आम आदमी पार्टी का गुजरात अभियान-क्या बन पाएगी प्रदेश की खास पार्टी
Chankaya Mantra October 2022 Edition |
गुजरात में साल 2013 में आम आदमी पार्टी की गुजरात इकाई का गठन हुआ और उसने राज्य के 2017 विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमाई, लेकिन उसका कोई भी कैडिंडेट जमानत नहीं बचा सका। इस विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 182 सीटों में से भाजपा को 99 व कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं, अन्य के हिस्से में छह सीटें आई थीं। जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को इस चुनाव में केवल 0.1 परसेंट ही वोट मिले थे और सभी सीटों पर जमानत जब्त करवा ली।
लेकिन 2020 में आप पार्टी के प्रदेश संगठन का पुनर्गठन किया गया, इसके बाद 2021 के निकाय चुनाव में सूरत नगर निगम की 120 सीटों में से 27 सीटें जीत कर आप ने सूरत में कांग्रेस को पीछे छोड़कर इतिहास रच दिया। इसी दौरान उसने गांधीनगर नगर निगम में भी एक सीट जीत ली। नगर निगम चुनावों की सफलता से उत्साहित आप ने गुजरात में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में यहां पर अपना जोर बढ़ाना शुरू कर दिया है।
पंजाब विधानसभा चुनाव में क्लीन स्वीप के बाद आम आदमी पार्टी ने दूसरे राज्यों में प्रसार की कोशिशें तेज कर दी हैं। अब आप की नजर गुजरात पर है, यहाँ पिछले 27 वर्षों से भाजपा सत्ता में है। वहीं पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भी बेहतरीन प्रदर्शन कर भाजपा को क्लोज फाइट दी थी। आप का मानना है कि यहाँ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर की वजह से उसे शायद कामयाबी मिल सकती है।
अभी तक गुजरात में भाजपा वर्सेज कांग्रेस का मुकाबला ही होता रहा है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी उतरकर इसे त्रिकोणीय लड़ाई बनाने में जुट गई है। अरविंद केजरीवाल इस समय हिमाचल प्रदेश से ज्यादा गुजरात के चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। पिछले चार महीनों में भी वे आधा दर्जन से ज्यादा बार गुजरात में आप पार्टी के लिए प्रचार कर चुके हैं।
आप पार्टी के मॉडल के चार बड़े स्तंभ हैं, अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और युवाओं को रोजगार। गुजरात चुनाव में आप ने इन्हीं पहलुओं को अपनी गारंटी बताया है जो वो सरकार बनते ही देने की बात कर रही है। गुजरात में सबसे बड़ी घोषणा फ्री बिजली वाली है क्योंकि इसी के दम पर पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को प्रचंड जनादेश दिया था। अब गुजरात में भी ये आप की पहली गारंटी है। युवाओं को साधने के लिए अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में रोजगार को लेकर बड़ा वादा किया है। उन्होंने घोषणा की है कि गुजरात में सरकार बनते ही वे 10 लाख सरकारी नौकरी निकालने वाले हैं, ऐसी योजना तैयार करेंगे जिससे सभी बेरोजगारों को रोजगार मिल सके। जब तक रोजगार नहीं मिल जाता, बेरोजगारों को प्रतिमाह तीन हजार रुपये का भत्ता देने की बात भी हुई है। आम आदमी पार्टी के ये वो वादे हैं, जो जात पात व धर्म आदि से ऊपर उठकर गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को आकर्षित करने का काम करते हैं।
ऐसे में आप जिसे अपनी गारंटी बता रही है, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे रेवड़ी संस्कृति का नाम दिया है। लेकिन आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अपनी मुफ्त स्कीमों को भगवान का प्रसाद बताया है और कहा कि ये पाप नहीं है।
उधर, कांग्रेस भी आप पार्टी की इन स्कीमों को हल्के में नहीं ले रही। इसी महीने अहमदाबाद के साबरमती नदी के रिवरफ्रंट पर कांग्रेस के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने गुजरात में चुनाव जीतने पर किसानों का तीन लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने, 10 लाख नौकरियां देने और 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया। उन्होंने प्रदेश में 3000 अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने और लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देने के साथ 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा किया। संकेत साफ हैं कि यह घोषणा राज्य में आम आदमी पार्टी की बढ़ती चुनौती को कमजोर करने के मद्देनजर की गई है।
पिछले चुनावों की बात करें तो दशकों से गुजरात में किसी भी चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सीधी टक्कर देखने को मिली थी। इस बार आप की नजर कांग्रेस के वोटबैंक पर है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को पाटीदार आरक्षण आंदोलन का खूब लाभ मिला था। पाटीदार बहुल सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। लोकसभा चुनाव से पहले पाटीदार आंदोलन का चेहरा रहे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था जिससे कांग्रेस की छवि और मजबूत हुई थी। आप की नजर कांग्रेस के इस वोट बैंक पर है। हालांकि हार्दिक पटेल भी इस समय कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
अगर, पाटीदार समुदाय की बात की जाए तो पाटीदार नेता नरेश पटेल को लेकर भी चर्चा तेज है। वह गुजरात में पाटीदार समाज की धार्मिक संस्था खोडलधाम के चेयरमैन हैं। गुजरात में सभी राजनीतिक पार्टियां उन पर नजरें जमाए हुए हैं। नरेश पटेल, आम आदमी पार्टी की भी तारीफ कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि गुजरात में एंट्री के बाद आम आदमी पार्टी ने अच्छा काम किया है। इस पार्टी का भविष्य उज्जवल है और उनकी कार्यशैली नेक और साफ है। हालांकि कुछ समय पहले दिल्ली में एक बैठक के बाद नरेश पटेल की कांग्रेस में जाने की अटकलें लग रही हैं। देखना दिलचस्प रहेगा कि अरविंद केजरीवाल नरेश पटेल को अपने पाले में ला पाते हैं या नहीं।
इसके अलावा, आप की नजर पाटीदार समाज के साथ-साथ गुजरात की आदिवासी सीटों पर भी है। आप ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ गठबंधन किया है। केजरीवाल ने एक मई 2022 को भरूच में आदिवासी संकल्प महासम्मेलन भी संबोधित किया था। इस दौरान बीटीपी चीफ छोटूभाई वसावा भी उनके साथ मौजूद रहे। गुजरात में 15 परसेंट आबादी वाले आदिवासी समुदाय के लिए कुल 27 सीटें आरक्षित हैं लेकिन उनका असर इससे कहीं ज्यादा सीटों पर है। बीटीपी के साथ गठबंधन में आम आदमी पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नजर आ रही है।
गुजरात में अपनी जमीन तैयार करने के लिए आम आदमी पार्टी ने इसी साल 15 मई से 5 जून तक गुजरात के सभी 182 विधानसभा क्षेत्रों में परिवर्तन यात्रा निकाली है। यह यात्रा ज्यादातर बड़े गांवों और कस्बों से होकर गुजरी, इस यात्रा में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने नुक्कड़ नाटक, प्रभात फेरी और मशाल यात्रा निकालकर लोगों को पार्टी के पक्ष में वोट देने की अपील की। आप पार्टी का दावा है कि 20 दिनों की इस यात्रा में 10 लाख लोग उससे जुड़े।
तो ये थी आम आदमी पार्टी की गुजरात में सक्रियता और लक्ष्य पर संक्षिप्त जानकारी। अब हम सिलसिलेवार चर्चा करेंगे कि गुजरात में जमीनी हकीकत क्या है और आम आदमी पार्टी किस प्रकार कैसे काम कर रही है।
ऑटो मोड पर आप
गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर आप संयोजक अरविंद केजरीवाल का फोकस ऑटो चालकों पर हैं। दिल्ली-पंजाब में आप इसका सफल प्रयोग कर चुकी है और गुजरात में इसे इंट्रोड्यूस किया जा रहा है।
हाल ही में केजरीवाल ने गुजरात में ऑटो कैंपेन शुरू किया। उन्होंने अनेक ऑटो ड्राइवरों के साथ संवाद स्थापित किया। इस कड़ी में एक ऑटो चालक के न्योते पर केजरीवाल ने हामी भर दी और रात में उनके घर जाने की तैयारी कर ली लेकिन गुजरात पुलिस ने ये कहकर उन्हें ऑटो में जाने से मना कर दिया कि उनकी सुरक्षा को खतरा है। पुलिस के मना करने के बाद जमकर बवाल हुआ और केजरीवाल ने कहा कि उन्हें गुजरात पुलिस की सुरक्षा नहीं चाहिए, उन्हें जबरदस्ती कैद नहीं किया जा सकता।
उसके बाद अरविंद केजरीवाल उस ऑटो ड्राइवर के घर भी गए और वहां पर भोजन भी किया. आप की तरफ से उसकी एक तस्वीर भी ट्वीट की गई।
दरअसल, 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऑटो वालों ने आम आदमी पार्टी का जमकर प्रचार किया था। हर ऑटो पर पार्टी के पोस्टर थे और झाड़ू को वोट देने की थी। आप ने इन चुनावों में दिल्ली के ऑटो वालों को 'विक्टिम या पीड़ित' के रूप में दिखाया था। कहा गया कि ऑटो वालों को हर जगह रिश्वत देनी पड़ती है नारा दिया गया कि ऑटो वाले माफिया नहीं बल्कि विक्टिम हैं। इसके चलते दिल्ली के ऑटो वालों ने खुलकर आप को वोट दिए और प्रचार भी किया।
इसी तर्ज पर गुजरात में केजरीवाल ने कहा कि गुजरात में सरकार बनते ही किसी भी ऑटो चालक को लाइसेंस बनवाने या रिन्यू करवाने के लिए आरटीओ के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, बल्कि उनके घर पर ही बैठे-बैठे उनका ये काम होगा। दिल्ली-पंजाब की तरह यहां भी ऑटो वालों को मुफ्त बिजली, अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के भी सपने दिखाए गए। गुजरात में बड़ी संख्या में ऑटो हैं, अगर आप उन्हें एकजुट करने में कामयाब हो गई तो चुनाव का माहौल बदल सकता है।
गुजरात में आप पार्टी की कमजोर कड़ी
सूरत के निकाय चुनाव में भले ही आप ने कामयाबी हासिल की है लेकिन इस साल के चुनाव में वो कोई करिश्मा कर पाएगी उसके फिलहाल कोई ज्यादा आसार नहीं दिख रहे हैं।
इसके पीछे आप पार्टी की दो सबसे बड़ी कमी हैं।
आम आदमी पार्टी निश्चित रूप से गुजरात में सरकार बनाना या विकल्प बनना चाहती है लेकिन उसके पास गुजरात में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। जिस तरह दिल्ली में खुद अरविंद केजरीवाल चेहरा हैं, पंजाब में आम आदमी पार्टी के पास भगवंत मान हैं, लेकिन गुजरात में सबसे बड़ी कमी उसी चेहरे की है। आप किस को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करेगी यह उसके लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है।
गुजरात में दूसरी सबसे बड़ी कमी आम आदमी पार्टी के पास संगठन का अभाव है। भाजपा की तरह आप पार्टी के पास कोई संगठन नहीं है और चूंकि चुनाव इसी साल के अंत में होना है और सुगठित संगठन खड़ा करने के लिए पार्टी के पास समय कम बेहद कम है। इसलिए लगता है कि यह आगामी चुनाव जीत पाना आप पार्टी के लिए मुश्किल होगा।
आप पार्टी के लिए गुजरात में सम्भावनाएं
गुजरात में बेशक भाजपा को सत्तासीन हुए 27 साल हो गए हों। प्रधानमंत्री नरेन्द्र सिंह और भाजपा में नम्बर दो की हैसियत वाले अमित कुमार भी गुजरात से ही हैं फिर भी कांग्रेस ने गुजरात में अपनी जड़ें बरकरार रखी हैं। वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में 182 सीटों वाले सदन में रिकॉर्ड 149 सीटों से जीतने वाली कांग्रेस को उसके अगले ही चुनाव यानी 1990 में केवल 33 सीटों से संतोष करना पड़ा था। गोधरा कांड के साये में हुए 2002 के चुनाव में भी कांग्रेस 39.28 फीसदी वोट शेयर के साथ 51 सीटें जीतने में सफल रही थी। पिछले 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के आक्रामक चुनाव प्रचार से कांग्रेस 77 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। उसे राज्य में कुल 41.44 परसेंट वोट मिले थे। खराब से खराब हालत में भी कांग्रेस गुजरात में 35 से 40 परसेंट वोट बैंक बनाकर रखने में सफल रही है। अतः कांग्रेस को यहाँ कमजोर नहीं माना जा सकता।
याद कीजिये 2017 में चुनाव से पहले कांग्रेस के 15 विधायक उसका साथ छोड़ कर चले गए थे। उसमें शंकर सिंह वाघेला भी शामिल थे। कुछ समय बाद ही राज्यसभा के चुनाव में सोनिया गांधी के सबसे विश्वस्तों में से एक व कांग्रेस के बड़े स्तम्भ स्वर्गीय अहमद पटेल को भी बहुत कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ा था और वे बहुत क़रीबी अंतर से जीते थे। फिर 2017 के बाद सात सीटों पर उपचुनाव हुआ उसमें से चार में बीजेपी को और तीन पर कांग्रेस को जीत मिली थी। वर्ष 2020 में आठ सीटों पर उपचुनाव हुए जिसमें सभी सीटें बीजेपी ने जीतीं और इस समय बीजेपी के विधायकों की संख्या 111 हो गई है।
जैसे-जैसे चुनाव का समय नज़दीक आता जा रहा है कांग्रेस के कई पुराने साथी उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार 2017 से अभी तक कांग्रेस के पूर्व और मौजूदा कुल 13 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं, जिसमें सबसे ताज़ा नाम हार्दिक पटेल है।
लगता है अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की इस बदहाल स्थिति का फायदा उठाने की फिराक में हैं। वे कांग्रेस की जगह लेना चाहेंगे, जिस प्रकार उन्होंने पंजाब में उन्होंने पहली पारी में अच्छा प्रदर्शन तो किया मगर सरकार नहीं बना पाए लेकिन इस बार के चुनाव में क्लीन स्वीप कर दिया। हो सकता है उनके दिमाग में इसी तरह की योजना गुजरात के लिए भी चल रही हो!
अतः उनके सामने मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी ही रहेगी।
इन क्षेत्रों में कांग्रेस है मजबूत
कांग्रेस गुजरात के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में अभी भी प्रभावी है। वर्तमान 64 विधायकों में भी उसके 21 विधायक इसी क्षेत्र से हैं। उत्तर गुजरात में भी उसके 21 विधायक और मध्य में 15 विधायक हैं। उत्तर गुजरात के मेहसाणा, पाटन, गांधीनगर, साबरकांठा और अरावली में पार्टी की स्थिति मजबूत है। मध्य गुजरात के अहमदाबाद, वडोदरा, खेड़ा, पंचमहल, दामोह, छोटा उदयपुर और नर्मदा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी बेहतर पकड़ रखती है। दक्षिण के सूरत, तापी, भरूच, नवसारी, डांग और वलसाड में भी उसे सफलता मिलती है। टीयर-1 और टीयर-2 शहरों में भाजपा की पकड़ ज्यादा मजबूत है।
केजरीवाल कैसे पहुंचा सकते हैं नुकसान
गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार अरविंद केजरीवाल एक बड़े कारण साबित हो सकते हैं। उनकी दावेदारी सबसे ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में ही है। वे इन्हीं इलाकों में ग्रामीणों से मुलाकात कर लगातार अपनी मुफ्त की घोषणाओं की चर्चा कर रहे हैं। वे अपने साथ आदिवासी और पटेल समुदाय के लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि उनका मुफ्त बिजली, दिन में 12 घंटे लगातार बिजली, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य का दावा उन ग्रामीणों को आकर्षित कर सकता है जो केजरीवाल के रूप में एक नया विकल्प देख रहे हैं।
चलते-चलते
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में गुजरात कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल की अहम भूमिका है खास बात यह है कि गुजरात में आगामी नवंबर-दिसंबर महीने में चुनाव होना है, मगर यह राज्य राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा नहीं है!
यह तथ्य जानकार पाठकों को अचरज हो सकता है लेकिन हक़ीक़त यही है कि गुजरात इस यात्रा में शामिल नहीं है। सितंबर महीने में कन्याकुमारी से शुरू हुई यह यात्रा जनवरी महीने में श्रीनगर पहुंचेगी। यह यात्रा जिन 12 राज्यों से होकर गुजरने वाली है, गुजरात को शामिल नहीं किया गया है, इतना ही नहीं, गुजरात के साथ जिस हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव होना है, वह राज्य भी इस यात्रा के मार्ग में शामिल नहीं है। कुल 150 दिनों तक चलने वाली ये यात्रा गुजरात से क्यों नहीं गुजरने वाली है, इसको लेकर लोग चटकारे ले रहे हैं।
इस बारे में गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अर्जुन भाई मोढवाडिया ने कहा है कि यह स्पष्ट किया जा चुका है कि इस यात्रा का चुनावी अभियान से कोई लेना देना नहीं है। अगर हम ऐसा करते तो इस यात्रा का उद्देश्य ही ख़त्म हो जाता। यह कोई चुनावी यात्रा नहीं है।
कांग्रेस पार्टी की तरफ से कहा जा रहा है कि राहुल गांधी इस यात्रा से कुछ दिनों का ब्रेक लेकर गुजरात के चुनाव प्रचार अभियान में शामिल होंगे। लेकिन अपनी इस यात्रा के दौरान वह गुजरात के विधानसभा चुनाव पर कितना ध्यान दे पाएंगे, यह बहुत बड़ा सवाल है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि अगले साल गुजरात के पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश तक की ऐसी ही यात्रा होगी। हालांकि जब यह यात्रा शुरू होगी, उससे काफी पहले ही गुजरात का चुनाव हो चुका होगा।
दिलचस्प बात यह भी है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, गुजरात चुनाव के ख़त्म होने के एक महीने बाद तक चलती रहेगी!
अब यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' अभियान से 'गुजरात छोड़ो यात्रा' का अरविंद केजरीवाल व आम आदमी पार्टी कितना फायदा उठा पाएंगे।
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