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रक्षक की रक्षा अभियान

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एनसीआर मीडिया क्लब ने तायल फाउंडेशन के साथ मिलकर गुरुग्राम में मंगलवार को रक्षक की रक्षा अभियान के तहत मीडियाकर्मियों को कोरोना वायरस से बचाव की किटों का वितरण किया। इसके तहत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडियाकर्मियों को फेस शील्ड और गॉगल्स दिए गए। एनसीआर मीडिया क्लब के अध्यक्ष अमित नेहरा, गुरुग्राम के मीडियाकर्मियों  को  कोरोना किटों का वितरण करते हुए इस अवसर पर एनसीआर मीडिया क्लब के अध्यक्ष अमित नेहरा ने कहा कि कोविड-19 की महामारी की कवरेज के दौरान मीडियाकर्मी भी हाई रिस्क पर हैं। अतः उनको संक्रमण से बचाना क्लब का नैतिक फर्ज है। हिसार के तायल फाउंडेशन ने भी इस बात को समझा और एनसीआर मीडिया क्लब के साथ मिलकर इस प्रोग्राम का आनन-फानन में आयोजन किया।    ये भी पढ़ें-  'सोने के खजाने' का पता बताने वाले शोभन सरकार   ये भी पढ़ें- COVID19 पर एक माह में दूसरी पुस्तक तैयार, तीसरी की तैयारी अमित नेहरा ने बताया कि इस मौके पर मौजूद सभी मीडियाकर्मियों को कोरोना से बचाव की किटें दी गई हैं और जो मीडियाकर्मी समयाभाव के कारण इनसे वंचित रह गए हैं क्लब उनके लिए भी जल्द ही

राजस्थान के कद्दावर नेता कुम्भाराम आर्य

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. ... कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी,  यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता। बशीर बद्र द्वारा लिखी गई ये पंक्तियां पंजाब में जन्मे और राजस्थान में पले-बढ़े किसान नेता कुंभाराम आर्य पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। तारीखों के हिसाब से  10 मई 1914 को वे पंजाब सूबे की पटियाला रियासत के ढूंढाल थाना क्षेत्र के गांव छोटा खैरा में पैदा हुए थे। जब वे साल भर के हुए तो उनका परिवार राजस्थान के बीकानेर रियासत की चूरू तहसील के शिवदानपुरा गांव में आ गया। इसके बाद इनका पूरा जीवन राजस्थान में ही बीता। कुंभाराम आर्य ने किसानों की राजनीति की और पंजाब में जन्म लेने के बावजूद राजस्थान के किसानों की दमदार आवाज बने। इस ब्लॉग से यह भी जानकारी दी जायेगी कि राजनीति में कैसे एक गलत दाँव से लगभग हाथ में आया मुख्यमंत्री पद दूर छिटक सकता है।   समाज में फैली कुरीतियों और छुआछूत को देखते हुए कुंभाराम आर्य ने अपने शुरुआती दिनों में ही आर्य समाज को अपना लिया था और इसका पालन ताउम्र किया। अपने राजनीतिक जीवन में कुंभाराम आर्य 18 मार्च 1
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एक बड़ा सबक भी है कोविड-19 वर्ष 1994 की बात है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में एमएससी ( मास कम्युनिकेशन ) पाठ्यक्रम शुरू हुआ ही था। क्योंकि पूरे हरियाणा में पत्रकारिता में स्नातकोत्तर स्तर का यह अकेला पाठ्यक्रम था अतः इसमें एडमिशन के लिए खूब मारामारी हुई। इसके लिए प्रवेश परीक्षा निर्धारित की गई। मैंने भी इसमें अप्लाई कर दिया था। पढ़ाई में फिसड्डी होने के बावजूद चयन सूची में मेरा नाम सातवें नंबर पर आ गया। यह पता लगने पर , मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय परिसर में स्थित एडमिशन फीस के लिए निर्धारित बैंक में फीस जमा कराकर वापस घर आ गया। इस दौरान मुझसे एक बड़ी चूक हो गई। मैंने बैंक में फीस जमा करवाने के बाद उसकी रसीद विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन विभाग में जाकर जमा नहीं करवाई। उस समय एडमिशन और फीस ऑनलाइन नहीं थे। इसके चलते मास कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट को इसकी सूचना नहीं मिली। अतः मेरी जगह किसी और का एडमिशन कर दिया गया। एडमिशन्स का दौर पूरा होन

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