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क्या भाजपा का दक्षिण अभियान नया इतिहास रचेगा?

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ChankayaMantra July 2022 Edtion  भारत के स्कूलों में देश के मध्यकालीन इतिहास के अंत और आधुनिक इतिहास की शुरुआत में  महान मुगल वंश के पतन के बारे में पढ़ाया जाता है। मुगल वंश के पतन के मुख्य कारणों में एक कारण यह भी है कि औरंगजेब ने अपने दक्षिण के सैन्य अभियानों पर व्यापक मात्रा में धन और जन को नष्ट किया साथ ही दक्षिणी सैन्य अभियानों में व्यस्तता के कारण वह उत्तर भारत की ओर ध्यान नहीं दे सका, जो कालांतर में मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना। अब पिछले आठ साल से देश की सत्ता में लगातार मजबूती से सत्तासीन भाजपा ने भी हैदराबाद अधिवेशन से अपने मिशन दक्षिण को परवान चढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है। देखना दिलचस्प रहेगा कि दक्षिण भारत भाजपा के लिए मुगल साम्राज्य की तरह चुनौती साबित होगा या नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा यहाँ भी अपनी विजय पताका फहराने में सफल हो पायेगा। यह जानना भी दिलचस्प है कि मुगलों की दक्षिण नीति औरंगज़ेब के शासन के दौरान इसकी सफलता की पूर्णता तक पहुँच गई लेकिन यह सफलता अस्थायी  थी। औरंगजेब अपनी सफलता को मजबूत करने में असफल रहा। औरंगजेब

'नाम गुम जाएगा' भूपिंदर सिंह

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 मशहूर सिंगर भूपिंदर सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. इस बात की खबर उनकी पत्नी और सिंगर मिताली सिंह ने दी. भूपिंदर सिंह बॉलीवुड प्लेबैक सिंगर होने के साथ-साथ गजल गायक भी थे. उनके फेमस गानों में 'मेरा रंग दे बसंती चोला', 'नाम गुम जाएगा', 'प्यार हमें किस मोड़ पर ले आया', 'हुजूर इस कदर' शामिल हैं. मशहूर बॉलीवुड सिंगर भूपिंदर सिंह का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. इस बात की खबर उनकी पत्नी और सिंगर मिताली सिंह ने दी. मिताली ने बताया कि सोमवार, 18 जुलाई की शाम भूपिंदर सिंह ने मुंबई में अपनी आखिरी सांस ली. भूपिंदर के जाने के बाद म्यूजिक इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है. पत्नी ने बताया निधन का कारण मिताली ने एक इंटरव्यू में बताया कि भूपिंदर हेल्थ प्रॉब्लम से जूझ रहे थे. उन्होंने कहा, 'उन्हें कई हेल्थ प्रॉब्लम थीं. इसमें यूरिनरी इश्यू भी शामिल थे.' अभी भूपिंदर सिंह के अंतिम संस्कार की तैयारी की जा रही है. भूपिंदर के निधन की खबर से उनके फैंस के बीच भी मायूसी छा गई है। इन फेमस गानों को गाया  भूपिंदर सिंह ने मौसम, सत्ते पे सत्ता, आहिस्ता आहिस्

अब भारतीय सेनाओं में भी होंगे कांट्रेक्ट के फौजी!

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Chanakya Mantra July 2022 Edition भारत में नई आर्थिक नीतियों के मद्देनजर निजी क्षेत्रों में स्थाई प्रकृति के कार्यों में 3 वर्षीय कांट्रेक्ट का जो दौर शुरू हुआ है, वह अब सरकारी क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में लेता जा रहा है और अब इसमें सेना का नाम भी जुड़ने जा रहा है। 1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की पहरेदारी से शुरु हुई और इस समय विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना इन दिनों खासी चर्चा में है। चर्चा का कारण है इसमें अग्निवीरों की प्रस्तावित भर्ती, जिसका पूरे देश के युवा भारी विरोध कर रहे हैं। दरअसल आधुनिक भारतीय फौज की संरचना में पहली बार आमूल चूल परिवर्तन 1858 में हुआ था। उसके बाद इसकी भर्ती प्रक्रिया में यह दूसरा बड़ा परिवर्तन है। भारतीय सेना में 1858 में जो भारी परिवर्तन किया गया था वह उस समय फौज में भर्ती तत्कालीन भारतीय सैनिकों द्वारा 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने के दण्ड के रूप में किया गया था। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी की यूरोपीय सेना को क्राउन सैनिकों में मिला दिया गया लेकिन भविष्य में सम्भावित किसी और विद्रोह की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सेना को सबस

कभी कांग्रेस की मैराथन पारी कभी भाजपा की , यही है गुजरात की राजनीतिक यात्रा

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June 2020 Edition of Chanakya Mantra देश में 1953 में पहला राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया, इसके आधार पर 14 राज्य तथा नौ केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए। उस समय गुजरात बंबई राज्य में शामिल था। इसके बाद वर्तमान गुजरात क्षेत्र में महागुजरात आंदोलन उठ खड़ा हुआ। प्रसिद्ध लेखक कन्हैयालाल मुंशी और किसान नेता इंदुलाल याग्निक उर्फ इंदु चाचा ने मिलकर 'गुजरात नी अस्मिता’ नाम से जो गुहार लगाई थी उसने गुजरात के राज्य बनने की नींव रख दी। अहमदाबाद से 8 अगस्त 1956 में इंदु चाचा के नेतृत्व में शुरू हुआ महागुजरात आंदोलन लगातार तीन साल नौ महीने तक चला। इस आंदोलन के बाद 1960 में गुजरात को अलग राज्य का दर्जा मिला जिसके बाद महागुजरात जनता परिषद का निर्माण हुआ. उस समय गुजरात में कुल 132 विधानसभा क्षेत्र थे। गुजरात में पहली बार 1960 में विधानसभा चुनाव कराए गए। कुल 132 सीटों के लिए हुए चुनाव में 112 सीटों पर कांग्रेस जीत गई। इसके बाद तो 1960 से लेकर 1975 तक राज्य की सत्ता पर कांग्रेस का ही राज बना रहा। गुजरात में एक मई 1960 से 18 सितंबर 1963 तक राज्य के पहले मुख्यमंत्री जीवराज नारायण म

आखिर राजस्थान अचानक क्यों जल उठा साम्प्रदायिक दंगों में ?

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Chanakya Mantra May 2022 Edition  अक्सर बेहद शांत रहने वाले राजस्थान प्रदेश में पिछले 3 साल में 7 बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं, महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरी तीन दंगे केवल 32 दिनों के अंतराल में ही हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार 8 अप्रैल 2019 को टोंक में, 24 सितंबर 2020 डूंगरपुर में, 11 अप्रैल 2021 बारां में, 19 जुलाई 2021 झालावाड़ में और इस साल 2 अप्रैल 2022 करौली में, 2 मई 2022 को जोधपुर के जालोरी गेट चौराहे पर व 4 मई को भीलवाड़ा के सांगानेर में हिंसा व साम्प्रदायिक तनाव हुए। गौरतलब है कि अंतिम तीन दंगे, करौली, जोधपुर और भीलवाड़ा में महज 32 दिन के अंतराल में हो गए! क्या ये संयोग है या प्रयोग, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन राजस्थान में अगले साल 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो इन घटनाओं पर ध्यान जाना स्वाभाविक है। वजह यह है कि साम्प्रदायिक हिंसा और साम्प्रदायिक तनाव वोटों के ध्रुवीकरण के लिए सबसे आसान तरीके हैं। लगता है कि ये सिलसिला अब थमने वाला नहीं है। हालिया तीनों साम्प्रदायिक घटनाओं का विश्लेषण तो यही कहता है कि ये सामान्य घटनाएं न

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