मंदर-बंदर-डंगर और किसान आंदोलन के मुद्दे वाला चुनाव

 (उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव-2022 पर विशेष श्रृंखला-1)

मैं कोई बहुत ज्यादा विद्वान व्यक्ति नहीं हूँ, जो भी सुनता, देखता और पढ़ता हूँ, उसे लिख और बता देता हूँ। बस इतनी सी बात है, शायद यही पत्रकारिता है। जब कोई बौद्धिक मसला फँसता है तो विद्वानों से सलाह मशविरा कर लेता हूँ। इन विद्वानों में मेरे पिताजी भी शामिल हैं। उनके पास मेरे हर सवाल और जिज्ञासा का हल होता है।

खैर, जब मई 2014 में केंद्र में बीजेपी ने पहली बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई तो पिताजी ने कहा कि देश में मंदर (मंदिर) और बंदर की सुध लेने वाली सरकार आ गई है। अब इन दोनों को पूर्ण सुरक्षा की गारंटी है। इसके बाद 2017 में उत्तरप्रदेश और 2019 में एक बार फिर से केंद्र में बीजेपी की सरकार बन गई तो पिताजी ने कहा कि मंदर और बंदर के साथ-साथ डंगर वर्ग भी जुड़ गया है। 

उस समय तो मैंने पिताजी की इस तुकबंदी का बस मुस्कुरा कर मजा लिया लेकिन क्या पता था कि ये तुकबंदी 2022 के उत्तरप्रदेश के चुनाव में  काफी बड़ी चुनौती और चुनावी मुद्दा बनने वाली है।

किसको पता था कि अयोध्या में मंदर (राममंदिर) के निर्माण कार्य शुरू करवाने का श्रेय लेने वाली पार्टी अयोध्या विधानसभा सीट पर अपने-आपको बुरी तरह फँसा पायेगी, बड़े-बड़े चैनलों के दावे कि योगी आदित्यनाथ इस बार खुद अयोध्या से चुनाव लड़ेंगे, फेल हो जाएंगे !

इसी तरह बंदर को हनुमान का प्रतीक बनाकर उन्हें संरक्षित करने का आह्वान गांव, कस्बों, नगरों और महानगरों की जनता के जी का जंजाल बन जायेगा! बंदरों के आतंक से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों का जीना मुहाल हो जायेगा!

और इसी कड़ी में सरकार द्वारा गोवंश की सुरक्षा के लिए बनाए गए अत्यंत कठोर कानून और तथाकथित गौरक्षक दल किसानों और उनकी फसल के लिए चुनौती बन जाएंगे!

 हम इस पचड़े में नहीं पड़ते कि ये तीनों फैक्टर (मंदर-बंदर-डंगर) कितने सार्थक या निरर्थक हैं।लेकिन उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में इन फैक्टरों को ध्यान में रखना ही होगा। पूरे उत्तरप्रदेश में ये तीनों मुद्दे, बड़े चुनावी मुद्दे बनकर उभरे हैं। इनसे किस पार्टी को संजीवनी मिलेगी और किसकी खटिया खड़ी होगी यह देखना भी दिलचस्प रहेगा।

इसके अलावा इस बार कोरोनाकाल में जनता की दुर्दशा, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य तो मुद्दे रहेंगे ही तीन कृषि कानूनों के विरोध में एक साल से भी ज्यादा समय तक चला किसान आंदोलन भी निर्णायक भूमिका में रहेगा। उत्तरप्रदेश में 10 फरवरी से विधानसभा चुनावों का पहले चरण से मतदान शुरू हो चुका है जो 7 मार्च को सातवें चरण के साथ समाप्त हो जायेगा। उसके 3 दिन बाद 10 मार्च को मतगणना से साफ हो जायेगा कि देश में जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़े प्रदेश में किस पार्टी के सिर पर सत्ता का ताज रखा जायेगा।

अभी तक के चुनावी सफर में यह साफ हो चुका है कि इस बार मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा (समाजवादी पार्टी) के बीच है, बीएसपी (बहुजन समाजवादी पार्टी) हैरतअंगेज रूप से मुकाबले में दिखाई नहीं रही उधर राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में प्रदेश में बड़े अरसे के बाद थोड़ा सीरियसली चुनाव लड़ने की मुद्रा में दिखाई दे रही है लेकिन अभी तक वह कोई खास चुनौती देती दिखाई नहीं दे रही है। हाँ, बहुत समय से हाशिये पर जा चुकी आरएलडी (राष्ट्रीय लोकदल) पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इसके साथ-साथ अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुहेलदेव समाज पार्टी, महान दल ,एनसीपी, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी ,अपना दल (कृष्णा पटेल) प्रगतिशील समाजवादी पार्टी  और एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) आदि पार्टियों का चुनावी प्रदर्शन भी प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करेगा। 

अगले लेखों में कोशिश रहेगी कि अभी तक सम्पन्न हो चुके चुनावी चरणों में मुद्दे क्या रहे और जनता का मूड क्या रहा है और आने वाले चरणों में क्या स्थिति रहने वाली है।

तब तक साथ बने रहिएगा

जारी

 




टिप्पणियाँ

Topics

ज़्यादा दिखाएं

Share your views

नाम

ईमेल *

संदेश *

Trending

नींव रखी नई औद्योगिक क्रांति की पर कहलाया किसान नेता

अहलावत जाट और दो लाख की खाट : ठाठ ही ठाठ

चौधरी चरणसिंह - एक सच्चा राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री

आखिरकार छूट गए ओमप्रकाश चौटाला जेल से

किसानों का वो हमदर्द जिससे काँपती थीं सरकारें - महेंद्र सिंह टिकैत

एक भविष्यदृष्टा प्रधानमंत्री जिसने रखी डिजिटल इंडिया की नींव-राजीव गांधी

अलविदा चैम्पियन उड़न सिख

आखिर कितना उलटफेर कर पाएंगे ओमप्रकाश चौटाला

12 जून 1975 को ही पड़ गई थी इमरजेंसी की नींव

ऐलनाबाद उपचुनाव 2021 पर विशेष श्रृंखला -7.