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राजस्थान : भाजपा ही सबसे बड़ी चुनौती है भाजपा के सामने

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राजस्थान नाम में राजपुताना शब्द की झलक दिखाई देती है और राजपुताना शब्द में राजा शब्द बेहद महत्वपूर्ण है। राजस्थान में राजा-महाराजाओं के युग का बेशक अंत हो गया हो लेकिन इस प्रदेश की भाजपा इकाई में यह फैक्टर बेहद स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह फैक्टर है धौलपुर राजघराने की महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया! भाजपा बेशक यह कह रही हो कि उसने देश भर में बरसों से महत्वपूर्ण राजनीतिक घरानों और राजाओं, महाराजाओं और सामंतों की बादशाहत  खत्म कर दी हो लेकिन राजस्थान अभी तक इसका अपवाद नजर आता है। वसुंधरा राजे सिंधिया जो चाहती हैं वो करती हैं और उनका मन चाहे तो वे आलाकमान को ठेंगा दिखाने की कुव्वत रखती हैं। मोदी और शाह की जोड़ी को राजस्थान में अपनी परंपरागत विरोधी पार्टी कांग्रेस की चुनौती से तो निपटना पड़ ही रहा है, साथ ही, वसुंधरा राजे सिंधिया को कैसे काबू में रखा जाए यह भी उनके लिए बहुत बड़ी उलझन है। घटना, वर्ष 2009 के अगस्त माह के अंतिम सप्ताह की है। भाजपा नेतृत्व ने राजस्थान में पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार का हवाला देते हुए वसुंधरा राजे को नेता प्रत

करोड़ों साल पुराने हर पत्थर के नीचे छिपे हैं घोटालों के सांप-बिच्छू!

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भूगोलशास्त्रियों के अनुसार गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में फैली अरावली पर्वतमाला लगभग 65 करोड़ साल पुरानी है और यह भारत की ही नहीं बल्कि संसार की प्राचीनतम श्रेणियों में से एक है। पर, इस समय अरावली अपनी प्राचीनता की वजह से नहीं बल्कि अवैध खनन माफिया द्वारा हरियाणा के एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) की हत्या के कारण चर्चा में है। पिछले लगभग 40 वर्षों से अरावली का जिस बुरी तरह से वैध और अवैध रूप से दोहन   हुआ    है उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। पत्थर के इस गौरखधंधे में बहुत बड़ी संख्या में लोग लूट रहे हैं। अरावली का सीना चीरने में नेता, ब्यूरोक्रेट, पुलिस, बदमाश और कॉमन मैन सभी शामिल हैं। घोटालों का यह कारनामा इतना बड़ा है कि इसको तीन-चार पेज की एक रिपोर्ट में समेटना लगभग असम्भव है। माफियाओं और सरकारों के अरावली को तहस-नहस करने के कारनामे लिखने के लिए तो महाग्रन्थ भी छोटा पड़ जाए! दरअसल जब तक राजनीतिक पार्टियां, सरकार व अफसरशाही आदि न चाहें तब तक अरावली रेंज को बचा पाना असंभव है। अब तो ऐसा लगने लगा है मानो सरकार और अफसरशाही अरावली पर्वतमाला को बचाना नहीं बल्कि मिटा

क्या भाजपा का दक्षिण अभियान नया इतिहास रचेगा?

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ChankayaMantra July 2022 Edtion  भारत के स्कूलों में देश के मध्यकालीन इतिहास के अंत और आधुनिक इतिहास की शुरुआत में  महान मुगल वंश के पतन के बारे में पढ़ाया जाता है। मुगल वंश के पतन के मुख्य कारणों में एक कारण यह भी है कि औरंगजेब ने अपने दक्षिण के सैन्य अभियानों पर व्यापक मात्रा में धन और जन को नष्ट किया साथ ही दक्षिणी सैन्य अभियानों में व्यस्तता के कारण वह उत्तर भारत की ओर ध्यान नहीं दे सका, जो कालांतर में मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना। अब पिछले आठ साल से देश की सत्ता में लगातार मजबूती से सत्तासीन भाजपा ने भी हैदराबाद अधिवेशन से अपने मिशन दक्षिण को परवान चढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है। देखना दिलचस्प रहेगा कि दक्षिण भारत भाजपा के लिए मुगल साम्राज्य की तरह चुनौती साबित होगा या नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा यहाँ भी अपनी विजय पताका फहराने में सफल हो पायेगा। यह जानना भी दिलचस्प है कि मुगलों की दक्षिण नीति औरंगज़ेब के शासन के दौरान इसकी सफलता की पूर्णता तक पहुँच गई लेकिन यह सफलता अस्थायी  थी। औरंगजेब अपनी सफलता को मजबूत करने में असफल रहा। औरंगजेब

'नाम गुम जाएगा' भूपिंदर सिंह

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 मशहूर सिंगर भूपिंदर सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. इस बात की खबर उनकी पत्नी और सिंगर मिताली सिंह ने दी. भूपिंदर सिंह बॉलीवुड प्लेबैक सिंगर होने के साथ-साथ गजल गायक भी थे. उनके फेमस गानों में 'मेरा रंग दे बसंती चोला', 'नाम गुम जाएगा', 'प्यार हमें किस मोड़ पर ले आया', 'हुजूर इस कदर' शामिल हैं. मशहूर बॉलीवुड सिंगर भूपिंदर सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. इस बात की खबर उनकी पत्नी और सिंगर मिताली सिंह ने दी. मिताली ने बताया कि सोमवार, 18 जुलाई की शाम भूपिंदर सिंह ने मुंबई में अपनी आखिरी सांस ली. भूपिंदर के जाने के बाद म्यूजिक इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है. पत्नी ने बताया निधन का कारण मिताली ने एक इंटरव्यू में बताया कि भूपिंदर हेल्थ प्रॉब्लम से जूझ रहे थे. उन्होंने कहा, 'उन्हें कई हेल्थ प्रॉब्लम थीं. इसमें यूरिनरी इश्यू भी शामिल थे.' अभी भूपिंदर सिंह के अंतिम संस्कार की तैयारी की जा रही है. भूपिंदर के निधन की खबर से उनके फैंस के बीच भी मायूसी छा गई है। इन फेमस गानों को गाया  भूपिंदर सिंह ने मौसम, सत्ते पे सत्ता, आहिस्ता आहिस्

अब भारतीय सेनाओं में भी होंगे कांट्रेक्ट के फौजी!

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Chanakya Mantra July 2022 Edition भारत में नई आर्थिक नीतियों के मद्देनजर निजी क्षेत्रों में स्थाई प्रकृति के कार्यों में 3 वर्षीय कांट्रेक्ट का जो दौर शुरू हुआ है, वह अब सरकारी क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में लेता जा रहा है और अब इसमें सेना का नाम भी जुड़ने जा रहा है। 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहरेदारी से शुरु हुई और इस समय विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना इन दिनों खासी चर्चा में है। चर्चा का कारण है इसमें अग्निवीरों की प्रस्तावित भर्ती, जिसका पूरे देश के युवा भारी विरोध कर रहे हैं। दरअसल आधुनिक भारतीय फौज की संरचना में पहली बार आमूल चूल परिवर्तन 1858 में हुआ था। उसके बाद इसकी भर्ती प्रक्रिया में यह दूसरा बड़ा परिवर्तन है। भारतीय सेना में 1858 में जो भारी परिवर्तन किया गया था वह उस समय फौज में भर्ती तत्कालीन भारतीय सैनिकों द्वारा 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के दण्ड के रूप में किया गया था। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी की यूरोपीय सेना को क्राउन सैनिकों में मिला दिया गया लेकिन भविष्य में सम्भावित किसी और विद्रोह की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सेना को सबस

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