क्या कभी 'आप' हो सकती है देश के 'टॉप' पर ?

 
Chankaya Mantra April 2022 Edition

10 मार्च 2022 को एक क्षेत्रीय पार्टी ने देश की राजनीति में एक नया इतिहास रचा। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस रोज दिल्ली के बाद पंजाब में भी अपनी सरकार बना ली। इससे आप पार्टी देश की पहली इकलौती ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन गई, जिसने दो राज्यों में सरकार बना ली। दो अक्टूबर 2012 को बनी आम आदमी पार्टी 10 साल से भी कम समय में इतना कुछ हासिल कर लेगी, इसका अंदाजा उस समय किसी भी राजनीतिक विशेषज्ञ को नहीं रहा होगा! इस धमाकेदार प्रदर्शन ने देश के सभी आम और खास लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। देश के पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में आप ने मणिपुर को छोड़कर चार राज्यों में चुनाव लड़ा। पंजाब में उसे कुल 42.01, गोवा में 6.77, उत्तराखंड में 3.8 और उत्तरप्रदेश में 0.38 पर्सेंट वोट मिले। अब लोगों के जेहन में दो सवाल उठ रहे हैं कि अगर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन इसी तरह जारी रहा तो क्या वह निकट भविष्य में केंद्र में भी अपनी सरकार बना लेगी और क्या आप पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल सकता है ? इसके चलते बहुत से मौकापरस्त और महत्वाकांक्षी नेताओं ने अपना भविष्य आम आदमी पार्टी में तलाशना शुरू भी कर दिया है। उधर आप ने भी अपना दायरा और गतिविधियां काफी तेज कर दी हैं।

उत्साह की इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी ने हाल ही में देश के नौ राज्यों के लिए अपने प्रभारियों के नाम का ऐलान कर दिया है। इस साल के अंत में हिमाचल में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया है जबकि दुर्गेश पाठक को पहले ही प्रभारी नियुक्त किया जा चुका है। आप नेता रत्नेश पाठक को भी हिमाचल भेज दिया गया है और वे वहीं रहकर संगठन का काम देख रहे हैं।

आप पार्टी के दिल्ली के विधायक राजेश शर्मा को असम का प्रभारी बनाया गया है। दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय और बुराड़ी विधायक संजीव झा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। दक्षिण दिल्ली के विधायक सौरभ भारद्वाज को हरियाणा का प्रभारी बना दिया गया है। राजस्थान का प्रभार द्वारका के विधायक विनय मिश्रा को सौंपा गया है। मालवीय नगर से विधायक और दिल्ली सरकार में कानून मंत्री रह चुके सोमनाथ भारती को तेलंगाना का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। उधर ए राजा को केरल में संगठन का प्रभारी बनाया गया है। इसी कड़ी में दिल्ली के तिलक नगर से विधायक जरनैल सिंह और डॉक्टर संदीप पाठक को पंजाब का प्रभारी बनाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अरविंद केजरीवाल ने ज्यादातर राज्यों के चुनाव प्रभारी वे नेता बनाए हैं जो दिल्ली विधानसभा का चुनाव तीसरी बार जीत कर आए हैं। यानी आम आदमी पार्टी इन राज्यों में चुनावी तैयारी के लिए कोई भी कौर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती।

आप ने अपना चुनावी मिशन शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार को बना रखा है। इसके लिए वह दिल्ली मॉडल को आदर्श बता रही है। पार्टी भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वायदा भी कर रही है। इसके अलावा 300 यूनिट तक फ्री बिजली देने का लोकलुभावन वायदा भी जनता को आकर्षित कर रहा है। आम आदमी पार्टी युवा और महिलाओं को टारगेट कर रही है। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल आईआईटियन और नौकरशाह रहे हैं अतः पार्टी ने आईटी सेल को अपना हथियार बनाया है। बीजेपी के बाद अगर किसी पार्टी की आईटी सेल मजबूत है तो वह है आम आदमी पार्टी।

देखा जाए तो आम आदमी पार्टी की पहली प्राथमिकता क्षेत्रीय दल से राष्ट्रीय पार्टी बनना है। देश में फिलहाल करीब 400 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन महज सात (बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, भाकपा, माकपा, एनसीपी व टीएमसी) को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है। देश मे राज्य स्तर की 35 और क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या 229 है। भगवंत मान लोकसभा से इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में लोकसभा में आप का कोई सांसद नहीं है, लेकिन राज्यसभा में पार्टी के अब आठ सांसद हो गए हैं। इस तरह से आम आदमी पार्टी संसद के ऊपरी सदन की पांचवें नंबर की पार्टी बन गई है। 

चुनाव आयोग की ओर से किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता के लिए पहली शर्त यह है कि कोई राजनीतिक दल तीन राज्यों के लोकसभा चुनाव में 2 पर्सेंट सीटें जीत ले। दूसरी शर्त है कि कोई पार्टी चार या इससे ज्यादा राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता रखती हो। तीसरी शर्त है कि कोई राजनीतिक दल चार लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा में 6 पर्सेंट वोट हासिल करे या फिर विधानसभा चुनावों में चार या इससे अधिक राज्यों में कुल 6 पर्सेंट या ज्यादा वोट शेयर जुटाए।

इस आधार पर आम आदमी पार्टी इस समय कहाँ खड़ी है इसे जानना जरूरी है। राष्ट्रीय पार्टी बन जाने के लिए किसी भी पार्टी को चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय) दल बनने की जरूरत होती है। आम आदमी पार्टी पहले से ही दिल्ली और पंजाब में क्षेत्रीय दल है। अब प्रादेशिक पार्टी बनने के लिए जरूरी है विधानसभा चुनाव में छह फीसदी वोट और दो सीटें। गोवा में इस बार यह संभव हो गया है। आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें से अगर एक भी राज्य में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा तो राष्ट्रीय पार्टी के रूप में यह अन्य कई पार्टियों को पछाड़ देगी!

हिमाचल में इसी साल चुनाव हैं और वहाँ की राजनीति अभी तक दो ध्रुवी रही है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी तीसरे दल के तौर पर ताल ठोंकने की फिराक में है। प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 68 सीटों में से 44  बीजेपी जबकि कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं। छोटा राज्य होने के कारण आप यहाँ पूरा दमखम लगाएगी।

हिमाचल के साथ ही इस साल गुजरात में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछले चुनाव 2017 में आम आदमी पार्टी प्रदेश की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन उसे वहाँ सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार तक नहीं मिल पाए थे! लेकिन वक्त ने करवट बदली आम आदमी पार्टी ने पिछले साल गुजरात निकाय चुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए सूरत नगर निगम की 27 सीटों पर विजय हासिल कर ली। हैरतअंगेज बात यह रही कि कांग्रेस इन क्षेत्रों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। हालांकि इस चुनाव में आप के प्रत्याशियों में ज्यादातर बीजेपी या कांग्रेस छोड़कर आये प्रत्याशी थे लेकिन इन नतीजों ने आप में उत्साह का संचार तो कर ही दिया। हिमाचल की तरह गुजरात में भी चुनावी मुकाबला मुख्यतः बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहता है। पिछले चुनाव 2017 में प्रदेश की सभी 182 सीटों में से 99 बीजेपी को और कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। फिलहाल आप यहां मुख्य मुकाबले में नजर नहीं आ रही अतः आप पार्टी का फोकस यहाँ अपना जनाधार बढ़ाने पर रहेगा।

आप को पंजाब में मिली बम्पर जीत के कारण हरियाणा में भी राजनीतिक गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं। क्योंकि हरियाणा दिल्ली और पंजाब के बीच में स्थित है और इन दोनों में आप की सरकार है।

आम आदमी पार्टी अब हरियाणा में इस साल होने वाले निकाय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। राज्यसभा सांसद और हरियाणा के पार्टी प्रभारी सुशील गुप्ता का कहना है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा के सभी 41 नगर निकायों के लिए चुनाव लड़ेगी। इसके चलते राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोग आप को जॉइन कर रहे हैं। इसके साथ ही आप नेता हरियाणा के कद्दावर नेताओं के सम्पर्क में भी है। चौधरी बीरेंद्र सिंह के राजनीतिक जीवन के 50 साल पूरे होने पर जींद में 25 मार्च को हुए कार्यक्रम में सुशील गुप्ता भी शामिल हुए। इससे चर्चाएं चलीं कि शायद बीरेंद्र सिंह आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। लेकिन हरियाणा को लेकर खुद आम आदमी पार्टी का रुख पूरी तरह से साफ नहीं है। पिछले काफी समय से पार्टी का यहाँ प्रदेशाध्यक्ष ही नहीं है। बिना प्रदेशाध्यक्ष के संगठन कैसे चल सकता है, इसको लेकर छोटे नेता और कार्यकर्ता असमंजस में हैं।

चलते-चलते

चर्चाएं हैं कि क्या आप केंद्र में भी काबिज हो सकती है? आम आदमी पार्टी द्वारा केन्द्र में अपने बलबूते सरकार बनाने की तो हाल-फिलहाल में ऐसी कोई सुनामी नजर नहीं आ रही जिस पर सवार होकर पार्टी यह कारनामा दिखा सके। हाँ, अगर पार्टी लगातार मेहनत करके अपना जनाधार बढ़ाती गई तो कुछ समय बाद यह भी सम्भव है। आपको याद होगा ही कि चंद्रशेखर ने जीवन में कभी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद स्वीकार नहीं किया था। वे कहते थे कि अगर बनूँगा तो सिर्फ प्रधानमंत्री ही बनूँगा अन्यथा नहीं। इस दृढ़निश्चय के चलते एक दिन वे प्रधानमंत्री बन भी गए। कहने का अर्थ यह है कि ठान लिया जाए और उस पर सही तरीके से मेहनत की जाए तो राजनीति में कुछ भी असम्भव नहीं है। जिस बीजेपी को आज इतनी विशाल पार्टी माना जा रहा है 1984 में हुए लोकसभा चुनावों में यह सिर्फ दो सीटों पर ही जीत पाई थी लेकिन सतत प्रयास और मेहनत का परिणाम सबके सामने है।



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