कि अरावली पर्वतमाला में तांबा व अन्य धातुओं का खनन पांचवीं शताब्दी से हो रहा है। एक ताजा शोध से पता चला है कि कोठी-सिसवाल अवधि के दौरान भी यहाँ तांबे का खनन किया गया था। लेकिन अरावली के खनन में पिछले पचास सालों से बेतहाशा तेजी आई है। हालात यह हो गए हैं कि राजस्थान सरकार ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान यह स्वीकार किया कि प्रदेश में अरावली की 138 में से 31 पहाड़ियाँ गायब हो चुकी हैं! इससे स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अगर बात दिल्ली की जाए तो यहाँ अरावली श्रृंखला की पहाड़ियाँ लगभग ख़त्म हो चुकी हैं। दिल्ली के महरौली में आज भी अरावली के पहाड़ के पत्थर केवल साक्ष्य के रूप में बिखरे दिखाई देते हैं। अरावली का अंतिम सिरा दिल्ली में आकर खत्म होता है यहाँ रायसीना हिल्स है, जहां अरावली की इस पहाड़ी को साफ करके (वायसराय हाउस) अब राष्ट्रपति भवन बनाया गया है। जामा मस्जिद भी अरावली पर्वतमाला पर बनी हुई है।

अरावली पर्वत की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलोमीटर है। इस पर्वत श्रृंखला का लगभग 80 प्रतिशत (550 कि.मी.) विस्तार राजस्थान में है। अरावली की औसत ऊँचाई लगभग 930 मीटर है तथा इसकी दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है। इसका सर्वोच्च पर्वत शिखर राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में गुरुशिखर (1727 मीटर) है। राजस्थान के बाद अरावली पर्वतमाला का सबसे ज्यादा हिस्सा हरियाणा में आता है यहाँ यह नूंह, पलवल, गुरुग्राम, फरीदाबाद, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, चरखी दादरी और भिवानी जिलों में फैली हुई है। मोटे तौर पर हरियाणा के लगभग सवा लाख एकड़ जगह में अरावली पर्वतमाला का विस्तार है। राजस्थान और हरियाणा में ही अरावली का सीना सबसे ज्यादा छलनी किया गया है।

हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद हरियाणा और राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों में वैध और अवैध तरीके से गहन उत्खनन करके पत्थर और खनिज निकाले जाने का कार्य चल रहा है जिसके कारण ये पहाड़ियाँ अपना वजूद खोती जा रही हैं। पहाड़ों के ख़त्म होने से पृथ्वी पर एक गहन संकट उत्पन्न हो सकता है जिसका सीधा-सीधा प्रभाव यहाँ के वातावरण के ऊपर पड़ता है। बारिश और अन्य मौसम पर भी पहाड़ों के ख़त्म होने से प्रभाव पड़ता है। अरावली पहाड़ के ऊपर और तलहटी में सैंकड़ों प्रजातियों के जीव रहते हैं जिनके जीवन पर पहाड़ों का ख़त्म होना एक अभिशाप है। जंगल भी खत्म होते जा रहे हैं। इससे निकलने वाली नदियों बनास, लूनी, साखी एवं साबरमती आदि का अस्तित्व भी खत्म हो रहा है। ज्यादातर नदी-नाले सूख चुके हैं। यहाँ की पारिस्थितिकी पर इनका ख़ास प्रभाव रहा है परन्तु उत्खनन ने पूरे तंत्र को ख़त्म करना शुरू कर दिया है। ये प्राचीन अरावली पर्वत श्रंखला सैंकड़ों सालों से गंगा के मैदान के ऊपरी हिस्से की आबोहवा तय करती आई हैं, जिसमें वर्षा, तापमान, भू-जल रिचार्ज से लेकर भू-संरक्षण तक शामिल है। यह पहाड़ियां दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश को धूल, आंधी, तूफान और बाढ़ से बचाती रही हैं। लेकिन हाल का एक अध्ययन बतलाता है कि अरावली में जारी खनन से थार रेगिस्थान की रेत दिल्ली की ओर लगातार खिसकती जा रही है। राजस्थान व हरियाणा के विशाल इलाके में अवैध खनन से जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है। इससे हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सूखा और राजस्थान के रेतीले इलाके में बाढ़ के हालात बनने लगे हैं। प्रदूषण से मानसून का पैटर्न बदला है। मानसून के इस असंतुलन से इन इलाकों के नागरिकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सरकारी  और गैर सरकारी तौर पर अरावली पर्वतमाला को बचाने के प्रयास न हुए हों।

● आजादी से पहले ही जब संयुक्त पंजाब राज्य था तो तत्कालीन पंजाब सरकार ने अरावली क्षेत्र को 1900 में पंजाब भू संरक्षण अधिनियम की धारा 4 और 5 के तहत संरक्षित किया गया। इसके तहत अरावली वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार कार्य करना गैरकानूनी माना गया।

इस कानून का अधिकार क्षेत्र समय के साथ विकसित होता रहा। इसमें पहला बड़ा संशोधन 1926 में किया गया था, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य लोगों को स्वामित्व के अधिकारों से वंचित करना नहीं है।

● इसके पश्चात भारत के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एम सी मेहता ने अरावली को बचाने के लिए 1985 में भारत सरकार व अन्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका नम्बर 4677 दायर की। इस याचिका के बड़े दूरगामी परिणाम हुए और इसके चलते अरावली को काफी हद तक छलनी होने से बचाया जा सका है।

● सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के  आदेशानुसार अरावली रेंज के क्षेत्र में किसी भी प्रकार का नया निर्माण नहीं किया जा सकता है और जो निर्माण हो चुका है उसे गिराया जा सकता है।

● सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में एक बहुत बड़ा आदेश पारित किया कि जब तक केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति न ली जाए तब तक अरावली में किसी भी प्रकार का खनन का कार्य नहीं किया जा सकता। तब से हरियाणा से लगते अरावली क्षेत्र में खनन कार्य पूरी तरह बंद है।

● सन 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इको सेंसिटिव क्षेत्र में सभी प्रमुख और मामूली खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। 

● 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन से जुड़े 82 लाइसेंस यह कहते हुए रद्द कर दिये थे कि बिना पर्यावरणीय मंज़ूरी और अध्ययन रिपोर्ट के खनन की इज़ाजत नहीं दी जा सकती।

● 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों में निर्माण कार्य की अनुमति देने से संबंधित हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित संशोधित नए कानून को लागू करने पर रोक लगा दी। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह संशोधित कानून की प्रति कोर्ट में पेश करे और फिलहाल इस कानून के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट ने 60 हज़ार एकड़ वन क्षेत्र में निर्माण की इज़ाजत देने वाले इस कानून को न्यायालय की अवमानना बताया।

● 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया था कि वह 48 घंटे में अरावली पहाड़ियों के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में चल रहे अवैध खनन पर रोक लगाए। 

कहने को इस समय अरावली पर्वत श्रंखला के पूरे क्षेत्र में खनन पर पाबंदी है। सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2002 में इस क्षेत्र के पर्यावरण को बचाने के लिए खनन पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बावजूद भी खनन नहीं रुका है। हरियाणा और राजस्थान की सरकारों की ऐन ठीक आंखों के सामने गैरकानूनी तरीके से खनन होता रहता है और वे तमाशा देखती रहती हैं। राजस्थान सरकार ने तो खुद अदालत में यह बात मानी है कि उसकी लाख कोशिशों के बाद भी राज्य में अवैध खनन जारी है। तमाम अदालती आदेशों के बाद भी अवैध खनन के खिलाफ न तो दोनों प्रदेश सरकारें और न प्रशासन ने कोई प्रभावी कार्यवाही की है और न ही केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय इस पर लगाम लगा पाया है। लापरवाही और उदासीनता का ही नतीजा है कि अरावली में गैरकानूनी खनन की गतिविधियां दिन-पे-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। खनन माफिया बेखौफ होकर पहाड़ियों को खोखला कर रहे हैं। लेखा परीक्षक और नियंत्रक की एक रिपोर्ट के अनुसार  राजस्थान में अरावली पर्वत श्रंखला क्षेत्र में नियमों को ताक में रखकर खनन के खूब पट्टे जारी किए गए, उनका नवीनीकरण किया गया या उन्हें आगे बढ़ाया गया। राज्य सरकार के अलावा केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी इसके लिए अपनी मंजूरियां दीं। जिसका नतीजा यह निकला कि अरावली पर्वत श्रंखला की पहाड़ियां एक के बाद एक गायब होती जा रही हैं। चंद लोगों के स्वार्थ के चलते लाखों लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। यदि सरकार अब भी इसे बचाने के लिए नहीं जागी, तो इस क्षेत्र का पूरा पर्यावरण खतरे में पड़ जाएगा। जिसका खामियाजा एक दिन सभी को भुगतना पड़ेगा। अगर अरावली पर्वत श्रेणी बची रहेगी, तो ही इस क्षेत्र का पर्यावरण भी बचा रहेगा।

क्या है रिचर्ड मरफी का सिद्धांत

अरावली पर्वतमाला राजस्थान के करीब 19 जिलों में से होकर निकलती है। यहां 45 हजार से ज्यादा वैध-अवैध खदाने है। इनमें से लाल बलुआ पत्थर का खनन बड़ी निर्ममता से होता है और उसका परिवहन दिल्ली व एनसीआर की निर्माण जरूरतों के लिए अनिवार्य है। अभी तक अरावली को लेकर रिचर्ड मरफी का सिद्धांत लागू था। इस सिद्धांत के अनुसार सौ मीटर से ऊंची पहाड़ी को अरावली हिल माना गया और वहां खनन को निषिद्ध कर दिया गया था। लेकिन इस मामले में विवाद उपजने के बाद फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने अरावली की नए सिरे से व्याख्या की। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, जिस पहाड़ का झुकाव तीन डिग्री तक है उसे अरावली माना गया। इससे ज्यादा झुकाव पर ही खनन की अनुमति है।

लेकिन राजस्थान सरकार का कहना था कि 29 डिग्री तक झुकाव को ही अरावली माना जाए। ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है और सुप्रीम कोर्ट यदि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के तीन डिग्री के सिद्धांत को मानता है तो राजस्थान के 19 जिलों में खनन को तत्काल प्रभाव से बंद करना पड़ेगा। 

कॉलोनाइजरों के लिए कानून में ही कर दिया बदलाव, लगी अदालत की फटकार

अरावली को बेमौत मारने में सरकारी तौर पर सरकार भी पीछे नहीं है। सन 1900 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने पंजाब लैंड प्रीजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए) के जरिए अरावली के एक बड़े हिस्से में खनन व निर्माण जैसी गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। लेकिन 27 फरवरी 2019 को हरियाणा विधानसभा में जो हुआ था उसने अरावली के प्रति प्रदेश सरकार की संवेदनहीनता जाहिर कर दी थी। बहाना बनाया गया कि महानगरों का विकास करना है अतः 27 फरवरी को इसी एक्ट में हरियाणा विधानसभा ने ऐसा बदलाव किया कि अरावली पर्वतमाला की लगभग 60 हजार एकड़ जमीन शहरीकरण के लिए मुक्त कर दी गई। इसमें 16,930 एकड़ गुरुगांव में और 10,445 एकड़ जमीन फरीदाबाद में आती है। अरावली की जमीन पर बिल्डरों की शुरू से ही गिद्ध दृष्टि रही है। 

गनीमत रही कि एक मार्च 2019 को पंजाब भूमि संरक्षण (हरियाणा संशोधन) अधिनियम-2019 पर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए हरियाणा विधान सभा के प्रस्ताव के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेता दिया था कि यदि अरावली से छेड़छाड़ हुई तो खैर नहीं। लगता है कि अरावली का अस्तित्व केवल अदालत के बदौलत ही बचा है।


अरावली पर्वत को दिया उजाड़ने वाला ऑर्डर, फिर बताया ‘गलती’

हरियाणा सरकार ने 19 मई 2017 को एक ऐसा ऑर्डर पास किया जिससे अरावली पर्वत श्रेणी पर हरियाली बिल्कुल खत्म हो जाती।

अरावली पर मौजूद पेड़ों में से 90 प्रतिशत पेड़ कीकर और मस्कट के ही हैं। मस्कट विदेशी प्रजाति है, इसको 1870 के करीब मेक्सिको से लाया गया था जबकि कीकर स्थानीय पेड़ है।

लेकिन हरियाणा वन विभाग के उस ऑर्डर के मुताबिक कीकर और मस्कट नाम की इन दोनों प्रमुख पेड़ की प्रजातियों को पंजाब जमीन बचाव एक्ट 1990 से बाहर कर दिया गया। उस एक्ट के अंदर आने वाले पेड़ों को काटना और जलाने पर पाबंदी है। 

इस ऑर्डर पर जब जमकर हंगामा हुआ तो हरियाणा वन विभाग के प्रधान मुख्य संरक्षक  डॉ. भोजावैद ने माना कि वह ऑर्डर एक ‘गलती’ थी। हरियाणा सरकार में वन और वन्यजीव के मुख्य सहायक सचिव एस के गुलाटी ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि इन दोनों पेड़ों की प्रजातियों को एक्ट से बाहर नहीं किया गया था बल्कि उनको कम रिस्क वाली केटेगरी में डाल दिया गया था ताकि व्यापार को बढ़ावा मिल सके। गुलाटी ने कहा कि वन विभाग द्वारा जारी शुरुआती ऑर्डर गलती से दिया गया था, उसे वापस ले लिया गया है। सरकार ने कोई नोटिफिकेशन भी जारी नहीं किया है।’

लेकिन वन विभाग के कुछ अधिकारियों ने ही दोनों पेड़ों को लिस्ट के बाहर रखने पर विरोध जताया था, लेकिन इनकी बात नहीं मानी गई।

अगर दोनों पेड़ों को लिस्ट के बाहर रखने के सरकारी मंसूबे पूरे हो जाते तो बिल्डर व खनन माफिया इसका जबरदस्त फायदा उठाते और रातोंरात अरावली को नँगा कर डालते। 

फिलहाल नीलगिरी, पॉपलर, बकेन, बांस, तूत, अम्रोद और ऐलांथस नामक सात कृषि-वन प्रजातिया ऐसी हैं जिनको लिस्ट से बाहर रखा गया है। यानी उनको काटने-जलाने पर पाबंदी नहीं है।

सिर्फ एक जिले से चोरी हो गया 5 करोड़ टन से ज्यादा खनिज

सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि राजस्थान में 1967-68 से अवैध खनन के कारण अरावली रेंज का 25 प्रतिशत हिस्सा गायब हो गया है।

यही नहीं, अलवर जिले में खनन माफिया  तिजारा, भिवाड़ी क्षेत्र में अवैध खनन कर 5 करोड़ 22 लाख 83 हजार 390 मीट्रिक टन खनिज पदार्थ निकाल चुका है। इससे जिले को करीब 430.80 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान भी हुआ है। ये आंकड़े राज्य प्रशासन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश एक रिपोर्ट में स्वीकार किए हैं।

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के सेटेलाइट सर्वे में 274 स्थानों पर अवैध खनन पाया गया, इनमें 225 इलाके अलवर और 49 कोटपूतली खनन अभियंता कार्यालय क्षेत्र में हैं। जिनमें पहाड़ और 142 वन क्षेत्र भी शामिल हैं। अरावली में अवैध खनन का पता लगाने के लिए राज्य के 17 जिलों में सेटेलाइट सर्वे कराया जा चुका है।अवैध खनन के चलते तिजारा क्षेत्र के नीमली गांव में सघन जंगल खत्म हो गया। वहीं बनबन गांव से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित अरावली की पहाडिय़ां अवैध खनन से गायब हो गई।

पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री का भी अरावली में है फार्म हाउस

हरियाणा में अरावली के एक बड़े हिस्से में ताकतवर व रसूखदार लोगों द्वारा अवैध रूप से फार्म हाउस, मैरिज गार्डन, आश्रम, गौशाला और शूटिंग रेंज आदि बनाकर कब्जा कर लिया गया है। सबसे शर्मनाक बात है कि पर्यावरण मंत्री के नाते जिसकी जिम्मेदारी अरावली को बचाने की थी उसी का नाम अरावली में अवैध निर्माण करने वालों में शामिल है। दरअसल वन विभाग हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में अवैध निर्माण की सूची दी है। इस सूची में हरियाणा बीजेपी के वरिष्ठ नेता विपुल गोयल का नाम भी शामिल है। विपुल गोयल मनोहर लाल सरकार के पहले कार्यकाल में हरियाणा के उद्योग और पर्यावरण विभाग के कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।

अगर, सिर्फ फरीदाबाद जिले की ही बात करें तो जून 2020 में फरीदाबाद प्रशासन ने हरियाणा सरकार को बताया कि जिले में लगभग 577 हेक्टेयर वन भूमि पर कुल 130 से ज्यादा अतिक्रमण हैं। यह रिपोर्ट हरियाणा सरकार के वन्यजीव और वन विभाग के फरीदाबाद जिले के डिप्टी कमिश्नर ने तैयार की थी। सूची के पहले ही पेज पर पूर्व पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल का नाम है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अवैध निर्माण करने वालों ने क्या निर्माण कर रखा है। विपुल गोयल के नाम के आगे फार्म हाउस लिखा हुआ है और बताया गया है कि यहां वन संरक्षण अधिनियम के तहत निर्माण की अनुमति नहीं थी। अवैध निर्माण को लेकर विपुल गोयल को साल 2018 में भी नोटिस दिया गया था।

इसके लगभग दो साल बाद सितंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विपुल गोयल के  11 एकड़ में फैले फार्म हाउस को वन विभाग ने तोड़ दिया। यह फार्म हाउस फरीदाबाद के अनखीर गांव में है और यह जमीन पीएलपीए के अधीन है।

यह तो एक बेहद छोटा सा उदाहरण है कि जिन लोगों के पास अरावली को बचाने की जिम्मेदारी थी उन्होंने किस तरह से खुद ही अरावली पर्वतमाला पर कब्जे व अवैध खनन करके उसे छलनी कर दिया। इसी तरह गुरुग्राम, पलवल और नूंह जिलों में भी बेहद रसूखदारों ने अरावली पर कब्जे करके आशियाने बना रखे हैं।

बेहद अटूट है अवैध खनन का गठजोड़

अरावली में अवैध खनन किसी एक व्यक्ति या समूह विशेष तक सीमित नहीं है। ये एक बहुत बड़ा नेटवर्क है जिसमें राजनेता, पुलिस, माइनिंग स्टाफ, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट व आरटीए आदि अनेक संस्थाओं से जुड़े लोग शामिल हैं। अवैध खनन की आय में इन सभी का एक निश्चित हिस्सा तय होता है। अगर इनमें से सिर्फ कोई एक ही संस्था अवैध खनन पर सख्ती बरत दे तो इस पर आसानी से नकेल डाली जा सकती है। क्योंकि इस काम में बड़ी-बड़ी पोकलेन मशीनें, टिप्पर, डंपर और विस्फोटकों का बहुत बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है और इसे किसी भी सूरत में छिपाया नहीं जा सकता और तोड़े गए पत्थरों को सड़क मार्गों से गंतव्य तक पहुंचाया जाता है। यही बात है कि अरावली पर्वतमाला की 31 पहाड़ियों के गायब होने की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि क्या इन्हें हनुमान जी उठा ले गए!

अब जब खनन माफियाओं ने हरियाणा पुलिस के डीएसपी की कथित रूप से कुचलकर हत्या कर दी है तो रोज सरकारी बयान आ रहे हैं कि अरावली में किसी भी सूरत में अवैध खनन नहीं होने दिया जायेगा चाहे इसके लिए यहाँ कितनी ही पुलिस फोर्स भेजनी पड़े। कुछ पुलिस फोर्स आई भी है और इस काम में लिप्त माफियाओं व वाहनों की धरपकड़ भी हुई है। इस कवायद का अवैध खनन पर इसका असर पड़ा भी है। 

ऐसे में सोचने वाली बात है कि क्या सरकार अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिए इस तरह की घटना का इंतजार कर रही थी। दो दशकों से सुप्रीम कोर्ट इसे रोकने के लिए बार-बार आदेश पारित कर रहा है उसका तो कोई खास असर देखने को नहीं मिला। अब देखना है कि डीएसपी की हत्या के कारण सरकारी मशीनरी की अवैध खनन को रोकने की कवायद स्थाई रहेगी या क्षणिक! यह सब आने वाला समय ही बताएगा।

अरावली में खनन पर रोक लगाने का एक पक्ष यह भी

1980 के दशक से दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में भवन निर्माण कार्यों में जिस तरह से तेजी रही है उसके लिए कच्चा माल तो चाहिए ही। ये निर्माण कार्य अब भी बदस्तूर जारी है मगर इनके लिए रोड़ी व क्रेशर कहाँ से आयेगा इस पर कोई ठोस कार्ययोजना या रोडमैप तैयार नहीं किया गया। खनन पर पाबंदी से खनन माफियाओं की मौज हो गई। खनन पर प्रतिबंध से पहले जो रोड़ी व क्रेशर सात-आठ रुपये प्रति घनफुट मिल जाता था आज वही रोड़ी व क्रेशर पचास-साठ रुपये प्रति घनफुट मिल रहा है। यह सारा मुनाफा खनन माफियाओं व रिश्वतखोरी में बंट रहा है। इसके चलते आम आदमी महंगाई से परेशान है। बहुत ज्यादा प्रतिबंध भी ज्यादा अवैध खनन को प्रोत्साहित करते हैं। इसके लिए चाहिये कि पर्यावरण और अरावली को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए खनन में ढील दी जाए जिससे रोड़ी व क्रेशर की कीमतों में कमी आये और कम मुनाफे के कारण खनन माफिया का खनन से मोह भंग हो जाये। मगर यह सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मारने सरीखा होगा अतः इसे करेगा कौन!

चलते-चलते 

बहुत कम लोग जानते हैं कि अरावली पर्वतमाला का एक बेहद छोटा सा हिस्सा राजस्थान की सीमा से लगा हुआ मध्यप्रदेश के गांधी सागर वन्य जीव अभ्यारण से होकर भी गुजरता है।  यहां पर कई जगहों जैसे चतुर्भुज नाला, चिब्बड़ नाला व सीता खरडी आदि स्थानों में पाषाणकालीन मानव सभ्यता के अवशेष और उनके दैनिक जीवन के क्रियाकलाप उनके द्वारा बनाए गए शेल चित्रों के माध्यम से देखने को मिलते हैं।

यहां पर पाई गई रॉक पेंटिंग, रॉक कट गुफाएं, पेट्रोग्लिफ्स रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया  द्वारा कराई गई कार्बन डेटिंग के अनुसार 35 हजार साल तक पुरानी बताई गई हैं। यहीं पर ही दर की चट्टान नाम की जगह पर एक चट्टान के दोनों और पाषाण कालीन मानवों द्वारा बनाये गए 550 से भी अधिक कप के आकार के निशान मौजूद हैं जो दो से चार लाख वर्ष पुराने  हैं और दुनिया की सबसे पुरानी मानव सभ्यता होने का प्रमाण देते हैं!



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