अब भारतीय सेनाओं में भी होंगे कांट्रेक्ट के फौजी!


Chanakya Mantra July 2022 Edition

भारत में नई आर्थिक नीतियों के मद्देनजर निजी क्षेत्रों में स्थाई प्रकृति के कार्यों में 3 वर्षीय कांट्रेक्ट का जो दौर शुरू हुआ है, वह अब सरकारी क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में लेता जा रहा है और अब इसमें सेना का नाम भी जुड़ने जा रहा है।

1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहरेदारी से शुरु हुई और इस समय विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना इन दिनों खासी चर्चा में है। चर्चा का कारण है इसमें अग्निवीरों की प्रस्तावित भर्ती, जिसका पूरे देश के युवा भारी विरोध कर रहे हैं। दरअसल आधुनिक भारतीय फौज की संरचना में पहली बार आमूल चूल परिवर्तन 1858 में हुआ था। उसके बाद इसकी भर्ती प्रक्रिया में यह दूसरा बड़ा परिवर्तन है।

भारतीय सेना में 1858 में जो भारी परिवर्तन किया गया था वह उस समय फौज में भर्ती तत्कालीन भारतीय सैनिकों द्वारा 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के दण्ड के रूप में किया गया था।

1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी की यूरोपीय सेना को क्राउन सैनिकों में मिला दिया गया लेकिन भविष्य में सम्भावित किसी और विद्रोह की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सेना को सबसे अधिक पुनर्गठित कर दिया गया। भारतीय मूल के सैनिकों की विद्रोह करने की क्षमता को पूरी तरह समाप्त नहीं तो कम करने के लिए अनेक कदम उठाए गए। मसलन भारतीय सेना की यूरोपीय शाखा द्वारा सेना के वर्चस्व की सावधानीपूर्वक गारंटी दी गई थी। सेना में भारतीयों की तुलना में यूरोपीय लोगों का अनुपात बंगाल सेना में एक से दो और मद्रास और बॉम्बे सेनाओं में दो से पांच तक बढ़ा दिया गया। यूरोपीय सैनिकों को प्रमुख भौगोलिक और सैन्य पदों पर रखा गया था। अधिकारी कोर से भारतीयों को बाहर करने की नीति को सख्ती से बनाए रखा गया। इसके तहत 1914 तक कोई भी भारतीय मूल का फौजी सूबेदार के पद से ऊपर नहीं उठ सकता था। एक कल्पना भी बनाई गई कि भारतीयों में मार्शल और नॉन-मार्शल वर्ग शामिल थे। भारतीय रेजीमेंटों को विभिन्न जातियों और समूहों का मिश्रण बनाया गया था, जिन्हें एक दूसरे को संतुलित करने के लिए रखा गया था।

जाहिर है कि ये पुनर्गठन अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा और सुविधा के लिए किया गया था। काफी समय तक यह व्यवस्था चलती रही लेकिन प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के में भारतीय सैनिकों की वीरता और जज्बे के चलते धीरे-धीरे इन व्यवस्थाओं में सुधार किए गए और आजादी के आते-आते 1947 तक भारतीय सेना एक बेहद कुशल और पेशेवर सेना बन चुकी थी।

आजादी के बाद भी भारत में सत्तारूढ़ हुई अभी तक कि सभी सरकारों ने भारतीय सेना के मूलभूत ढाँचे में कोई बहुत बड़ा या आमूल चूल बदलाव नहीं किया। सेना में भर्ती प्रक्रिया क्या हो और कैसे हो यह सब सेना के भरोसे ही छोड़े रखा गया। सरकार ने सेना में न्यूनतम हस्तक्षेप की नीति को बनाये रखा गया।

लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को को लाल किले से देश की तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तरीके से तालमेल बिठाने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीए के पद के गठन की घोषणा की। इसके पश्चात एक जनवरी 2020 को बिपिन रावत ने देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में पदभार संभाल लिया। हालांकि उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए की गई थी लेकिन 8 दिसंबर 2021 को 13 अन्य लोगों के साथ एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनका दुखद निधन हो गया।

बिपिन रावत की सीडीएस के रूप में नियुक्ति पर चर्चा और बहस चली थी कि जब भारत की तीनों सेनाओं का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति होता है तो सीडीएस की नियुक्ति के मायने क्या हैं, क्या इसे राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण माना जाए, पर इस पर बहुत ज्यादा विचार विमर्श नहीं हुआ। इस नियुक्ति के आलोचक कहते हैं कि सीडीएस बिपिन रावत के निधन के पश्चात आधा साल से ज्यादा का समय बीत चुका है मगर अभी तक यह पद खाली पड़ा है। इसका अर्थ यह है कि सीडीएस पद को लेकर खुद सरकार भी गम्भीर नहीं है। खैर इस लेख की विषयवस्तु सीडीएस या बिपिन रावत नहीं है बल्कि अग्निवीर योजना है।

दरअसल सरकार ने सीडीएस पद सृजित करके संकेत दे दिए थे कि वह सेनाओं को लेकर कुछ ज्यादा ही गम्भीर है। जल्द ही सभी को इसका पता लगने वाला था।

कैबिनेट कमेटी ने प्रायोगिक योजना ‘अग्निपथ’ को मंजूरी देने के लिए 14 जून 2022 को एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। यह केंद्र सरकार द्वारा भारतीय युवाओं को सेना, वायुसेना और नौसेना में भर्ती करने की स्कीम है। अग्निपथ के माध्यम से लगभग 45,000 से 50,000 युवाओं को हर साल सिर्फ चार साल की सेवा अवधि के लिए भर्ती किया जाएगा। जो लोग इस भर्ती प्रक्रिया के जरिये चुने जाएंगे उन्हें अग्निवीर कहा जाएगा। अग्निवीरों को केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के रूप में भर्ती किया जाएगा। इनके लिए कोई प्रवेश परीक्षा नहीं होगी। चयन होने के बाद, उम्मीदवारों को छह महीने के लिए प्रशिक्षण से गुजरना होगा और फिर साढ़े तीन साल के लिए शामिल किया जाएगा। यह सेवा केवल चार साल की होगी लेकिन इनमें से 25 प्रतिशत को स्थायी सैनिकों के रूप में फिर से शामिल कर लिया जाएगा। इस योजना के तहत सैनिकों को पहले वर्ष के लिए 4.76 लाख रुपये का वार्षिक पैकेज मिलेगा और अंतिम वर्ष में 6.92 लाख हो जाएगा। चार साल सेवा करने के बाद पूरी करने के बाद, उन्हें उन्हें करमुक्त राशि के रूप में एकमुश्त 11.71 लाख रुपये मिलेंगे। 

उनके लिए चार साल के लिए 48 लाख रुपये के जीवन बीमा कवर का भी प्रावधान है और मृत्यु होने पर आश्रितों को 1 करोड़ रुपये दिए जाएंगे और इसमें असेवित कार्यकाल के लिए वेतन भी शामिल होगा। खास बात यह है कि इन अग्निवीरों को कोई पेंशन का प्रावधान नहीं है।

केंद्र सरकार का मुख्य उद्देश्य युवाओं को प्रशिक्षण देने और सेवानिवृत्ति के साथ-साथ पेंशन में कटौती करने के उद्देश्य से भारतीय सेना अग्निपथ प्रवेश योजना शुरू करना है।

सरकार का कहना है कि आज भारतीय सेना की औसत आयु लगभग 32 वर्ष है, अग्निवीरों की भर्ती से आने वाले 6-7 वर्षों में यह और कम होकर 26 वर्ष हो जाएगी। सरकार के अनुसार सशस्त्र बलों को युवा, तकनीक-प्रेमी, आधुनिक में बदलने के लिए, युवा क्षमता का दोहन करने और उसे भविष्य के लिए तैयार सैनिक बनाने की आवश्यकता है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार अग्निपथ योजना से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक उच्च-कुशल कार्यबल की उपलब्धता भी होगी जो उत्पादकता लाभ और समग्र सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में सहायक होगी।

भारत सरकार द्वारा ये योजना पढ़ने और सुनने में तो अच्छी लग सकती है लेकिन इसके चलते सेना में स्थायी रोजगार की गारंटी को धक्का लगा है। एक तरह से यह चार साल के कांट्रेक्ट की योजना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हुई कि जैसे ही अग्निपथ योजना लागू होने की घोषणा हुई उसके साथ ही पिछले तीन साल से पूरे देश में चल रही सेना की भर्ती को भी रद्द कर दिया गया। कोरोना के चलते पिछले भर्ती में देरी हो रही थी। पिछले तीन साल में सेना की जिन भर्तियों के फिजिकल, मेडिकल, रिटन टेस्ट तक हो चुके थे, उन्हें भी अग्निपथ योजना के कारण रद्द कर दिया गया है। देशभर के 50 हजार युवा भर्तियों के रिजल्ट का इंतजार कर रहे थे। पहले कोरोना, फिर प्रशासनिक कारण बता परिणाम रोकने और अब अचानक भर्तियां रद्द कर देने से ये युवा फिर शून्य पर आकर खड़े हो गए हैं। पिछले दो साल में सेना की प्रस्तावित 144 भर्ती रैलियों में से 51 रैली हुईं हैं। इनमें केवल 4 का ही कॉमन एंट्रेस एग्जाम हुआ है। 

सरकार द्वारा इन भर्तियों की अधिसूचना वापस लेने से और भर्ती प्रक्रिया दोबारा शुरू करने की घोषणा से पूरे देश के युवाओं का गुस्सा उबल पड़ा। इसके साथ ही राजनीतिक बयानबाजी और उठापटक भी शुरू हो गई। सेना के सेवानिवृत्त अफसरों का एक बहुत बड़ा तबका अग्निपथ योजना का विरोध कर रहा है। उधर केंद्र सरकार ने अपनी इस योजना को फजीहत से बचाने के लिए तीनों सेनाओं के प्रमुखों को ढ़ाल बनाया गया जो कि अभूतपूर्व है। मामले को इस तरह मोड़ देने की कोशिश की गई कि इस योजना का विरोध करने वाले सेना के विरोधी हैं जबकि वे प्रक्रिया और मानकों का विरोध कर रहे हैं। सेना प्रमुखों द्वारा इस योजना के विरोध में उतरे छात्रों को धमकी तक दी गई जबकि यह जिम्मेदारी भारत सरकार और खासतौर पर गृह मंत्रालय की थी। सेना के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने देश के आंतरिक मामलों पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणियां कीं। यह किसी भी पेशेवर सेना मापदण्डों के खिलाफ था। 

अग्निपथ की शंकाओं के कारण देशभर के अनेक राज्यों में युवा सड़कों और रेलवे ट्रैकों पर उतर गए। अग्निवीर के रूप में चार वर्षों तक सैन्य सेवा के बाद के भविष्य को लेकर आशंकित इन युवाओं की भीड़ कई जगह उग्र हो गई और जमकर उत्पात मचाया। इसके विरोध की आंच धीरे-धीरे 13 राज्यों तक फैल चुकी है। बिहार में बीजेपी के दो विधायक भी इन आक्रोशित युवाओं के निशाने पर आ गए। वहीं, हरियाणा के पलवल में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वहां इंटरनेट बंद करना पड़ गया। फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों में धारा 144 लागू करनी पड़ी।


 अग्निपथ योजना का सबसे ज्यादा विरोध बिहार में हो रहा है। बिहार के छपरा, गोपालगंज, कैमूर और गया में ट्रेनों में आग लगा दी गई जिससे कई बोगियां जलकर खाक हो गईं। उत्तरप्रदेश के मेरठ, आगरा, अलीगढ़, फिरोजाबाद जिलों में युवा सड़कों पर उतर आए। जगह-जगह जाम लगाए गए, टायरों में आग लगा दी गई। अनेक स्थानों पर पुलिस से भिड़ंत भी हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रदर्शन किया।

अग्निपथ योजना को लेकर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी प्रदर्शन हुआ, यहां प्रदर्शनकारियों ने खाली ट्रेन के डिब्बों में तोड़-फोड़ की। 

हरियाणा के गुरुग्राम में दिल्ली-जयपुर हाइवे को जाम किया गया। यहाँ बिलासपुर थाना क्षेत्र से लगते एनएच 48 को सैकड़ों युवाओं ने जाम कर दिया।

राजस्थान के भी अनेक स्थानों पर अग्निपथ योजना के विरोध में धरना-प्रदर्शन किए गए।

अग्निपथ के विरोध से रेलवे को 1000 करोड़ का नुकसान

अग्निपथ योजना के विरोध में बिहार से तेलंगाना तक रेलवे संपत्तियों में तोड़फोड़ की गई, आग लगा दी गई या उन पर हमला किया गया। भारतीय रेलवे को इस विरोध प्रदर्शन के कारण अब तक 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है, जिसमें पिछले कुछ दिनों में टिकट रद्द करने के लिए यात्रियों को नुकसान और प्रतिपूर्ति शामिल है। उग्र प्रदर्शनकारियों ने रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और दर्जनों ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया। इससे पहले 18 जून को रेलवे ने कहा था कि सिर्फ चार दिनों के विरोध प्रदर्शन में उसे 700 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। इसके अलावा, रेलवे अधिकारियों के अनुसार, 60 करोड़ से अधिक यात्री टिकट रद्द कर दिए गए हैं। रेलवे को एक दशक में इतनी संपत्ति का नुकसान नहीं हुआ है, जितना पिछले कुछ दिनों में हुआ है। अब तक, भारतीय रेलवे को नुकसान हुआ है जो पिछले दशक के दौरान हुए कुल नुकसान से अधिक है।

अग्निपथ योजना के विरोध में उतरे राजनीतिक और सामाजिक दल

  • सेना में भर्ती के लिए केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना की अग्नि में राजनीतिक दलों के सियासी रिश्ते भी झुलसे हैं। बिहार में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में दरार स्पष्ट दिखाई दे रही है।बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने बयान देकर सीधे आरोप लगा दिया कि बिहार में बीजेपी के कार्यालय फूंके जाते रहे और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। इस बयान पर जेडीयू नेता भी जवाब देने के लिए कूद पड़े और उसके बाद बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सभी बीजेपी नेताओं की मीटिंग हुई। बीजेपी कोटे के मंत्री के अलावा सभी विधायकों को इसमें जोड़ा गया और बीजेपी ने अग्निपथ को लेकर पीछे नहीं हटने की शपथ ली और इस पर चर्चा की। 
  • दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू के तमाम नेताओं को लेकर भी एक बैठक की। इस दौरान जदयू सांसद, विधायक और पूर्व विधायकों के अलावा कई जिला प्रमुख भी मौजूद रहे। नीतीश ने उनसे राजनीतिक इनपुट लिया और वर्तमान राजनीतिक हालात की जानकारी ली। प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने कहा कि इस बैठक को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, नीतीश कुमार ने कार्यकर्ताओं से सिर्फ हालचाल जाना है। कुशवाहा ने कहा कि अग्निपथ योजना को लेकर जो समस्या है उसके बारे में सरकार को साफ़ करना चाहिए। जहां तक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के आरोप की बात है तो बिहार पुलिस पूरी सतर्कता से काम कर रही है और हालात को नियंत्रण में रखे हुए है।
  • कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भारतीय सेना में भर्ती की केन्द्र सरकार की अग्निपथ योजना का विरोध करते हुए कहा कि पार्टी युवाओं के साथ खड़ी है। हॉस्पिटल में भर्ती सोनिया गांधी ने एक पत्र जारी कर कहा कि पार्टी युवाओं के अधिकार की लड़ाई लड़ेगी।
  • दिसंबर 2020 तक एनडीए के घटक रही आरएलपी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) ने योजना घोषित होने के अगले ही दिन विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों ने राजस्थान के अनेक जिलों में विरोध प्रदर्शन किया और सांसद बेनीवाल ने दिल्ली तक कूच करने की धमकी दे डाली। बेनीवाल ने इस दौरान कहा कि देश की सरकार ने देशभक्ति के साथ एक बुरा मजाक किया है, अग्निपथ के तहत 75 फीसदी जवान 4 साल बाद कहां जाएंगे? बेनीवाल ने कहा कि उन्हें हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाएगा और अगर उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वे गैंगवार में शामिल हो जाएंगे।
  • संयुक्त किसान मोर्चा भी अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे युवाओं के समर्थन में आ गया है। करनाल के औद्योगिक क्षेत्र में भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत व किसान नेता योगेंद्र यादव आदि ने संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के साथ बैठक करके अग्निपथ योजना पर मंथन करके इसे युवाओं के खिलाफ बताया है।
  • अग्निपथ योजना के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा 24 जून को देशव्यापी विरोध दिवस मनाया गया। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन हुए। इस योजना को सेना विरोधी और किसान विरोधी करार देते हुए कृषि संगठन, ट्रेड यूनियन, नागरिक समाज संगठन और छात्र एक साथ आए।


विरोध प्रदर्शनों से सहमी सरकार ने किए बदलाव

अग्निपथ स्कीम के विरोध के कारण केंद्र सरकार इसमें अब तक पांच बड़े बदलाव कर चुकी है। 

  • आर्म्ड फोर्सेज में ऊपरी आयुसीमा में छूट के साथ-साथ अग्निवीरों को सीएपीएफ और असम राइफल्स में भर्ती के समय आयुसीमा में तीन साल की छूट देने के संबंध में ऐलान किया गया है। घोषणा के मुताबिक अग्निवीरों को यह छूट बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एनएसजी और एसपीजी में मिलेगी। अग्निवीर 26 साल की उम्र में इन फोर्सेज के लिए भी अप्लाई कर सकेंगे। 
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घोषणा की कि अग्निवीरों को सेंट्रल आर्म्ड पैरामिलिट्री फोर्सेज (सीएपीएफ) और असम राइफल्स में 10 फीसदी का आरक्षण मिलेगा। इसके अलावा इन्हें ऊपरी आयु सीमा में छूट भी मिलेगी। अग्निवीरों को यह सुविधा चार साल की सेवा पूरी करने के बाद मिलेगी। 
  • बैकफुट पर आई सरकार ने यह घोषणा भी की कि अग्निवीरों के पहले बैच के लिए ऊपरी आयुसीमा 23 के बजाए 28 साल रहेगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय की यह घोषणा उन 75 फीसदी अग्निवीरों पर लागू होगी, जो पहली बार चार की सेवा पूरी करने के बाद हटाए जाएंगे।
  • बीजेपी शासित अनेक राज्य सरकारों द्वारा अपने अपने पुलिस बल व अन्य सेवाओं में भी अग्निवीरों को वरीयता देने की घोषणा की गई है।

भारतीय सेनाओं को उतारा गया बचाव में

भारतीय सेनाओं की तीनों इकाइयों ने क़रीब एक घंटे की प्रेसवार्ता में सरकार की अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे नौजवानों से साफ़-साफ़ शब्दों में बात की.

इस प्रेस वार्ता में रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी, वायुसेना के एयर मार्शल एस के झा, नौसेना के वाइस एडमिरल डीके त्रिपाठी और थलसेना के एडजुटेंट जनरल बंसी पोनप्पा शामिल हुए।

 हैरतअंगेज रूप से इन सैन्य अधिकारियों ने आरोप लगाए कि युवाओं के ग़ुस्से को भड़काने में असामाजिक तत्वों के साथ-साथ कोचिंग संस्थाओं का हाथ है, कहा कि योजना को वापस नहीं लिया जाएगा और आगज़नी और तोड़फोड़ करने वालों के लिए सेना में कोई जगह नहीं है। इन अधिकारियों ये बताने की कोशिश की कि इस पर लंबे समय से काम चल रहा था और कहा कि जो अग्निवीर से जुड़ना चाहता है, उसे एक शपथ पत्र देना होगा कि उसने किसी प्रदर्शन या तोड़फोड़ में हिस्सा नहीं लिया और फ़ौज में पुलिस वेरिफिकेशन के बिना कोई नहीं आ सकता।

मीडिया के सामने इस योजना के बचाव में वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के उतरने पर बेहद आलोचना हो रही है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये काम सरकार, राजनीतिक व्यक्ति या डिफेंस पीआरओ का नहीं था?

इस बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया है कि 75 सालों में पहली बार सरकार की नीति का बचाव करने के लिए सेना के तीनों प्रमुखों को उतारा गया है जबकि रक्षा और गृह मंत्रालय चुप हैं।

इन सैन्य अधिकारियों ने जिस तरह प्रदर्शनकारियों को धमकाया वह भी अभूतपूर्व था, क्योंकि बहुत सी जगह युवा अहिंसक रूप से आंदोलन कर रहे थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे इन सैन्य अधिकारियों को हिंसा की ज़्यादा फ़िक्र लग रही थी, बजाय इसके कि योजना की बारीकियों को समझाया जाए।

इस बारे में लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ये कहना कि विपक्ष ने युवाओं को बहका दिया है, ये युवाओं की बेइज़्ज़ती है।

 मेजर जनरल श्योनन सिंह (रिटायर्ड) ने कहा कि मुझे इस प्रेस कान्फ्रेंस का उद्देश्य समझ में नहीं आया। क्या इसका मक़सद सरकार का मज़बूत रवैया पेश करना था और अगर सरकार का रवैया सख़्त है तो सैन्य अधिकारी क्यों समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये अच्छा या बुरा फ़ैसला है? इससे भी ज्यादा उन्होंने टिप्पणी की है कि इस प्रेस कान्फ़्रेंस में प्रदर्शन करने वाले लोगों को धमकाने की कोशिश की गई। देश में विषयों से निपटने का ये कोई तरीक़ा नहीं है। ये ऐसा था कि आप किसी को सबक सिखाना चाहते हैं। भारत किसी का उपनिवेश नहीं है। ये एक आज़ाद देश है, जहाँ लोगों की अपनी राय है। आपको उन्हें विश्वास दिलाना होगा।

अग्निपथ योजना के फायदे और नुकसान

चाणक्य मंत्र ने विशेषज्ञों सर अग्निपथ योजना के फायदे और नुकसान के बारे में बातचीत की। ऐसे में जो फायदे और नुकसान निकल कर आये वो इस प्रकार हैं

फायदे

  • ये सशस्त्र बलों की भर्ती नीति का परिवर्तनकारी सुधार है।
  • न्यूनतम आयु सीमा 17.5 से अधिकतम 23 वर्ष तक के उम्मीदवारों के लिए यह एक अवसर होगा।
  • अग्निपथ योजना से पहले वर्ष में सेना, नौसेना और वायु सेना में लगभग 46,000 सैनिकों की भर्ती का रास्ता खुल गया है।
  • सशस्त्र बलों का प्रोफाइल युवा और गतिशील होगा।
  • अग्निवीरों के लिए आकर्षक वित्तीय पैकेज. अग्निवीरों के लिए सर्वोत्तम संस्थानों में प्रशिक्षण लेने और उनके कौशल और योग्यता को बढ़ाने का अवसर।
  • नागरिक समाज में सैन्य लोकाचार के साथ अनुशासित और कुशल युवाओं की उपलब्धता।
  • समाज में लौटने वालों के लिए पर्याप्त पुन: रोजगार के अवसर और जो युवाओं के लिए रोल मॉडल के रूप में उभर सकते हैं।
  • 25% कर्मचारियों को 4 साल बाद भी रखा जाएगा जिसका मतलब है कि कुछ उम्मीदवारों को अंततः स्थायी नौकरी मिल जाएगी।
  • जिन अग्निवीरों को 4 साल बाद नहीं रखा जाएगा, उन्हें सशस्त्र बलों की सेवा करने का अनुभव मिलेगा। वे अपनी सेवा के अंत में अनुशासित और कुशल बनेंगे। इनके पास 12 लाख रुपये होंगे। इससे वे अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या आगे की शिक्षा के लिए धन का उपयोग कर सकते हैं।

नुकसान

  • अग्निपथ योजना उम्मीदवारों को केवल 4 साल के लिए रोजगार प्रदान करेगी।
  • केवल 25% उम्मीदवारों को प्रशिक्षण अवधि के बाद स्थायी किया जाएगा और अन्य 75% को नौकरी छोड़नी होगी.
  • अग्निपथ योजना 2022 के दौरान नियुक्त उम्मीदवार को कोई पेंशन नहीं मिलेगी।
  • सरकारी सेवा निधि योजना से 4 वर्ष बाद एकमुश्त राशि में से केवल 11 लाख ही अग्निवीरों को मिलेंगे जबकि 11 लाख में से कुछ राशि मासिक आधार पर भर्ती के वेतन से काट ली जाएगी।
  • चयनित उम्मीदवारों को केवल गैर-कमीशन रैंक जैसे सिपाही, नाइक और लांस नायक के लिए भर्ती किया जाएगा।
  • यह भर्ती सिर्फ 17.5-23 साल के उम्मीदवारों के लिए है।
  • नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है क्योंकि 4 साल की सेवा के बाद उम्मीदवार फिर से बेरोजगार हो जाएंगे।
  • अन्य सरकारी नौकरियों की तरह उम्मीदवार को कोई अतिरिक्त या बुनियादी लाभ प्रदान नहीं किया जाएगा।


चलते-चलते

अमूमन देश में घट रही छोटी से छोटी घटना पर प्रतिक्रिया देने के लिए मशहूर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक अग्निपथ के विरोध में हो रही हिंसा या इस योजना की आलोचना पर सीधे-सीधे कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है। इससे स्पष्ट है कि उन्हें युवाओं के आक्रोश के बारे में भली भांति पता है और वे इस पर अपनी राय रखने से हिचक रहे हैं। वैसे भी राजनीति में कौन सा पांसा कब गलत पड़ जाए, राजनीतिक पुरोधा इसे बेहतर समझते हैं। फिलहाल मामले को सेना बनाम युवा बनाने का भरसक प्रयास हो रहा है।




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