आखिर राजस्थान अचानक क्यों जल उठा साम्प्रदायिक दंगों में ?
अक्सर बेहद शांत रहने वाले राजस्थान प्रदेश में पिछले 3 साल में 7 बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं, महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरी तीन दंगे केवल 32 दिनों के अंतराल में ही हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार 8 अप्रैल 2019 को टोंक में, 24 सितंबर 2020 डूंगरपुर में, 11 अप्रैल 2021 बारां में, 19 जुलाई 2021 झालावाड़ में और इस साल 2 अप्रैल 2022 करौली में, 2 मई 2022 को जोधपुर के जालोरी गेट चौराहे पर व 4 मई को भीलवाड़ा के सांगानेर में हिंसा व साम्प्रदायिक तनाव हुए। गौरतलब है कि अंतिम तीन दंगे, करौली, जोधपुर और भीलवाड़ा में महज 32 दिन के अंतराल में हो गए!
क्या ये संयोग है या प्रयोग, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन राजस्थान में अगले साल 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो इन घटनाओं पर ध्यान जाना स्वाभाविक है। वजह यह है कि साम्प्रदायिक हिंसा और साम्प्रदायिक तनाव वोटों के ध्रुवीकरण के लिए सबसे आसान तरीके हैं। लगता है कि ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं है। हालिया तीनों साम्प्रदायिक घटनाओं का विश्लेषण तो यही कहता है कि ये सामान्य घटनाएं नहीं हैं।
2 अप्रैल 2022 को राजस्थान के करौली शहर में शनिवार को नव संवत्सर के उपलक्ष्य में निकाली जा रही मोटरसाइकिल रैली जब मुस्लिम बहुल इलाके से गुजर रही थी तभी कुछ शरारती तत्वों ने पथराव कर दिया। हटवारा बाजार में माहौल तनाव पूर्ण हो गया और इसके बाद हिंसा फैल गई और उपद्रवियों ने कुछ दुकानों और मोटरसाइकलों को आग के हवाले कर दिया। इससे अनेक दुकानें, वाहन और अन्य सामान क्षतिग्रस्त हो गये। हिंसा में 35 लोग घायल हुए। शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया और अफवाहों को फैलने से रोकने के लिये मोबाइल इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया। हिंसा के सिलसिले में 36 लोगों को हिरासत में ले लिया गया।
इसी प्रकार जोधपुर के जालोरी गेट पर ईद से दो दिन पहले 1 मई को परशुराम जयंती पर भगवा झंडा लगा हुआ था। ऐसे में 2 मई की शाम प्रशासन की मीटिंग में बाज़ार में तय हुआ कि ईद 3 मई को है, इसलिए यहां हर साल की तरह ईद मनाने दी जाए। मुसलमान अपना धार्मिक झंडा और लाउडस्पीकर लगाएंगे, ये परमिशन एक दिन के लिए थी। यह सब बीजेपी नेताओं और नगर निगम की सहमति से तय हुआ।
3 मई को शाम 7 बजे चांद तारे लगे ईद के झंडे और लाउडस्पीकर लग गए। लेकिन उसी रात को शहर में अफ़वाह फैल गई कि यहाँ पाकिस्तान के झंडे लग गए हैं। दो निजी चैनल के पत्रकार मौक़े पर पहुंच गए। रात 12 बजे इन दोनों निजी चैनल के पत्रकारों ने बीजेपी के मेयर विनीता सेठ समेत बीजेपी के नेताओं को फ़ोन किए कि स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति का चेहरा मुसलमानों ने काले टेप से पैक कर दिया है। इसके बाद 2 मई रात 12 बजे बड़ी संख्या में बीजेपी के लोग मौक़े पर पहुंचे और मुसलमानों के ईद के झंडे उखाड़ दिए लाउडस्पीकर नोच डाले जब यह वीडियो मुस्लिमों में वायरल हुआ तो रात एक बजे वे बड़ी संख्या में जालौरी गेट पहुंचे और पथराव हुआ। ऐसे में रात एक बजे से दो बजे तक भीड़ को क़ाबू करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े।
इसके बाद प्रशासन ने बीजेपी नेताओं और मुसलमानों के बीच सुलह करा दी और तय हुआ कि सुबह की नमाज शांति से होगी लेकिन सुबह साढ़े आठ बजे मुसलमान ईद की नमाज़ पढ़ने आए तो चौराहे पर भगवा झंडा लगा था फिर से नारेबाजी होने लगी। इसके बाद 8.45 बजे मुसलमानों युवकों ने पथराव कर कई गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए इसी दौरान प्रशासन ने भगवा झंडा लगाकर तिरंगा लगा दिया।
लेकिन बवाल थमा नहीं, थोड़ी देर में ही सुबह 10 बजे बीजेपी के नेता पहुँचे विरोध जताया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह ने हनुमान चालीसा का पाठ किया। उधर मुसलमान इलाक़ों में दोपहर तक प्रदर्शन चलते रहे क्योंकि मुसलमानों में यह बात फैली कि उनकी ईद जानबूझकर खराब की गई। प्रशासन ने दिन में दो बजे मुस्लिम इलाक़े के दस थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा दिया। इन झड़पों में सैंकड़ों लोग घायल हुए, 13 एफआईआर दर्ज की गई और 100 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
वैसे तो भारत का मैनचेस्टर कहे जाने वाले टेक्सटाइल शहर भीलवाड़ा के सबअर्बन (उपनगर) सांगानेर में साल 2013 से अब तक सांगानेर में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की पांच छिटपुट घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन ये सब 4 मई 2022 जितनी गम्भीर नहीं थीं।
यहां पहली घटना 18 अक्टूबर 2009 की रात को हुई। सांगानेर कस्बे में पटाखे चलाने के दौरान एक चिंगारी से दूसरे समुदाय की दुकान में आग लगने पर बहस हुई। इस पर दूसरे दिन 20 अक्टूबर 2009 को सांगानेर के बाजार बंद हुए थे। दूसरी घटना 28 दिसंबर 2009 को ताजियें निकालने को लेकर हुई। इस पर कस्बे में धारा 144 लगाई गई थी और कत्ल की रात से सुबह तक ताजिए वही रोक दिए गए थे। तीसरी घटना में विवाद का कारण 6 अप्रैल 2015 को एक पारिवारिक कार्यक्रम में डीजे बजाना रहा। इस मामले पर दो गुट आपस में भिड़ गए, जिसके बाद स्थिति तनाव में तब्दील हो गई। चौथी घटना 17 मई 2016 को हुई, इसमें दो समुदाय के लोगों के बीच आपसी मारपीट के कारण तनाव पैदा हो गया था।
हालिया पांचवीं घटना 4 मई 2022 की रात को हुई। सांगानेर इलाके में करबला के पास रात को मोहम्मद आजाद व सद्दाम मेवाती नाम के दो युवकों पर 10 नकाबपोश बदमाशों ने हमला कर दिया था। इसके बाद इन बदमाशों ने इनकी बाइक को आग भी लगा दी थी। पुलिस की ओर से इस मामले में सांगानेर निवासी कन्हैया पूरी को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में सामने आया कि कन्हैया और उसके 9 साथियों ने इन दोनों युवकों पर सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक तनाव के बाद चल रहे भड़काऊ मैसेज का जवाब देने के लिए हमला किया गया था। इन सभी का टारगेट दूसरे समुदाय के किसी भी युवकों को पीटना था। ताकि सोशल मीडिया पर हमले का जवाब लिख सकें। पुलिस ने दोनों घायलों को अस्पताल में भर्ती तो करा दिया लेकिन घटना की वजह से शहर के कई इलाकों में दोनों समुदायों के बीच तनाव हो गया। प्रशासन ने शहर में बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया और इंटरनेट भी बंद कर दिया गया।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि राजस्थान में लगभग एक महीने के अंतराल में ही तीन बड़े साम्प्रदायिक दंगे होना कोई सामान्य घटना नहीं है। सबसे हैरानी की बात तो जोधपुर दंगे को लेकर है। जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी तो उस समय भी जोधपुर शांत रहा था और यहाँ कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी। लेकिन इस बार जोधपुर में वो झंडा जिसे पाकिस्तान का बताया गया, जिसे उतारने की लिए रातों भीड़ टूट पड़ी. ये उन अफवाह फैलाने वालों की वजह से हुआ जिन्हें इस्लामिक झंडे और पाकिस्तान के झंडे में फर्क नहीं पता। हरा रंग और चांद तारे का मतलब पाकिस्तान का झंडा नहीं होता। उत्तेजित भीड़ के बीच एक अफवाह और फैली थी कि चौक पर लगी बालमुकुंद बिस्सा की मूर्ति, जो गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी थे, उनके मुंह पर काली पट्टी बांधकर झंडा लहरा दिया गया। इसी बाद भीड़ बेकाबू हो गई और पूरा शहर अशांत हो गया।
इन तीनों दंगों में हिंदू भी घायल हुए और मुस्लिम भी साथ ही दोनों पक्षों के मकान, दुकान व गाड़ियां फूँक दी गई। मतलब हिंदू हो या मुस्लिम, नुकसान आम व्यक्ति को ही उठाना पड़ा। लेकिन इन घटनाओं ने प्रदेश के राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है
सांप्रदायिक हिंसा पर राजनीति तेज
बीजेपी ने 5 मई को राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ अलवर में हुंकार रैली आयोजित की। इस रैली में पार्टी नेताओं ने राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर सांप्रदायिक हिंसा पर हमला बोला। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो जाएगी।
अलवर के भाजपा सांसद बालकनाथ ने कहा, यह एक मुगल सरकार है जिसे हमें उखाड़ना है। कांग्रेस के डीएनए में मुगल लक्षण हैं, सनातन धर्म नहीं। उन्होंने कहा, राजस्थान की संस्कृति सद्भाव और प्रेम की है, फिर भी हम सरकार के कार्यों से अपमानित हैं।
उधर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करौली में हुए साम्प्रदायिक तनाव के वक्त से ही बीजेपी और आरएसएस को ज़िम्मेदार बताते रहे हैं और अब अपने इस आरोप की पुष्टि के लिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों को मैदान में उतरने की ज़िम्मेदारी दी है। गहलोत ने अपने सभी मंत्रियों को निर्देश जारी किए हैं कि वे मीडिया के सामने तमाम तथ्यों को रखें जिससे ये साबित हो कि इस घटनाओं में बीजेपी और आरएसएस का हाथ है। सभी ज़िला प्रभारी मंत्रियों को कहा गया है कि वे 13 मई को अपने अपने प्रभार वाले ज़िलों में जाएं और साम्प्रदायिक तनाव की घटनाओं से जुड़े तमाम सबूतों को मीडिया के सामने प्रेस वार्ता करके रखें।
गहलोत ने 13 मई का दिन खासतौर पर चुना है। इस दिन से ही कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय चिंतन बैठक उदयपुर में शुरू होगी। इसके लिए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा गांधी और राहुल गांधी समेत पार्टी के तमाम आला नेता तीन दिन तक राजस्थान में ही रहेंगे। गहलोत इस मौक़े को भुनाना चाहते हैं और आलाकमान के सामने ये दर्शाना चाहते हैं कि राजस्थान में उनकी सरकार को बीजेपी और आरएसएस इस तरह से अस्थिर करने में जुटे हैं।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की भूमिका की जाँच जरूरी
करौली की साम्प्रदायिक हिंसा के ठीक पहले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नामक संगठन ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डीजीपी को चिट्ठी के जरिए धार्मिक उन्माद की चेतावनी दी। पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। इसकी स्थापना 1993 में हुई। तब एनडीएफ से अलग होकर पीएफआई बना। देश में सिमी पर पाबंदी लगने के बाद खुलकर सामने आया। इसके बाद 2006 में फीएफआई फिर से एनडीएफ में विलय हुआ। इसका दिल्ली में हेडक्वार्टर है लेकिन यह केरल में सबसे मजबूत स्थिति में है। हालांकि कई अन्य राज्यों में अलग-अलग नामों से भी यह सक्रिय है। सबसे बड़ी बात यह है कि आईएसआईएस और सिमी से लिंक होने का दावा किया जाता है। इस वर्ष राजस्थान में हुई हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ बताया गया। इससे पहले 2020 में दिल्ली में दंगों के पीछे भी पीएफआई को बताया गया। अगस्त 2020 में बैंगलुरु और दिसंबर 2019 में यूपी के कई जिलों में हिंसा के पीछे भी पीएफआई का नाम जोड़ा गया था। यह राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि इन साम्प्रदायिक दंगों के गुनाहगारों को जल्द से जल्द बेनकाब करें।
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