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कांग्रेस के रायपुर महाधिवेशन के मायने

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आगामी 30 जनवरी को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा श्रीनगर में समाप्त हो जाएगी। फिलहाल पूरी कांग्रेस इस यात्रा को सफल बनाने के लिए पूरे जी जान से जुटी हुई है। यात्रा खत्म होने के तुरंत बाद 24, 25 और 26 फरवरी को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कांग्रेस का 85वां महाधिवेशन आयोजित होगा। ये दोनों इवेंट आने वाले कुछ समय के लिए कांग्रेस और देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे। फ़िलहाल तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने बाकी राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। वजह स्पष्ट है कि आजाद भारत में इस तरह की यात्रा कभी नहीं हुई। हालांकि आजादी से पहले भी इस तरह का कोई आयोजन नहीं हुआ था जो पूरे देश में लगातार पैदल तरीके से इतना गतिमान रहा हो। इस यात्रा ने लगभग हाशिये पर पहुँच चुकी कांग्रेस में नई जान और ऊर्जा फूँक दी है।  ऐसे में 24 से 26 फरवरी 2023 में होने वाले कांग्रेस महाधिवेशन के लिए कांग्रेसजनों में काफी उत्साह है। बड़ी विचित्र बात है कि पिछले कुछ समय से देश में कांग्रेस के महाधिवेशनों को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई देती। जबकि देश की आजादी दिलाने से लेकर व काफी सम

बेगुनाह सांसों को तोड़ते ये पुल

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' तू किसी रेल सी गुज़रती है  मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ' Chankaya Mantra January 2023 Edition हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार ने 1975 में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह 'साये में धूप' के तहत 'मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ' नामक ग़ज़ल में ये लाइनें लिखी थीं। पता नहीं दुष्यंत कुमार ने किन हालातों और परिपेक्ष्य में ये दो लाइनें लिखी हों। लेकिन यह शत-प्रतिशत सत्य है कि भारतीय रेलमार्गों पर रेल (ट्रेन) के गुजरने के दौरान ज्यादातर पुल, वाकई खतरनाक तरीके से थरथराते हैं। कुछ तो ट्रेन के गुजरते हुए टूट भी चुके हैं। इन हादसों में हजारों लोग अपनी जान गवां चुके हैं। वर्ष 2019 में संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार भारतीय रेलमार्गों पर लगभग 1,20,000 पुल हैं, जिसमें 38,850 से अधिक पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, जो अपना जीवन पूरा कर चुके हैं। कायदे से इनको ढहा कर इनकी जगह नए पुल बना देने चाहियें थे। मगर यह इस देश में ही सम्भव है कि मियाद पूरी कर चुके पुलों पर भी भारतीय ट्रेनें मुसाफिरों की जान की परवाह के बगैर मजे से दौड़ रही हैं। ऐसे में पुल तो थरथरा र

गौरक्षा का धर्म ... खतरा या पराक्रम

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  1980 के दशक तक आर्यसमाजी भजनोपदेशक अक्सर यह तुकबंदी कहते हुए सुनाई दे जाते थे कि आजकल इस देश में सबकी इज्जत है सिवाय गऊ और बहू के। यह तुकबन्दी लोगों को अंदर तक झकझोर देती थी। हालांकि उस समय गौकसी और आवारा गौवंश की समस्या इतनी विकराल नहीं थी लेकिन देश में दहेज की कुप्रथा के चलते ज्यादातर नवविवाहिताओं की हालत वाकई काफी खराब थी। ससुरालियों के मनमुताबिक दहेज न लाने पर नवविवाहिता को मारा-पीटा जाता था और उसके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। दहेज के कारण घटित हो रही इन जघन्य घटनाओं ने समाज को झकझोरा, इनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। अतः नवविवाहिताओं को दहेज़ प्रताड़ना से बचाने के लिए संसद द्वारा 1983 में, किसी महिला को उसके पति और उसके रिश्तेदारों के हाथों उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए पारित की गई। यह धारा 498-ए एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है। आरोप सिद्ध होने पर इसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माने भी लगाया जा सकता है। लेकिन यह धारा इतनी सख्त बना दी गई थी कि इसके प्रावधान के तहत पति और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया जाता ह

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