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क्या कुमारी सैलजा के दो साल पूरे होने देंगे हुड्डा ?

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.  (हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद पर छिड़ी जंग पर विशेष)   किस तरह कटा था अशोक तंवर का पत्ता प्रदेश इकाई पर तंवर के हटने का असर कैसे हुई थी कुमारी सैलजा की एंट्री क्यों चल रही है सैलजा हटाने की मुहिम क्या आलाकमान सैलजा को हटा देगा 18 अगस्त 2019 को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने राज्य के विधानसभा चुनावों से ऐन पहले कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष को पद से हटाने के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए रोहतक में परिवर्तन महारैली आयोजित की थी और वे अपने मकसद में कामयाब हो गए थे। उस घटना को दो साल भी पूरे नहीं हुए हैं कि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा नए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को हटाने में एक बार फिर से जुट गए हैं। ऐसी नौबत क्यों आई और क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदला जा सकता है इसकी चर्चा करेंगे। किस तरह कटा अशोक तंवर का पत्ता गौरतलब है कि रोहतक की परिवर्तन महारैली में न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी का

आखिर कितना उलटफेर कर पाएंगे ओमप्रकाश चौटाला

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.  (चौटाला की जेल से रिहाई पर विशेष लेख) इनेलो और ओमप्रकाश चौटाला का स्वर्णकाल सीटें घट गईं पर वोट प्रतिशत स्थिर रहा मोदी मैजिक, चौटाला को जेल के दौरान इनेलो का प्रदर्शन जेल ने नहीं बल्कि परिवार ने तोड़ डाली इनेलो क्या चौटाला फूँक पाएंगे इनेलो में प्राण किसान आंदोलन का कैसा रहेगा इनेलो पर असर 23 जून 2021 को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के सही मायनों में संस्थापक ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल में सजा पूरी हो गई और 2 जुलाई 2021 को उन्होंने जेल में जाकर इस बारे में कागजी कार्यवाही पूरी कर दी। इसके साथ ही उनका जेल से पूरी तरह से पिण्ड छूट गया (हालांकि कोविड-19 के संक्रमण के चलते वे काफी समय से जेल से बाहर ही थे)। गौरतलब है कि चौटाला जेबीटी शिक्षकों की भर्ती में अनियमितताओं के जुर्म में 2013 से 10 साल की सजा काट रहे थे। जेल जाने से पहले पिछले लगभग 25 वर्षों तक हरियाणा की राजनीति में एक धुरी रहे ओमप्रकाश चौटाला अब फिर से राजनीति के मैदान में अपने जोहर दिखाने के लिए प

कबीर एक अक्खड़-फक्कड़ और विद्रोही संत

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. कबीरदास जयंती पर विशेष इस साल कबीरदास जयंती आज यानी गुरुवार, 24 जून 2021 को  मनाई जा रही है। महान कवि एवं संत कबीर की जयंती हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। कबीर एक अक्खड़-फक्कड़ और विद्रोही संत थे, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। कबीर का जन्म उस समय हुआ जब भारतीय समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, मौलवी, मुल्ला तथा पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम सीमा पर था। जनता को धर्म के नाम पर पागल बना रखा था। ऐसे में कबीर अंधेरे में सूर्य की तरह चमके और ठेठ बोलचाल की भाषा में आडम्बरों का जबरदस्त विरोध किया। मेरी एक पुस्तक कोविड-19@2020 का एक चैप्टर कबीर के एक जबरदस्त उदाहरण से शुरू है। उनकी जयंती पर आप भी अगर इसे पढ़ेंगे तो हो सकता है कि आपको भी यह अच्छा लगे। यह लेख दक्षिण भारत के लोकप्रिय अखबार दैनि

आखिरकार छूट गए ओमप्रकाश चौटाला जेल से

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page. पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला  जेल क्यों गए थे ओमप्रकाश चौटाला जेल जाने का पूरा घटनाक्रम इनेलो क्यों हुई दोफाड़ देवीलाल की राजनीतिक विरासत और चौटाला कैसे और क्यों बनी इनेलो चौटाला के रिहा होने का इनेलो पर असर 23 जून 2021 की सुबह खबर आई कि जूनियर बेसिक ट्रेनिंग (जेबीटी) भर्ती घोटाले में सजायाफ्ता हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की तिहाड़ जेल में सजा पूरी हो गई है। बताया गया कि जेल प्रशासन ने इस संबंध में चौटाला के वकील को सूचना दे दी है कागजी कार्रवाई पूरी होते ही रिहाई के आधिकारिक आदेश जारी हो जाएंगे। ओमप्रकाश चौटाला, उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और 3 अन्य को 22 जनवरी 2013 को सीबीआई की विशेष अदालत ने 3206 शिक्षकों की अवैध तरीके से भर्ती के मामले में 10 साल की सजा सुनाई थी। वे तभी से सजायाफ्ता थे। गौरतलब है कि 86 साल के ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी उम्र और दिव्यांगता का हवाला देकर जेल से रिहा किए जाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि वह 2013 में ही 60 फीसदी दिव्यांग हो ग

गुजरात में बोए गए थे इमरजेंसी के बीज

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This is the title of the web page Right Click is disabled for the complete web page.                          (इमरजेंसी 25 जून पर विशेष लेख) घनश्यामभाई ओझा (R)  इंदिरा गांधी , चिमनभाई पटेल(L) क्या था ओझा और पटेल का विवाद गुजरात का भजनलाल किसे कहा जाता है मेस के खाने ने सरकार को कैसे झुकाया क्यों बनी नव निर्माण युवक समिति जेपी नारायण का गुजरात कनेक्शन भारत में इमरजेंसी 25 जून 1975 की रात को घोषित की गई थी। देश को अगले दिन यानी 26 जून को इसका पता चला था। उसी दिन को ध्यान में रखकर तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डरों पर धरनारत किसानों ने 26 जून को काला दिवस मनाने की घोषणा की है। हालांकि 25-26 जून 1975 की रात को इमरजेंसी अचानक घोषित कर दी गई लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसको लगाने के लिए परिस्थितियां उसी समय ही बनी हों। धारणा यह है कि इमरजेंसी इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 जून 1975 के उस फैसले का परिणाम थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली के लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया था। यह भी माना जाता है कि बिहार में जेपी नारायण के आंदोल

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